Meerut: फिल्म ‘जॉली एलएलबी’ का कैरेक्टर जगदीश त्यागी मेरठ कालेज से एलएलबी करके निकला है. खैर ये तो ठहरी फिल्म. रियल लाइफ में एलएलबी करने के बाद करियर शुरू करना कैसा होता है? कैसा होता है पहला केस हासिल करना. मुकदमा लडऩा और पहली फीस लेना.....


वकील की लाइफ में struggle होता हैचमचमाती पैंट, सफेद कमीज। टाई। काला कोट। हाथ में फाइलें। चेहरे पर तनाव वाली गंभीरता। कुछ तलाश करती भाव भंगिमा। एक वकील का फस्र्ट लुक पेड़ के नीचे लगा बस्ता। टाइप राइटर की खट-खट। चैंबर में लगी कुर्सियां। किसी केस पर होता डिस्कशन, कचहरी कैंपस में होने का एहसास करा देती है। सैकड़ों स्टूडेंट्स वकालत को प्रोफेशन के तौैर पर चुनते हैं। ग्र्रेजुएशन के बाद एलएलबी करते हैं फिर सपने को साकार करने के लिए कचहरी पहुंचते है। कचहरी में हमारी मुलाकात चाय की कैंटीन में फाइलें के पन्ने पलटते नौैजवान वकील मोहम्मद खालिद खान से होती है। जनाब ने लास्ट ईयर ही वकालत की डिग्री हासिल की हैपहले कॉलेज


खालिद से बात शुरू करें, इससे पहले मेरठ कालेज को जान लें। मेरठ कालेज एलएलबी करने वालों के लिए सबसे पुराने कालेजों में से है। इस कालेज का इतिहास सौ साल से अधिक पुराना है। वेस्ट यूपी में इस कालेज की दबंग छवि से सभी वाकिफ हैं। खालिद मेरठ कालेज से एलएलबी पास करके निकले तो उनको लगा अब वकील बनने का उनका सपना चंद कदम ही दूर है।मैं खालिद

एलएलबी की मेरी पूरी पढ़ाई 2012 में पूरी हो गई। मेरी चिंता थी इलाहाबाद में रजिस्ट्रेशन कैसे होगा। सफर तो अब शुरू हुआ था। किससे बात करूं? मेरे तो घर में भी किसी ने वकालत की पढ़ाई नहीं की थी। जैसे तैसे रजिस्ट्रेशन हुआ। मेरे सामने वकीलों की फौज में खुद बेहतर सिपेहसालार साबित करना था। जो बड़े-बड़े धुरंधरों के सामने बहुत मुश्किल था। इस बात से मैं पूरी तरह से वाकिफ था कि कचहरी में बैठे सीनियर्स अपने सामने मुझे टिकने नहीं देंगे। इसके लिए मुझे उन्हीं के बीच में रहकर सीखना होगा। वो सब सहन करना होगा जो कुंदन बनने से पहले सोना सहन करता है। जब कचहरी आया

मैंने जैसे ही पहला कदम कचहरी में रखा, लगा किसी युद्ध भूमि में आ गया हूं। पेड़ के नीचे या छप्पर के नीचे बैठे वकील उन सिपाहियों से कम नहीं लग रहे थे, जो एक केस पाने और जीतने के लिए जान की बाजी लगाने को तैयार थे। खैर मैं आगे बढ़ा। देखा कई नए वकील अपने सीनियर्स के अंडर में काम कर रहे थे। कुछ ऐसे भी थे जो एक कदम आगे बढ़ते हुए छोटे चैंबर तक पहुंच गए थे। फिर मैंने भी अपना तंबू जमा लिया और इस सपनों को पूरा करने की कोशिश कर रहा हूं। और हां, जब भी किसी केस में दिक्कत होती है तो अपने सीनियर्स को याद करना कभी नहीं भूलता।वो नर्वसनेसफिर वो दिन आ गया जब मैंने पहली बार कोर्ट में कदम रखा। भाई मेरे लिए तो ये एग्जाम जैसा था। कोर्ट में कदम रखते हुए मुझमें जोश था, उसी तरह थोड़ा नर्वस भी हुआ। मैं खुश हूं कि मैं अपने पहले एग्जाम फेल नहीं हुआ।मेरी यूएसपीमैं उन वकीलों की तरह नहीं हूं, जो अपील को एप्पल लिखते हैं और अपनी ही कहते हैं, क्लाइंट की बिल्कुल नहीं सुनते। क्लाइंट से करीबी बनाना ही मेरी यूएसपी है। जब तक आप क्लाइंट के मन के अंदर तक पूरी तरह से पहुंच नहीं जाते, तब तक केस को नहीं समझ सकते हैं.   शुरुआत में काटे नहीं कटते दिन मेरा पहला केसमुझे रजिस्ट्रेशन कराए पूरे तीन महीने हो गए थे। कोई केस हाथ नहीं आया था। दिन काटने मुश्किल हो रहे थे। पहला केस कैसे मिला। पेश है नाट्य रूपांतरण घड़ी की सुई दो बजने का इशारा कर रही थी। खालिद कचहरी में सडक़ के किनारे होटल में ही अपना टेंपरेरी ऑफिस में बैठे थे। एक मुवक्किल अमानउल्ला खां खोजते उनके पास आए।मुवक्किल - आपका नाम ही एडवोकेट खालिद है। खान - हां, बताएं?
मुवक्किल - क्या बताऊं बेटा बड़ी मुश्किल में हूं। मेरी प्रॉपर्टी जहीर नाम के आदमी ने कब्जा कर लिया है। खान - आप पहले बताएं, केस कहां का है?मुवक्किल - केस तो मेरठ का ही है। खान - आप सारे कागजात लाएं हैं?मुवक्किल - हां, ये रहे सारे कागजात।(एडवोकेट खालिद एक मंझे हुए खिलाड़ी की तरह फाइल के पन्नों को पलटने लगते हैं। अपने चेहरे पर गंभीर भाव लाते हुए)खान - ठीक है। इसे स्ट्डी करता हूं। आप मुझे कल इसी टाइम पर मिलिए। अगले दिन एडवोकेट खालिद ने मुवक्किल को अपने ऑफिस की आते देखा तो होटल के छोटू को दो चाय का ऑर्डर दिया। इतने में मुवक्किल भी सामने थे।मुवक्किल - खान साहब नमस्तेखान - आइए बैठिये।  मुवक्किल - साहब, आपने मेरे सारे डॉक्यूमेंट्स तो स्टडी कर लिए होंगे। खान - हां देखें है। थोड़ा गंभीर होते हुए एडवोकेट ने कई सवालों की झड़ी लगा दी। और इत्मीनान से उन सभी जवाबों को सुना और अपनी कॉपी में नोटिंग करते रहे। खान - आप चिंता मत किजिए। हम केस जरूर जीतेंगे। मुवक्किल - शुक्रिया वकील साहब। मैं बड़ी उम्मीदों के साथ आया हूं। बाहर निकलने से पहले, आपकी फीस क्या होगी?
खान - आप मुझे तीन हजार रुपए दे दीजिएगा।करीब एक महीने में अपनी काबिलियत से एमके खान केस जीतते हैं और अपने मुवक्किल को जमीन दिलाते हैं।(मो। खालिद ने बताया कि उन्होंने पहला केस बिना वकालतनामे के लड़ा। फीस तीन हजार मिले। आधे सीनियर को दिए.) 2013 फरवरी से एमके खान अपना दूसरा केस लड़ रहे हैं। ये मनोज कुमार के चेक बाउंस का केस है जिसे वो मजबूती से लड़ रहे हैं।जॉली एलएलबी में मेरठसुभाष कपूर निर्देशित जॉली एलएलबी मेरठ की पृष्ठभूमि पर ही आधारित फिल्म है। जिसमें मेरठ कॉलेज से एलएलबी कर एक वकील के शुरुआती स्ट्रगल को कमेडी के रूप में दिखाया गया है। यहां की भाषा को भी डॉयलाग में दिखाया गया है। फिल्म का दिल्ली हाईकोर्ट में वकीलों ने विरोध भी किया, जिसमें कहा गया कि फिल्म में मेरठ की छवि खराब की गई है, लेकिन मेरठ में किसी तरह का विरोध नहीं है।'मुझे वकालत करते 37 साल हो गए हैं, मुझे आज भी याद है 1976 में वकालत शुरू करने के दो दिन बाद ही थाना सिविल लाइन थाने का राजकुमार की साईकिल चोरी का केस आया था। उसकी बेल करानी थी, मैंने बेल कराई और 20 रूपए फीस ली.'- अनिल बख्शी, सीनियर वकील'सोलह साल पहले मैंने कचहरी में कदम रखा था। मेरा पहला केस एक्सीडेंटल क्लेम का था। इसे मैंने फ्री ऑफ कास्ट लड़ा था। इस केस की खास बात थी कि मेरे सामने ही घटना हुई थी और मैंने ही एफआईआर दर्ज कराई थी। मैं ही गवाह था। इस केस में हमारी जीत हुई। मृतक की पत्नी को मुआवजा भी मिला.'-रामकुमार शर्मा, एडवोकेट व जिला बार एसोसिएशन के  महामंत्री

Posted By: Inextlive