संगम की रेत पर बसाए गए तम्बुओं के शहर में आए संत महात्माओं के मठ व आश्रम की सुरक्षा व्यवस्था काफी सख्त है.

i special

01

कोतवाल की तैनाती की जाती है संत महात्माओं के मठ में

05

मुंशी महंत द्वारा नियुक्त किए जाते हैं कोतवाल के अंडर में

02

पहर दो-दो मुंशी की मठ में लगाई जाती है ड्यूटी

कोतवाल करते हैं मठ के अंदरूनी सुरक्षा के दायित्व का पूर्ण निर्वहन, भण्डारे में आए संतों के कंट्रोल का होता है दायित्व

मठ के महंत की पेशी में लगाए जाती है एक मुंशी की ड्यूटी, कल्पवासियों के कुशलक्षेम का भी करना होता है इन्हें काम

mukesh.chaturvedi@inext.co.in
PRAYAGRAJ: संगम की रेत पर बसाए गए तम्बुओं के शहर में आए संत महात्माओं के मठ व आश्रम की सुरक्षा व्यवस्था काफी सख्त है। महंत द्वारा तैनात कोतवाल पर मठ के सुरक्षा का पूर्ण दायित्व है। सुरक्षा को लेकर इनका मिजाज पुलिस कोतवाली में तैनात कोतवाल से कम नहीं है। अंदरूनी सुरक्षा का दायित्व संभालने वाले मठ के इन कोतवालों की ड्यूटी भी पुलिस की तरह ही है। इनके अंडर में महंत द्वारा मुंशी तैनात किए गए हैं। मुंशी मठ में तैनात कोतवाल के निर्देश पर ही काम करते हैं। इनमें सभी के काम अलग-अलग पुलिस की बीट सरीखे बांटे गए हैं। जिसे जो जिम्मेदारी दी गई वह बगैर निर्देश के कोई दूसरा काम नहीं कर सकता।

मिलते हैं रामू स्वामी से
आइए आपको मिलवाते हैं स्वामी रामतीर्थ भूमानिकेतन मठ में तैनात कोतवाल राम देवाश्रम रामू स्वामी से। यूं तो रामू स्वामी अन्य दण्डी स्वामियों की तरह एक दण्डी स्वामी ही हैं, मगर मठ के महंत ने इन्हें कोतवाल की पदवी दे रखी है। कोतवाल बनाए गए राम स्वामी के अंडर में पांच मुंशी तैनात किए गए हैं। ये मुंशी भी दण्डी स्वामी ही हैं और मठ के अंदर सारा काम कोतवाल के निर्देश पर ही करते हैं। इनमें शिफ्टवार दो मुंशी की ड्यूटी सुबह व दो की ड्यूटी रात में लगाई जाती है। बाकी बचे हुए एक मुंशी को मठ के महंत के पेशकार के रूप में लगाया जाएगा। पेशकार के रूप में लगाए मुंशी का काम महंत के प्रोग्राम की डिटेल मेन्टेन करना, महंत को उनके कार्यक्रमों की जानकारी से अपडेट करना व मिलने के आने वालों को महंत से पूछने के बाद निर्देशानुसार मुलाकात करा है। ड्यूटी पर लगाए गए दो मुंशी का काम मठ के अंदर आने वाले अराजकतत्वों या मवेशियों को रोकने का है।

कोतवाल करते हैं संत भगवान का आह्वान
मठ के कोतवाल संत महात्माओं का मोबाइल नंबर अपने पास रखते हैं। आयोजित भण्डारे में महंतों को बुलाने का निर्देश महंत से मिलते ही कोतवाल संत महात्माओं क आह्वान कॉल करके करते हैं। सूचना पर भण्डारे में पहुंचे महात्माओं को पंगत लगवाना व सभी को प्रसाद का वितरण कराने की जिम्मेदारी भी कोतवाल की ही होती है। पंगत में बैठा कोई भी संत तब तक प्रसाद ग्रहण नहीं कर सकता जबतक कि कोतवाल पंगत की हरीरी बोलते हुए जयकारा न लगवा दें। कोतवाल द्वारा लगवाए गए जयकारा के बाद ही संत भगवान प्रसाद ग्रहण करते हैं। हर एक मठ की एक वषरें पुरानी परंपरा बताई जाती है।

घंटा बजते ही हो जाते हैं अलर्ट
मठ में आरती हो या सुबह शाम नाश्ते का समय। कोतवाल द्वारा घंटा बजाते ही सभी अलर्ट हो जाते हैं। आरती के समय मठ में कोतवाल घंटा बजा कर कल्पवासियों को जानकारी दी जाती है। मठ में कल्पवास करने वाला जो भी व्यक्ति आरती में नहीं पहुंचता बाद आरती कोतवाल उसके टेंट में जाकर कारण जानने की कोशिश करते हैं। वह यह पता लगाने का प्रयास करते हैं कि कल्पवास करने वाला व्यक्ति किसी मुसीबत में तो नहीं है।

आश्रम हो या मठ कोतवाल और मुंशी की व्यवस्था वषरें से चली आ रही है। यह व्यवस्था संचालन का एक अहम हिस्सा है। मैं हूं या किसी अन्य मठ के महंत सारा काम अकेले तो देख नहीं सकते। इस लिए एक जिम्मेदारी सभी को पद देकर बांट दी जाती है। जिसका वे निर्वहन करते हैं।

-श्री-श्री 108 बिहारी स्वरूप महाराज

 

 

Posted By: Inextlive