सात समंदर पार रहने वाले इगोर को सनातन संस्कृति का आकर्षण हिंदुस्तान खींच लाया.

dhruva.shankar@inext.co.in
PRAYAGRAJ :
सात समंदर पार रहने वाले इगोर को सनातन संस्कृति का आकर्षण हिंदुस्तान खींच लाया। यहां आए तो इसमें इतना रम गए कि तीर्थराज प्रयाग की पावन धरती उनकी जिंदगी का रुख ही मोड़कर रख दिया है। इंजीनियर माता-पिता की संतान इगोर को क्रोएशिया में महामंडलेश्वर परमहंस स्वामी महेश्वरानंद पुरी का एक दिन के लिए सान्निध्य मिला। उनसे प्रभावित होकर वह 1997 में अलखपुरी सिद्धपीठ परंपरा के जाडन, राजस्थान के ऊं आश्रम में पहुंच गए। यहां दो वर्ष तक रहते हुए उन्होंने स्वामीजी के साथ योग साधना में प्रशिक्षित होना शुरू कर दिया। योग साधना की जिज्ञासा और उनकी इच्छाशक्ति से प्रभावित होकर स्वामी महेश्वरानंद पुरी ने उन्हें स्वामी ज्ञानेश्वरपुरी की उपाधि दे डाली।

2007 में यहीं लिया संन्यास
इसके बाद उन्होंने राजस्थान और दिल्ली के आश्रमों में जाकर योग साधना करानी शुरू कर दी। प्रयागराज की धरती पर 2007 में आयोजित अ‌र्द्धकुंभ में स्वामी महेश्वरानंद पुरी ने संगम नोज पर विधि-विधान से स्वामी ज्ञानेश्वरपुरी को संन्यास धारण कराया। संन्यासी होते ही स्वामी ज्ञानेश्वरपुरी का अपने माता-पिता को छोड़ना पड़ा। इसकी जानकरी जब उन्होंने पिता को दी तो वह भी अपने बेटे इगोर से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके।

2013 कुंभ में बने महामंडलेश्वर
संगम की रेती पर 2013 में कुंभ का आयोजन हुआ था। श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी की छावनी में बसंत पंचमी शाही स्नान पर्व से एक दिन पहले स्वामी ज्ञानेश्वरपुरी का पट्टाभिषेक किया गया था। इसके बाद स्वामी महेश्वरानंद पुरी ने उन्हें महामंडलेश्वर की उपाधि प्रदान की थी। इस साल प्रयागराज में चल रहे कुंभ में महामंडलेश्वर के रूप में पहली बार आने का सौभाग्य उन्हें प्राप्त हुआ। महामंडलेश्वर बनने के बाद से आज तक स्वामी ज्ञानेश्वरपुरी क्रोएशिया लौटकर नहीं गए। वह राजस्थान के जाडन स्थित ऊं आश्रम की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं।

पुस्तक ने दिया हिन्दुस्तान जाने का संदेश
स्वामी ज्ञानेश्वरपुरी बताते हैं कि जब छठवीं क्लास में था तो एक दिन स्कूल में टीचर ने 'हरे कृष्णा' पुस्तक पढ़ने के लिए दी थी। उस पुस्तक को घर लाकर पढ़ना शुरू किया तो एक घंटे में ही खत्म कर डाला। पुस्तक पढ़ने के बाद मन में संकल्प लिया कि एक बार भारत जरूर जाना है। यह सपना तब साकार हुआ जब स्वामी महेश्वरानंद पुरी योगा पर हुए तीन दिवसीय सेमिनार के संबंध में क्रोएशिया पहुंचे थे। सेमिनार के दूसरे दिन इगोर को स्वामीजी से मुलाकात का अवसर मिला। सनातन संस्कृति के बारे में उनके ज्ञान और उनकी सहजता से इगोर इतने प्रभावित हुए कि अपने साथ ले जाने को कहा। तब स्वामीजी ने पता और मोबाइल नंबर दिया।

महत्वपूर्ण तथ्य

-48 वर्षीय इगोर यानि स्वामी ज्ञानेश्वरपुरी का जन्म क्रोएशिया में 1971 को हुआ था।

-शुरू से पढ़ाई में अव्वल रहने वाले इगोर ने एमएससी फिजिक्स की पढ़ाई की है।

-इगोर के माता-पिता सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं।

-परिवार में एक बड़े भाई हैं जो लंदन में एक कंपनी में इंजीनियर हैं।

-इनके पासपोर्ट पर भी इगोर नहीं बल्कि स्वामी ज्ञानेश्वपुरी नाम ही लिखा हुआ है।

-इनका सपना है कि अंतिम समय तक सनातन संस्कृति का पूरे विश्व में प्रचार-प्रसार किया जाए।

Posted By: Inextlive