मरीजों की जिंदगी से खिलवाड़ कर रहा मेडिकल कॉलेज

बायो मेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट की उड़ रहीं धज्जियां

खुले में पड़े ब्लड सैंपल ट्यूब्स, यूरिन बैग्स, एचआईवी समेत गंभीर बीमारियों का खतरा

Meerut. मेडिकल कॉलेज में बायो मेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट के नाम पर जबरदस्त खेल चल रहा है. डिस्पोजल के नाम पर कंपनी और अस्पताल मैनेजमेंट हर महीने शासन को करोड़ों का चूना लगा रहे हैं. मोटी कमाई के चक्कर में मरीजों की जिंदगी से खिलवाड़ करने में भी कतई गुरेज नहीं किया जा रहा है. यहां कागजों में ही वेस्ट मैनेजमेंट का डिस्पोजल चल रहा है जबकि हकीकत यह हैं कि पूरा अस्पताल परिसर कूड़े से अटा है. मेडिकल वेस्ट डिस्पोजल को लेकर दैनिक जागरण आई नेक्सट की पड़ताल में इसका खुलासा हुआ है.

ये है स्थिति

बायो मेडिकल वेस्ट डिस्पोजल को लेकर शासन की ओर से सख्त गाइडलाइन है, जबकि मेडिकल कॉलेज में सिरे से मानकों की धज्जियां उड़ रही हैं. ब्लड सैंपल ट्यूब, यूरिन बैग्स, यूज्ड बैंडेज, कॉटन, यूज्ड सिरिंज, ग्लव्स समेत तमाम चीजें बाहर ही बिखरी पड़ी हैं. यहां आने वाले सैकड़ों मरीज हर दिन इनके संपर्क में आते हैं. जिसकी वजह से मरीजों में इंफेक्शन का खतरा कई गुना बढ़ जाता है. यही नहीं इनसे एचआईवी समेत गंभीर बीमारियों का संक्रमण होने का डर है.

लाखों का खेल

बायो मेडिकल वेस्ट के निस्तारण के लिए यूपीएचएसएससी के तहत प्राइवेट कंपनी को मेडिकल कॉलेज का वेस्ट उठाने की जिम्मेदारी दी गई है. यहां हर दिन करीब एक क्विंटल से ज्यादा वेस्ट निकलता है. कंपनी को वेट के हिसाब से कूड़ा उठाने का पेमेंट किया जाता है. एक किलो कूड़ा डिस्पोज करने की दर 16 से 25 रूपये है. इस हिसाब से हर साल लाखों रूपये का बजट शासन की ओर से बायो मेडिकल वेस्ट के लिए जारी किया जाता है.

ये है निर्देश

शासन की ओर से सभी सरकारी व निजी अस्पतालों को बायो मेडिकल वेस्ट निस्तारण की गाइडलाइन पूरी करनी अनिवार्य है. पाल्यूशन कंट्रोल बोर्ड से भी इसका सर्टिफिकेट लेना जरूरी है. हॉस्पिटल से निकलने वाले बायो मेडिकल वेस्ट को रखने के भी अलग नियम हैं. इसके लिए अलग -अलग कलर के डस्टबिन यूज किए जाते हैं.

पीला-सर्जरी में कटे हुए शरीर के भाग, लैब के सैम्पल, खून से युक्त मेडिकल की सामग्री ( रुई/ पट्टी), एक्सपेरिमेंट में उपयोग किये गए जानवरों के अंग डाले जाते हैं. इन्हें जलाया जाता है या बहुत गहराई में दबा देते हैं.

लाल- इसमें दस्ताने, कैथेटर , आई.वी.सेट , कल्चर प्लेट को डाला जाता है. इनको पहले काटते हैं फिर ऑटो क्लैव से डिसइन्फेक्ट करते हैं. उसके बाद जला देते हैं.

नीला या सफेद बैग

इसमें गत्ते के डिब्बे, प्लास्टिक के बैग जिनमे सुई , कांच के टुकड़े या चाकू रखा गया हो उनको डाला जाता है. इनको भी काट कर केमिकल द्वारा ट्रीट करते हैं फिर या तो जलाते हैं या गहराई में दफनाते हैं.

काला

इनमें हानिकारक और बेकार दवाइयां, कीटनाशक पदार्थ और जली हुई राख डाली जाती है. इसको किसी गहरे वाले गढ्डे में डालकर ऊपर से मिट्टी डाल देते हैं.

लिक्विड- इनको डिसइन्फेक्ट करके नालियों में बहा दिया जाता है.

अस्पतालों में डस्टबिन में लगी पॉलिथीन के आधे भरने के बाद इसे पैक करके अलग रख दिया जाता है, जहां इंनफेक्शन के चांस न हो.

पॉल्यूशन डिपार्टमेंट के अनुसार निकले वाला बायो वेस्ट

200-500 बेड वाले रजिस्टर्ड एक हॉस्पिटल से निकलने वाला बायो मेडिकल वेस्ट - 687 केजी/मंथ

500 से अधिक बेड वाले दो रजिस्टर्ड हॉस्पिटल से निकलने वाला बायो मेडिकल वेस्ट - 1576 केजी/मंथ

जिले में दो प्राइवेट एजेंसी

जिले में बायो मेडिकल वेस्ट उठाने का काम दो प्राइवेट एजेंसी कर रही हैं. यही दोनों एजेंसियां डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल समेत जिले के अन्य अस्पतालों व लैबों से निकलने वाले बायोमेडिकल वेस्ट को रोजाना अलग-अलग रंग वाले डिब्बों में भरकर निस्तारण करने को ले जाती हैं.

बायो मेडिकल वेस्ट डिस्पोजल की जिम्मेदारी प्राइवेट कंपनी की है. मेरी नॉलेज में इस तरह का मामला नहीं है. अगर ऐसा हो रहा है तो इसकी जांच कराई जाएगी.

डॉ. आरसी गुप्ता, प्रिंसिपल, मेडिकल कॉलेज

हो सकता है इंफेक्शन

अस्पतालों में खुले में पड़े मेडिकल वेस्ट से इंफेक्शन का खतरा बहुत अधिक होता है. इससे पेट, लीवर, किडनी की बीमारियों समेत एड्स, हेपेटाइटिस जैसी बीमारियां भी फैल सकती है.

डॉ. राजकुमार, सीएमओ, मेरठ

Posted By: Lekhchand Singh