बात आई उबलते मुद्दों पर कड़क बात की तो कोई भी चुप नहीं रहा। सोमवार को इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के संघटक महाविद्यालय राजर्षि टंडन महिला महाविद्यालय में आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर टी-प्वाइंट डिस्कशन राजनी-टी का आयोजन किया गया। इसमें छात्राओं संग मौजूद टीचर्स ने दिल खोलकर बात की। उन्होंने बताया कि आगामी चुनाव में वोटिंग से पहले उनके दिमाग में कौन-कौन से इश्यूज हैं। जिनके आधार पर वो अपना वोट डिसाइड करेंगे।

देश में ईव टीजिंग की घटनाओं पर उबली

बातचीत की शुरुआत देश में होने वाली ईव टीजिंग की घटनाओं से हुई तो सभी ने अपना अपना दर्द बताया। कुछ छात्राओं ने बाकायदा खड़े होकर खुद के साथ होने वाली घटनाओं के बारे में बताया। उनका कहना था कि सड़क पर हर आंख उन्हें घूरती है। कोई भद्दे कमेंट्स पास करता है तो कोई इशारे करने से बाज नहीं आता। कुछ छात्राओं ने बताया कि उन्होंने इसकी शिकायत थाने तक जाकर करने की हिम्मत दिखाई तो वहां का रिस्पांस भी ऐसा रहा, जिससे उनकी हिम्मत जवाब दे गई। छात्राओं ने पूरजोर तरीके से कहा कि लड़के तो छेड़छाड़ की घटनाओं में शामिल ही हैं। बीते कुछ समय में यह प्रचलन तेजी से बढ़ा है कि अब 50 साल की उम्र पार करने वाले भी इसमें शामिल हैं।

बदले टीचर्स के चेहरे के भाव

इस दौरान कुछ छात्राओं ने जोर देकर कहा कि केवल लड़कियों ही नहीं, महिलाओं को भी इसे फेस करना पड़ रहा है। इसपर डिस्कशन के मौजूद टीचर्स के चेहरे के भाव भी बदलने लगे। वुमन टीचर्स ने भी कहा कि उन्हें भी इस तरह की चीजें फेस करनी पड़ती हैं। युवाओं का नेतृत्व कर रही प्रिंसिपल डॉ। रंजना त्रिपाठी ने कहा कि महिलाएं कार से जा रही हैं और कहीं भीड़ में फंस जाएं तो कमेंट पास होता है कि अरे, आप कहां से भीड़ में आ गई ? उन्होंने इसे भी एक तरह से छेड़छाड़ का हिस्सा बताया।

मीटू को आगे तक ले जाने की है जरूरत

ईव टीजिंग से शुरु हुई बात मीटू कैम्पेन तक गई तो छात्राओं ने कहा कि हॉलीवुड में जब इस कैम्पेन की शुरुआत हुई तो किसी ने सोचा भी नहीं था कि यह पूरी दुनिया में छा जाएगा। छात्राओं के मुताबिक इस कैम्पेन को सफलता मिलने का बड़ा कारण महिलाओं के भीतर छुपा हुआ आक्रोश था। छात्राओं व टीचर्स ने कहा कि भारत में भी मीटू कैम्पेन को अच्छा रिस्पांस मिला। लेकिन इसे दबाने के लिए हर स्तर पर उतना ही प्रयास भी किया गया। उन्होंने कहा कि यदि सोसायटी में इस तरह की चीजों पर शिकंजा कसना है तो मीटू की ही तरह किसी न किसी को कुछ अलग हटकर करना होगा।

कड़क मुद्दा

भारत में मीटू कैम्पेन को अच्छी शुरुआत मिली थी। लेकिन इसे जल्द ही दबा दिया गया। सरकार को चाहिए कि वो मीटू के दायरे में आए लोगों की गंभीरता से जांच पड़ताल करे। जिससे सोसायटी को ऐसा सबक मिल सके कि फिर कोई ऐसी घटनाओं में शामिल होने से पहले कई बार सोचने पर मजबूर हो जाए।

मेरी बात

ईव टीजिंग के लिए कुछ हद तक लड़कियां भी जिम्मेदार हैं। पहनावे की छूट के नाम पर ऐसी ओछी हरकत न करें, जिससे ऐसी घटनाओं को आमंत्रण मिले। किसी भी ईव टीजिंग के मामले में आपकी बॉडी लैंग्वेज और वे ऑफ टॉकिंग जैसी चीजें भी इम्पार्टेट हैं। प्रशासन को घटनाओं से जुड़े कानूनों के पालन के मामले में भी ईमानदार होना होगा, तब इस समस्या से निजात मिल सकेगी।

कीर्ति तिवारी

नकाब में हों या जींस टॉप में फर्क नहीं पड़ता- सतमोला बॉक्स

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लड़कियां नकाब में हों या जींस टॉप में, छेड़ने वाले साड़ी पहने महिला से भी अभद्रता करते हैं। मुंह ढंककर निकलने वाली लड़कियों का बाइक से पीछा किया जाता है। ऐसे समय में लड़कियां बोल्ड स्टेप नहीं ले पाती। कानून तो बहुत हैं। लेकिन सोसायटी को बेहतर तरीके से एजुकेट करने की जरुरत है। सोचने वाली बात है कि उत्तर भारत की अपेक्षा दक्षिण भारत में वुमेंस के लिए बेहतर माहौल क्यों और कैसे है ?

देश में छात्रसंघ चुनावों पर बैन के फेवर में मैं नहीं हूं। क्योंकि, यहीं से देश का नेतृत्व करने वाले नेता भी निखरकर निकलते हैं। लेकिन छात्रसंघ चुनावों में वायलेंस नहीं होना चाहिए। प्रशासन चाह ले तो इन चुनावों में घटनाएं नहीं हो सकती हैं।

सिमरन केशरवानी

लड़कियों की भागीदारी छात्रसंघ चुनावों में बढ़ना जरूरी है। कोई लड़की चुनाव लड़ने की बात करती है तो लड़के तो इसका मजाक बनाते ही हैं। लड़कियां भी अच्छा रिस्पांस नहीं देती। जबकि छात्रसंघ चुनाव से मेनस्ट्रीम की पॉलिटिक्स में जाने का रास्ता बड़े स्तर पर लड़कियों के लिए खुलता है।

मानसी शुक्ला

हायर एजुकेशन को स्ट्रांग बनाने के लिए प्रैक्टिकल नॉलेज पर जोर दिए जाने की जरूरत है। हो यह रहा है कि स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटी में टीचर्स थियरी पढ़ाने पर ज्यादा फोकस करते हैं। इससे स्टूडेंट के पास जानकारी तो होती है। लेकिन उसे ग्राउंड लेवल तक कैसे फॉलो करना है, यह उसे नहीं आता ?

मंतशा मेंहदी

गवर्नमेंट ने स्किल डेवलपमेंट के लिए कोर्स तो लांच कर दिए। लेकिन इसके लिए संसाधनों का घोर अभाव है। स्टूडेंट्स से सिर्फ मोटी फीस ली जाती है। कोई ऐसा मॉनिटरिंग सिस्टम भी नहीं है जो स्किल डेवलपमेंट कोर्सेस के नाम पर पैसा वसूलने वालों पर कार्रवाई करे।

अनुपमा मिश्रा

प्रत्येक एजुकेशन इंस्टीट्यूशंस में काउंसिलिंग सेंटर का होना जरूरी है, जिससे स्टूडेंट को कोई प्रॉब्लम हो तो वह अपनी बात रख सकें। लेकिन गवर्नमेंट ने इसकी व्यवस्था खास तौर पर सभी सरकारी स्कूलों में नहीं की है। सरकारी स्कूलों में ऐसी व्यवस्थाओं पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है।

प्रिया शर्मा

मेरे विचार में 10 फीसदी आरक्षण देकर सही काम किया गया। इससे सवर्ण कैटेगरी के पिछड़े तबके से आने वाले स्टूडेंट्स को आगे बढ़ने में मदद मिलेगी। लेकिन यह ध्यान देने वाली बात है कोई भी इसका बेजा लाभ न उठा सके। आरक्षण के सही तरीकों को फॉलो किए जाने की जरूरत है।

शालिनी

शिक्षा का प्राइवेटाइजेशन की ओर बढ़ना चिंता की बात है। इससे सबसे ज्यादा नुकसान उन छात्र-छात्राओं को हो रहा है जो गरीब तबके से आते हैं। अर्निंग विद लर्निग का फॉर्मूला उनके लिए है जो सम्पन्न हैं। लेकिन अब तो सभी को इसके लिए फोर्स किया जा रहा है।

डॉ। शालिनी सिंह

अब समय आ गया है कि आरक्षण की समीक्षा की जाए। आरक्षण का लाभ पीढ़ी दर पीढ़ी जो परिवार उठा रहे हैं, उन्हें इससे बाहर किया जाना चाहिए। यह सोचने वाली बात है कि आरक्षण से जिनका रास्ता रुकता है। वे बड़ी मेहनत के बाद अपने टारगेट तक पहुंचते हैं। इससे किसी का वास्तविक हक नहीं मरना चाहिए।

डॉ। शमेनाज

गवर्नमेंट की कोई भी प्लानिंग को फेल करने में सबसे अहम रोल हम नागरिकों का भी है। हम बातें तो करते हैं। लेकिन उसे कुछ देर बाद भूल भी जाते हैं। सरकार तो अपना काम कर ही रही है। हमें जरूरत है कि हम भी एक अच्छे नागरिक की तरह व्यवहार करें।

डॉ। अलका प्रकाश

Posted By: Inextlive