- सीनियर सिटीजन बांट रहे अपने एक्सपीरियंस

- पार्टी व प्रत्याशियों द्वारा पहले उपलब्ध कराई जाती थीं कई सुविधाएं

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MEERUT : देश में पहला आम चुनाव 1951 में हुआ था. उसके बाद कई बदलाव हो गए. ऐसे शहर के सीनियर सिटीजन की मानें तो अब वोटिंग को लेकर अब न तो प्रत्याशियों में वो पहले वाली बात रही है न ही पार्टी अब ज्यादा ख्याल रखती है, पहले एक- एक वोट की कीमत को समझते हुए वोटर्स को उनके घर से ले जाने तक की व्यवस्थाएं की जाती थी, लेकिन अब तो बस लुभावने वादे करने पर ही फोकस किया जाता है, बुजुर्गो के लिए पहले घर से ही ले जाने की विभिन्न तरह की सुविधाएं दी जाती थी, लेकिन अब तो कोई इस तरफ ध्यान नहीं देता है, इसी तरह के विचार साझा किए शहर के सीनियर सिटीजन ने जब उनसे उनके अनुभवों को जाना गया.

 

होती थी घोड़ागाड़ी व रिक्शा

सीनियर सिटीजन का कहना है कि पहले जमाना कुछ और था. उस समय जब वोट डालते थे, तो पार्टी वाले कई बार बुलाने आते थे और कई बार तो बूथ दूर होने पर रिक्शा की सुविधा व घोड़ा गाड़ी की व्यवस्थाएं दी जाती थी. लेकिन अब तो प्रचार प्रसार के तरीके ही बदल गए है, कुछ का कहना है कि पहले प्रत्याशी घर-घर जाकर हाथ जोड़कर वोट मांगते थे. पहले चुनावों में शोर अधिक होता था, अब डिजिटल जमाने में वो सबकुछ खो गया है.

अब से लगभग 50 साल पहले जब वोट डालते थे तो पार्टी के समर्थक कई बार बुलाने आते थे, लेकिन अब तो किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता है, पहले रिक्शा की व्यवस्था भी पार्टी की तरफ से होती थी.

कमल भाटिया, महावीर नगर

 

वो जमाना और था तब तो प्रत्याशी द्वारा रिक्शा या घोड़ागाड़ी का इंतजाम किया जाता था. लेकिन अब तो कोई आता है तो ठीक, नहीं तो कोई बात नही.

बलदेवराज, रजबन

 

उस समय की बात अलग है तब तो प्रत्याशी घर- घर जाकर हाथ जोड़कर वोट मांगते थे. लेकिन अब ऐसा कुछ नहीं होता है.

शकुंतला देवी, ब्रह्मापुरी

 

पहले और अब के चुनाव में जो बड़ा अंतर है वो यह है कि अब बूथ पास हो गए है, पहले बूथ दूर होते थे. जिसके लिए बुग्गी, सवारी, घोड़ागाड़ी आदि की व्यवस्थाएं करनी पड़ती थी.

अयोध्यानाथ आनंद, जागृति विहार

 

पहले वोट के लिए निर्धारित बक्से होते थे, अब मशीनों का प्रयोग होने लगा है. पहले काफी अधिक समय गिनती में लगता था, लेकिन अब कम लगता है.

पुष्पा सचदेवा, वसंतकुंज विहार

Posted By: Lekhchand Singh