- दून के शिशु गृह में बदहाल जीवन जी रहे हैं पांच दिव्यांग बच्चे

- जब भी कोई अफसर इंस्पेक्शन के लिए आता है तो छिपा दिए जाते हैं बच्चे

देहरादून। दून के शिशु गृह में रह रहे पांच मासूम पहले ही किस्मत का दंश झेल रहे हैं, वे दिव्यांग हैं, लेकिन सिस्टम की लापरवाही ने उनकी दिव्यांगता को उनके लिए अभिशाप बना दिया है। शिशु गृह में इन बच्चों की बदहाली किसी को नजर न आए इसके लिए जब भी कोई अफसर यहां की विजिट करता है, तो बच्चों को कमरों में बंद कर दिया जाता है। बाल आयोग की टीम ने मंडे को जब शिशु गृह का इंस्पेक्शन किया तो पता चला कि यहां पांच दिव्यांग बच्चे भी शरण लिए हुए हैं।

ऐसे आए सामने

सिस्टम की अनदेखी की मार झेल रहे ये बच्चे तब सामने आए जब मंडे को बाल अधिकार संरक्षण आयोग की टीम ने शिशु गृह का इंस्पेक्शन किया। इंस्पेक्शन के दौरान जब बच्चे कमरे से रेंगते हुए बाहर निकले तो आयोग की टीम इन्हें देखती रह गई। टीम ने शिशु गृह की सुपरिटेंडेंट से पूछा कि टीम कई बार शिशु गृह का दौरा कर चुकी है, लेकिन ये बच्चे कभी नहीं दिखे। इन्हें इंस्पेक्शन के दौरान कहां छुपा दिया जाता था।

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चार पैरों से दिव्यांग, एक मानसिक कमजोर

शिशु गृह में रह रहे चार मासूम पैरों से दिव्यांग हैं। वे अपने पैरों पर खड़े भी नहीं हो पाते। यहां रह रही एक बच्ची मानसिक रूप से कमजोर है। लेकिन, इनकी ओर प्रबंधन ध्यान नहीं देता। इनकी बदहाली कहीं उजागर न हो जाए, इसलिए जब भी बाल आयोग की टीम या कोई उच्चाधिकारी यहां इंस्पेक्शन के लिए आता है तो बच्चों को छुपा दिया जाता है।

बच्चों को क्यों छिपाता है स्टाफ

पांचों दिव्यांग बच्चों को हॉस्पिटल ले जाकर चेक-अप कराने, उन्हें दवा दिलाने जैसे झंझटों से बचने के लिए शिशु गृह प्रबंधन द्वारा उन्हें उच्चाधिकारियों के सामने नहीं आने दिया जाता। शिशु गृह की कई मामलों में पहले भी लाचारी उजागर होती रही है, ऐसे में किरकिरी से बचने के लिए वे बच्चों को सबकी नजर में नहीं आने देते।

कृत्रिम अंग का करते इंतजा

ये सभी बच्चे 10 वर्ष से कम उम्र के हैं। बाल आयोग की सदस्य सीमा डोरा ने कहा कि हर महीने निकेतन में डॉक्टर चेक-अप के लिए आते हैं। लेकिन, इन बच्चों का प्रकरण कभी भी आयोग तक नहीं पहुंचा। वे कहती हैं कि अगर इनका प्रकरण आयोग तक पहले पहुंच जाता तो आज तक बच्चों को कृत्रिम अंग लगा दिए जाते और वे चल फिर पाते। प्रबंधन ने इन बच्चों का मामला हमेशा छिपा कर रखा।

सरकारी सिस्टम ही बेहाल

सरकार की ओर से दिव्यांगों के लिए कई योजनाएं चलाई जा रही हैं। जगह-जगह कैंप लगाकर दिव्यांगों को फ्री में कृत्रिम अंग दिए जाते हैं। उनकी आजीविका के लिए उपाय किए जाते हैं। लेकिन, शिशु गृह में रह रहे ये बच्चे इस सबसे वंचिंत हैं और इन्हें वंचिंत रखने में शिशु गृह प्रबंधन की लापरवाही सबसे बड़ी है।

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हमने 6 माह पहले भी शिशु गृह का इंस्पेक्शन किया था। तब ये बच्चे यहां नहीं दिखाई दिए। शिशु गृह प्रबंधन द्वारा न जाने इन्हें कहां छिपा दिया जाता था। मंडे को फिर इंस्पेक्शन किया तो अचानक ये बच्चे रेंगते हुए कमरे से बाहर निकले। बच्चों को सही उपचार दिलाए जाने के निर्देश दे दिए गए हैं।

- सीमा डोरा, सदस्य, बाल अधिकार संरक्षण आयोग

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बच्चों को करीब तीन से चार साल शिशु निकेतन में हो गए हैं। इनकों यहां आने वाली राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम की टीम की ओर से देखा गया है। अब बच्चों को जल्द ही उपचार दिलाया जाएगा।

- मीना बिष्ट, जिला प्रोबेशन अधिकारी

Posted By: Inextlive