- डिमांड ऑर्डनरी और डीलक्स बसों की, ठेके पर ला रहे वॉल्वो

- सुपर लग्जरी बसों में एक ही कंपनी की बसों को तवज्जो देने पर सवाल

-कर्मचारी कर रहे विरोध, फिर भी एक कंपनी की बस लाना संदिग्ध

देहरादून

परिवहन निगम के अफसरों का एक नामचीन कंपनी की लग्जरी बसों से 'अफेयर' हो गया है. पहले से खाली चल रही 38 सुपर लग्जरी बसों के बावजूद 15 नई बसें ठेके पर लेने की तैयारी है. टेंडर जारी हो चुके हैं, कुछ ही दिन में बस प्लेटफार्म पर पहुंच जाएंगी. लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि इस टेंडर में एक ही नामचीन बस मेकर कंपनी के ब्रांड की डिमांड की गई है. ठेके पर लेने में एक ही कंपनी की बसों को प्रिफरेंस देना विवादों में आ गया है. टूर ऑपरेटर्स और कर्मचारियों के विरोध के बावजूद प्रदेश में एक ही कंपनी की 15 सुपर लग्जरी बसों को दौड़ाने की तैयारी है.

हाल ही में हुआ टेंडर

मामला हाल ही में प्रदेश मे सुपर लग्जरी बसों के लिए जारी किए गए टेंडर का है. इस टेंडर में एक स्पेसिफिक कंपनी की बसों की डिमांड की गई है. ऐसे में इसके लिए आवेदन करने वाले टूर ऑपरेटर्स और निगम कर्मचारियों में असंतोष पनप गया है. टूर ऑपरेटर्स सुपर लग्जरी कैटेगिरी में कई कंपनियों की बसें सस्ती और अधिक सुविधाजनक होने के बावजूद सिर्फ एक कंपनी को तवज्जो देने के खिलाफ हैं, तो कर्मचारी ऑर्डिनरी व डीलक्स बसों की जरूरत अधिक होने के बावजूद निजी कंपनी की सुपर लग्जरी बसें ठेके पर लेने के पीछे कंपनी से अधिकारियों की मिलीभगत का आरोप लगा रहे हैं.

आमदनी अठन्नी, खर्चा रुपया

परिवहन निगम में संचालित हो रही लग्जरी बसों पर आमदनी अठन्नी, खर्चा रुपया वाली कहावत फिट बैठती है. वर्तमान में निगम के बेड़े में 38 सुपर लग्जरी बसें शामिल हैं, जिनसे निगम को घाटा झेलना पड़ रहा है. बावजूद 15 वॉल्वो बसों को और शामिल किया जा रहा है. घाटे की वजह सुपर लग्जरी बसों के लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन है. कभी वेबसाइट हैंग हो जाए या और कोई कनेक्टिविटी प्रॉब्लम हो जाए तो इन बसों की ऑनलाइन बुकिंग नहीं हो पाती. जबकि इन बसों को 14 हजार किलोमीटर प्रति माह चलाने का करार है. ऐसे में ठेके पर लगी बस को ठेके के ड्राइवर अधिकतर खाली ही रूट पर दौड़ाते हैं. जबकि परिवहन निगम को बस खाली चले या भरी 3.50 किलोमीटर प्रति लीटर के हिसाब से डीजल देना पड़ता है.

जीएम ने कहा मानकों पर फिट:

दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने ठेके पर बस चलाने के लिए एक ही कंपनी की बसों का नाम उल्लेख करते हुए टेंडर जारी करने के मामले में परिवहन निगम के जीएम से बात की तो उनका जवाब चौंकाने वाला था. उनका कहना था किवॉल्वो ही एक मात्र ऐसी कंपनी है जिसकी बसें निगम के मानको में फिट बैठती है. इसलिए अन्य कंपनियों की बसों को निगम के बेड़े में शामिल नहीं किया जाता. अब सवाल यह है कि वॉल्वो के अलावा भी दुनिया में कई नामचीन कंपनियां सुपर लग्जरी बसें बनाती हैं, इनमें मर्सडीज, ईसूजू, स्कैनिया द्वारा मैनुफैक्चर बसें देश के कई राज्यों में परिवहन निगम के बेडे़ में शामिल हैं. ऐसे में सिर्फ एक ही कंपनी की बसों की डिमांड करना संदेह के घेरे में हैं.

ऐसे हो रहा सुपर लग्जरी से घाटा

निगम के डीलक्स डिपो सूत्रों ने बताया कि अनुबंध पर चल रही सुपर लग्जरी बसों को एक माह में 14 हजार किलोमीटर पूरा करना होता है, लेकिन बस को कितनी कमाई कर निगम को देना है, इसका कोई टारगेट नहीं रखा गया है. निगम की ओर से वॉल्वो को 3.15 किलोमीटर पर 1 लीटर डीजल दिया जाता है, ऐसे में किलोमीटर पूरा करने के चक्कर में बस मालिक खाली बस को रूट पर दौड़ाते हैं. बस में लोड कम होने पर डीजल का एवरेज भी ठीक आता है और बचत भी होती है, लेकिन इसका भी हिसाब नहीं लिया जाता. जबकि देश के अन्य राज्यों में परिवहन निगम ने पैसेंजर्स की संख्या को भी करार में शामिल किया है.

डीलक्स बस सेवा समाप्त

वर्ष 2011 में निगम की ओर से 40 डीलक्स बसों को लगाया गया है. डीलक्स बस लग्जरी कम ऑर्डिनरी की श्रेणी में आती थीं. किराया भी औसत था. ऐसे में कम किराए में पैसेंजर्स को लग्जरी बस जैसे सफर जिनको ऑर्डनरी बस में कन्वर्ट कर दिया है. जबकि 70 परसेंट पैसेंजर डीलक्स बस की मांग करते हैं, वजह है कि बस में आरामदायक सीट और किराया कम है, जबकि वॉल्वो में दो गुना किराया है.

साइट बंद मालिक की मौज

वॉल्वो की बुकिंग ऑनलाइन की जाती है. ऐसे में यदि कभी साइट में कोई दिक्कत आ जाती है, तो बस मालिक खाली बस को रूट पर दौड़ा देते हैं. इससे निगम को एक दिन का लाखों का नुकसान झेलना पड़ता है.

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वॉल्वो से निगम को बड़ा नुकसान झेलना पड़ रहा है, डीलक्स बसों की मांग है, लेकिन अधिकारियों की ओर से वॉल्वो हायर की जा रही है. एक ही कंपनी को तवज्जो पर मैं कुछ नहीं कहूंगा.

बीएस रावत, इंचार्ज, डीलक्स डीपो

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निगम के मानकों में वॉल्वो कंपनी की बस फिट बैठती है, अन्य कंपनियों की बसों को इसलिए हायर नहीं करते. बस को 14 हजार किमी पूरा करना होता है, वाहन मालिकों को कमाई का टारगेट नहीं दिया गया है.

दीपक जैन, जीएम, परिवहन निगम

Posted By: Ravi Pal