PATNA : मधेपुरा स्थित भेलवा में एक किसान परिवार में जन्मे राज शेखर का मधेपुरा टू मुंबई तक का सफर काफी इंटरेस्टिंग रहा है. 'तन्नू वेड्स मन्नू' में अपने गीतों का जादू चलाने से पहले इनकी लाइफ काफी वेरायटी भरी रही है...


लाइफ स्टेशन पर बने एक वेटिंग रूम की तरह है जिसमें सभी को चंद घंटे गुजारने हैं। अब ये आप पर डिपेंड करता है कि आप ये वक्त कैसे गुजारेंगे, वहां मौजूद गंदगी और अव्यवस्था को कोसते हुए या फिर उसे एक व्यवस्थित व साफ-सुथरी जगह बनाकर। ये मानना है अपने आप को एक एक्सीडेंटल लिरिसिस्ट के रूप में डिस्क्राइब करने वाले हमारे 'मन्नू भइया' यानी लिरिसिस्ट राज शेखर का। मधेपुरा स्थित भेलवा में एक किसान परिवार में जन्मे राज शेखर का मधेपुरा टू मुंबई तक का सफर काफी इंटरेस्टिंग रहा है।

और फिर लिखे शादी के गीत
'तन्नू वेड्स मन्नू' में अपने गीतों का जादू चलाने से पहले इनकी लाइफ काफी वेरायटी भरी रही है, कभी इंजीनियरिंग की प्रिपरेशन, तो कभी थिएटर का चस्का। कभी सुजोय घोष और आनंद जैसे बॉलीवुड डायरेक्टरों को असिस्ट करना, तो कभी एफ्रीका जा कर डॉक्यूमेंटरीज शूट करना। पर, दिल चूंकि कविताओं और नज्मों से लगा था, सो ये सब रास ना आया.

पटना में हुआ लिट्रेचर से प्यार
राज बताते हैं कि जब छोटा था तब तो टीचर या फिर एक रेडियो जॉकी बनना चाहता था। पर, भागलपुर के टीएनबी कॉलेज से इंटरमीडिएट करने के बाद मां-पापा की ख्वाहिश इंजीनियरिंग प्रिपरेशन के लिए पटना ले आई। लेकिन मैथ्स के फॉर्मूले रास नहीं आए और मैं क्लास बंक करके अशोक राजपथ पर जा कर लिट्रेचर और आट्र्स की किताबें पढऩे लगा। यहीं पर मुझे लिट्रेचर से प्यार हो गया और मैंने अपने पैरेंट्स को आट्र्स पढऩे के लिए कंविंस किया। मेरे पापा शुरू से ही बहुत अंडरस्टैंडिंग हैं, सो वो मान गए। राज कहते हैं कि अच्छा ही हुआ कि मैं इंजीनियर नहीं बना, क्योंकि अगर बनता तो शायद दुनिया का सबसे खराब इंजीनियर होता.

KMC से 'तन्नू वेड्स मन्नू' तक
मां-पापा को कंविंस कर राज दिल्ली चले आए, यहां दिल्ली यूनिवर्सिटी के किरोड़ीमल कॉलेज (केएमसी) से हिंदी लिट्रेचर में बीए और फिर एमए किया। इसी दौरान उन्हें थिएटर का चस्का लगा और वो केएमसी की नाट्य संस्था 'द प्लेयर्स' से बतौर अभिनेता और निर्देशक जुड़ गए। साथ ही अपने मास्टर्स के दौरान वो NDTV के लिए न्यूज राइटिंग भी करने लगे थे, पर जल्द ही इससे भी बोर हो गए। राज की मानें तो पत्रकारिता में वो सेंसिटिविटी नहीं थी, जिसकी उन्हें तलाश थी। सो ये तलाश उन्हें मुंबई ले आई। मुंबई पहुंच कर शुरू हुआ जाने-माने डायरेक्टरों को असिस्ट करने का दौर, मगर फिर भी कुछ कमी थी। आखिरकार एक दिन तन्नू और मन्नू की शादी के गीत लिखने का ऑफर मिल ही गया.

In conversation with Parul Prashun

Posted By: Inextlive