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-एसटीएफ के खुलासे के बाद लोगों ने दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट से बयां की जालसाजी की दास्तान

prakashmani.tripathi@inext.co.in

PRAYAGRAJ: सरकारी नौकरी पाना हर किसी का ड्रीम होता है. यही ड्रीम दिखाकर जालसाज कैंडिडेट्स और उनके पैरेंट्स को कंगाल बना रहे हैं और खुद मालामाल हो रहे हैं. बुधवार को नौकरी के नाम पर ठगी करने वाले गैंग के बारे में एसटीएफ ने खुलासा किया था. गुरुवार को दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट ने उन लोगों से बातचीत की, जो इस गैंग के झांसे में आकर अपने रुपए गवां बैठे हैं.

केस-1

दो साल बीते, न नौकरी न पैसा

नवाबगंज के रहने वाले मो. अब्बास पेशे से सब्जी के छोटे ट्रांसपोर्टर हैं. अपने बेटे और बेटी को सरकारी नौकरी दिलाने के लिए लगातार प्रयास कर रहे थे. इसी बीच राजधर नाम का एक व्यक्ति उनके संपर्क में आया. उसने बच्चों को नौकरी दिलाने की डील की. दो साल पहले हुई इस डील में बेटे को रेलवे और बेटी को हाईकोर्ट में समीक्षा अधिकारी के पद पर नौकरी दिलाने का झांसा उसने दिया. बेटे की नौकरी के लिए साढ़े तीन लाख रुपए की डिमांड की. डेढ़ लाख रुपए एडवांस के रूप में लिए. बाकी पेमेंट जॉब लगने के बाद बाद देने की बात कही. कुछ दिन बाद एक अन्य शख्स गुड्डू ने 12 लाख में उनकी बेटी शिफा को हाईकोर्ट में समीक्षा अधिकारी के पद पर नौकरी दिलाने का सौदा तय किया था. अब्बास भी तैयार हो गए कि अगर नौकरी लग गई तो वह जमीन बेचकर बच्चों का कॅरियर बना लेंगे. अब्बास बताते हैं कि दो साल बीत गए, लेकिन ना नौकरी मिली और ना ही पैसा. उन्होंने कई बार पैसा लेने वालों से कांटैक्ट करने की कोशिश की, लेकिन खाली हाथ ही रहे. राजधर ने ही नवाबगंज के ही रहने वाले मो. कैफ से भी एसएससी में जेईई के पद पर नौकरी दिलाने के लिए पैसों की डिमांड की थी.

केस-2

दोस्त के पिता के जरिए किया संपर्क

कानपुर के रहने वाले अंकुर वर्मा ने भी धोखाधड़ी के शिकार हुए है. उन्होंने अपने दोस्त के पिता के जरिए हाईकोर्ट में नौकरी के लिए डील करायी थी. इस दौरान लिपिक पद के लिए जालसाजों से अंकुर और उसके दोस्त के पिता ने आठ लाख रुपए में सौदा तय किया था. इसमें एक लाख 10 हजार रुपए एडवांस के लिए भी दिए थे. आज तक नौकरी तो छोडि़ए एडवांस में दिए पैसे भी रिटर्न नहीं हुए.

यह तो साफ मुकर गए

एसटीएफ के बड़े खुलासे के बाद जहां पीडि़त अपनी कहानी बयां करने में जुटे है. वहीं कई ऐसे भी हैं जो अपना पल्ला झाड़ते नजर आए. सोरांव के रहने वाले विक्रम कुमार प्रजापति की पत्नी मोहनी प्रजापति का नाम और नम्बर भी एसटीएफ के हत्थे चढ़े लोगों के पास से मिली डायरी में मिला है. दैनिक जागरण आईनेक्स्ट रिपोर्टर ने जब विक्रम से संपर्क करने का प्रयास किया तो पता चला कि विक्रम रेलवे में नौकरी करते हैं. पूछने पर विक्रम ने साफतौर से मना कर दिया. उन्होंने कहा कि पत्नी की जॉब के लिए किसी से कोई बात नहीं की है. जबकि एसटीएफ के पास मिली डायरी के मुताबिक हाईकोर्ट में समीक्षा अधिकारी के पद पर नौकरी का मामला है.

Posted By: Vijay Pandey