- पॉलीथिन से चोक हो रहे सीवर और नालियां दे रहीं बीमारियां

- पॉलीथिन से चोक सीवर व नालियों में पनप रहे डेंजर्स जीवाणु

- डायरिया, स्किन, पीलिया, मच्छर जनित रोग से परेशान जनता

- पॉलीथिन की रोक के लिए प्रशासन और शासन दोनों ही ढीले

- बाजार में मिलने वाली प्रिंटेड पॉलीथिन में खतरनाक केमिकल

Meerut: लोगों की लाइफ अपनी जगह बना चुकी पॉलीथिन धीरे-धीरे जहर बनकर उभर रही है। जहां शहर में रोज सैकड़ों टन प्लास्टिक वेस्ट जेनरेट होता है। वहीं इसके द्वारा एनवायरमेंट पर खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है। इस वेस्ट मैनेजमेंट की प्रॉपर व्यवस्था नहीं होने से यह कचरा साफ-सफाई के साथ एनवायरमेंट को दूषित कर रहा है। नदी, नाले और सीवर को चोक हो रहे हैं। इसके बाद इकट्ठे गंदे पानी में पनपने वाले बैक्टीरिया लोगों के लिए बीमारियां पैदा कर रहे हैं। जनता भी इससे अनभिज्ञ नहीं है, लेकिन कोई आगे हाथ बढ़ाने को तैयार नहीं है।

सबसे बड़ी समस्या

मेरठ में यूपी पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के रीजनल बीबी अवस्थी की मानें तो शहर में रोज करीब पांच सौ से छह सौ टन प्लास्टिक वेस्ट निकलता है। लेकिन यहां नगर निगम और प्राधिकरण के पास इससे निपटने के लिए कोई प्रबंध नहीं है। जिसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने भी काफी पहले आदेश दिए हैं कि नगर निगम और प्राधिकरण इसके लिए जिम्मेदार हैं। प्लास्टिक से होने वाले पॉल्यूशन को रोकने के लिए नगर निगम को पॉल्यूशन डिपार्टमेंट की ओर से लिखा भी गया है। उसके बाद भी नगर निगम के आजतक इसके लिए कुछ नहीं कर पाया।

ना कलेक्शन ना ही डिस्पोज

नगर निगम या प्राधिकरण के पास ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है कि वह इस प्लास्टिक वेस्ट को डिस्पोज कर सके। अभी तक लोगों को वेस्ट मैनेजमेंट की ना तो जानकारी दी गई है और ना ही आजतक नगर निगम की ओर से वेस्ट मैनेजमेंट की शुरूआत की गई है। जहां घर से ही वेस्ट को अलग करके उसके डिस्पोज और रि-साइकिल की व्यवस्था हो सके। पॉल्यूशन डिपार्टमेंट में एक भी ऐसी कंपनी रजिस्टर्ड नहीं है जो पॉली बैग बनाती हो। लेकिन इंटरनेट सर्च करके देखें तो पॉलीथिन बैग बनाने वाली दर्जनों कंपनियां मिल जाएंगी। मेरठ में बिना किसी जानकारी के पॉलीथिन तैयार की जा रही हैं।

प्लास्टिक कचरे से बढ़ रहा खतरा

प्लास्टिक कचरा नदी, नालों और सीवर में पहुंच रहा है। सीवर और नालियां चोक होने से जलभराव होता है। जिसमें खतरनाक बैक्टीरिया पैदा होते हैं और इससे डायरिया, पीलिया, उल्टी, हेपेटाइटिस जैसी बीमारियां होती हैं। मच्छर पैदा होते हैं और कई खतरनाक बीमारियां होती हैं। यही नहीं सीवर चोक होने से पानी सड़कों पर आता है और सड़क टूट जाती हैं। शहर में मौजूद नालों का कूड़ा करकट सफाई के दौरान निकलता है और सड़क पर फेंक दिया जाता है। जिसमें पॉलीथिन काफी मात्रा में होती है। इसमें भरा पानी सूखता नहीं है और सड़क खराब हो जाती है।

बायोडिग्रेडेबल सिस्टम

पॉलीथिन बायोडिग्रेडेबल नहीं होती, इसलिए सबसे बड़ी समस्या पैदा करती है। जिस तरह नेचुरल प्रोडक्ट्स गल जाते हैं इसमें वो स्थिति नहीं बनती। केमिस्ट्री के प्रोफेसर आरके सोनी का कहना है कि अगर पॉलीथिन में नेचुरल प्रोडक्ट यानि स्टार्च मिक्स कर दिया जाए तो इसको बायोडिग्रेडेबल बनाया जा सकता है। जिसमें फंजाइम स्टार्च को खा लेते हैं, लेकिन फिर भी इसमें पॉलिमर वैसा ही बच जाता है। इसलिए इसमें स्टार्च को लैक्टिक एसिड के साथ यूज कर पॉलीलैक्टिक एसिड तैयार किया जाए और फिर इसको प्लास्टिक व पॉलीथिन की तरह यूज कर सकते हैं। यह सौ फीसदी बायोडिग्रेडेबल होता है।

घर से ही हो जागरूकता

शहर में कई ऐसी संस्थाएं हैं जिन्होंने पॉलीथिन को बैन करने की मांग की। साथ ही लोगों को इसके प्रति जागरूक भी किया। इसमें ड्रगिस्ट एंड केमिस्ट एसोसिएशन ने खुद थैले बनवाए और लोगों को बांटे। साथ ही जागरूकता के लिए स्टीकर भी बनवाए। वहीं ग्रीन प्लानेट, मानसी संस्था, कोशिश व सुरभि संस्था ने भी इसके लिए काफी कोशिश की, लेकिन पॉलीथिन का यूज नहीं रुक पाया। सरकार ने कानून बनाया, जिसका मखौल उड़ाया जा रहा है। तंबाकू तो कागज पैक कर दिया गया, लेकिन बाकी खाने की वस्तुएं आजतक पॉलीथिन में ही आ रही हैं।

घर से वेस्ट मैनेजमेंट

वेस्ट मैनेजमेंट के लिए वेस्ट सेग्रिगेशन जरूरी है। अगर बायोडिग्रेडेबल और नान-बायोडिग्रेडेबल वेस्ट को हाउस होल्ड लेवल पर ही अलग कर दिया जाए तो वेस्ट मैनेजमेंट काफी आसान हो सकता है। जिससे वेस्ट को मैनेज करने में आसानी होगी। साथ ही यह कचरा नदी और नालों में नहीं जाएगा।

- ड्राई और गीले वेस्ट के लिए किचन में अलग-अलग कंटेनर रखें।

- प्लास्टिक को ड्राई वेस्ट कंटेनर में डालने से पहले साफ करके सुखा लें।

- प्लास्टिक को कंटेनर में डालने से पहले देख लें।

- घर पर कचरा लेने आने वाले को अलग-अलग कचरा दें, ताकि उसको पॉलीथिन छांटने की आवश्यकता ना पड़े।

समस्या का निदान नहीं

- नगर निगम को भी इसके लिए व्यवस्था करनी चाहिए। लेकिन आजतक कुछ नहीं किया गया।

- जेएनएनयूआरएम ने घर से वेस्ट को कलेक्ट करने और फिर वेस्ट से ऊर्जा बनाने का प्लान बनाया था, लेकिन वह भी मेरठ में फेल हो गया।

- पॉल्यूशन डिपार्टमेंट केवल रिपोर्ट बनाने और निर्देश देने में ही है। जबकि सख्ती से इसका पालन कराए।

- म्यूनिसिपल और प्राधिकरण आजतक कुछ ऐसा नहीं कर पाए कि वेस्ट मैनेजमेंट कर सकें।

ये होनी चाहिए सुविधा

इंटीग्रेटेड सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट के तहत

- म्यूनिसिपल सॉलिड वेस्ट का ऑर्गनाइज्ड डोर टू डोर कलेक्शन और सेग्रिगेशन

- सेग्रिगेशन वेस्ट का प्राइमरी कलेक्शन और स्टोरेज

- ओपेन हीप के बजाय मूवेबल कवर्ड कंटेनर की व्यवस्था

- सड़कों और नालियों की सही तरीके से सफाई

- कवर्ड व्हीकल्स में वेस्ट का ट्रांसपोर्टेशन किया जाए

-- म्यूनिसिपल सॉलिड वेस्ट के हायर रि-साइक्लिंग के लिए मल्टीपल प्रोडक्ट रिकवी प्रोसेसिंग फैसिलिटी

प्लास्टिक वेस्ट को डिस्पोज करने की व्यवस्था के लिए नगर निगम को बार-बार कहा जा रहा है। सैकड़ों टन निकलने वाले इस वेस्ट के मैनेजमेंट की नगर निगम के पास कोई व्यवस्था नहीं है। इसके कारण ही पॉल्यूशन में बढ़ोत्तरी हो रही है। जब तक सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट शुरू नहीं होगा तब तक लोगों की परेशानी जस की तस रहेगी। साथ ही जो कंपनियां चोरी-छुपे पॉलीथिन बना रही हैं उन पर भी लगाम कसी जाएगी।

- बीबी अवस्थी, मेरठ रीजनल ऑफिसर, यूपी स्टेट पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड

Posted By: Inextlive