-त्योहारी सीजन शुरू होते ही मार्केट चाइनीज आइटम्स से पटा

-सिर्फ इलाहाबाद से चाइना चला जाता है डेढ़ अरब रुपया

-सोशल नेटवर्किंग साइट पर किया जा रहा अॅवेयर, इस बार भारतीय उत्पाद ही खरीदें

त्योहारी सीजन शुरू होते ही मार्केट चाइनीज आइटम्स से पटा

-सिर्फ इलाहाबाद से चाइना चला जाता है डेढ़ अरब रुपया

-सोशल नेटवर्किंग साइट पर किया जा रहा अॅवेयर, इस बार भारतीय उत्पाद ही खरीदें

ALLAHABAD: allahabad@inext.co.in

ALLAHABAD: ये आइटम्स सस्ते हैं। आपकी जरूरत पूरी करते हैं। ईजी टु कैरी है। ये हुए तीन फायदे। अब तीन नुकसान। पूरा पैसा चाइना की इकोनॉमी में इनवाल्व होने चला जाता है। पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है और देश पर बोझ भी बढ़ाता है। तय आपको करना है कि इस त्यौहार आप देश का पैसा बाहर जाने देंगे या इसे देश के विकास में लगाएंगे। जी हां, कुछ ऐसा ही मैसेज आजकल चर्चाओं में है सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर। यह तो पता नहीं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का लेटर हेड और हस्ताक्षर जो इस मैसेज को सर्कुलेट करने में इस्तेमाल हो रहा है, वह सही है या नहीं। लेकिन, मकसद साफ है। देश का पैसा देश में ही रहे ताकि उन्नति की रफ्तार को और गति मिले।

खिलौने और इलेक्ट्रानिक आइटम्स

त्योहारी सीजन में लगने वाले मेले में खिलौने और इलेक्ट्रानिक आइटम्स की सेल ज्यादा होती है। मार्केट के इस डिमांड को भांपते हुए चाइनीज आइटम्स की खेप अपने शहर पहुंचने लगी है। इलाहाबाद से अगले दो महीने के भीतर करीब डेढ़ अरब रुपए चाइना चले जाएंगे। क्योंकि ये प्रोडक्ट चाइना में तैयार हुए हैं। भारत सरकार को कुछ नहीं मिलेगा क्योंकि यह सब कुछ चोर रास्ते से इंडिया में आ रहा है। चंद आइटम्स ही ऐसे हैं जिनसे गवर्नमेंट को टैक्स मिलता है। इंडियंस इस फ्रंट पर खड़े नहीं हो पा रहे हैं तो इसलिए क्योंकि यहां के प्रोडक्ट्स महंगे होते हैं। यह इसलिए है क्योंकि रॉ मटिरियल और लेबर कास्ट ज्यादा है।

बिजली गिराएगी झालर

शाहगंज इलेक्ट्रानिक मार्केट के अशोक चौरसिया बताते हैं कि इस बार चाइनीज झालर के रेट बढ़ गए हैं। जिन आइटम्स के रेट नहीं बढ़े हैं, उनमें लगे बल्ब की संख्या घटा दी गई है। बावजूद इसके देसी झालर के मुकाबले सस्ता होने की वजह से लोग इन्हें पसंद करते हैं। इसका कम्पैरीजन भी फेसबुक के कमेंट में दिया गया है। झालर, बिना बिजली के नहीं चल सकते। जाहिर है हर घर में झालर लगेगी तो बिजली की डिमांड बढ़ेगी। एक साथ बड़ी संख्या में लाइटें जलने से पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचेगा। विकल्प दीप बताते हुए इसके फायदे भी गिनाए गए हैं। इससे बरसात में पैदा होने वाले कीड़ों का नाश होता है। पर्यावरण शुद्ध होता है। कुम्हारों को काम मिलेगा। किसानों का फायदा बढ़ेगा और सबसे बड़ी बात देश का पैसा देश में रहेगा। वैसे भी चाइनीज खिलौनों के थोक व्यापारी आरएस गुप्ता बताते हैं कि देसी खिलौने की अपेक्षा चाइनीज खिलौनों की लाइफ कम होती है।

चोरी से बिकते हैं करोड़ों के पटाखे

दशहरे और दीपावली पर बाजार में चाइनीज पटाखे चोरी से बेचे जाते हैं। यह बहुत कम लोगों को पता है कि इंडियन गवर्नमेंट ने इन पटाखों में खतरनाक केमिकल मिलाए जाने के चलते बैन कर रखा है। बावजूद इसके त्योहारों पर अवैध तरीके से इनकी बिक्री करोड़ों में होती है। कई बार खिलौनों के भीतर इनको फिट करके भी बेचा जाता है। थोक पटाखा व्यापारी मो। कादिर की मानें तो व्यापारियों को देश में बने पटाखों को ही बेचना चाहिए। इनमें अप्रूव्ड केमिकल का उपयोग होता है। इससे लाखों लोगों को रोजगार भी मिलता है।

क्या कहती है हमारी माइथोलॉजी

पुरातन काल से दीपावली पर सरसों के तेल के दीए जलाने का रिवाज रहा है। इसका वैज्ञानिक कारण दीए से निकलने वाले धुएं से जहरील कीड़े भागते हैं और वातावरण शुद्ध होता है। इकनॉमिकली मिट्टी के दीए, रुई की बाती और सरसों के तेल की बिक्री बढ़ने से रोजगार बढ़ता है और अर्थव्यवस्था मजबूत होती है। बावजूद इसके हम त्योहारों पर चाइनीज आइटम खरीदकर कई लोगों को बेरोजगार कर देते हैं और अपनी इकनॉमी चाइना के हाथों में सौंपकर देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान भी पहुंचाते हैं।

पहले हमारे त्योहारों का इकनॉमी सिग्निफिकेंस महत्वपूर्ण होता था। दीपावली पर जिन वस्तुओं का उपयोग होता था वह स्थानीय उत्पाद थे। इससे कुटीर उद्योगों और स्थानीय कलाकारों को लाभ होता था। यह हमारी अर्थव्यवस्था को मजबूत करते थे। वर्तमान में समाज का खर्च बढ़ा है लेकिन देसी और कुटीर उद्योगों का नुकसान हुआ है। चीन से आयातित उत्पादों को फायदा पहुंच रहा है। ऐसे में जनता और नीति निर्माताओं को सोचना होगा कि हम देसी उत्पादों का उपयोग करें या आयातित वस्तुओं पर पैसा पानी तरह बहाकर भारतीय अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाएं।

प्रो। जीसी त्रिपाठी,

इकनॉमिक्स डिपार्टमेंट, इलाहाबाद यूनिवर्सिटी

चाइना सस्ते सामान सप्लाई हमारे मार्केट में कर रहा है। उनका स्पेशल इकनॉमिक जोन हमारे देश के मुकाबले दो दशक पुराना है। उनके यहां के नियम काफी उदार हैं। इससे बचने के लिए हमारे देश को अपनी उत्पादकता और लागत में सुधार करना होगा। जब हम कम लागत वाले सस्ते सामान बनाएंगे तो आसानी से आयातित वस्तुओं से टक्कर ले पाएंगे। व‌र्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइजेशन का मेंबर बनने के बाद भारत अब ओपेन ट्रेड पर प्रतिबंध तो नहीं लगा सकता लेकिन हमारे देश के लोगों को अपनी इच्छाशक्ति के बल पर देसी उत्पादों का उपयोग करना होगा। तभी कुटीर उद्योगों को जीवनदान और हमारे देश की इकनॉमी को चाइना के हाथों में जाने से रोका जा सकेगा।

प्रो। पीके घोष,

इकनॉमिक्स डिपार्टमेंट, इलाहाबाद यूनिवर्सिटी

स्नड्डष्ह्ल द्घद्बद्यद्ग

-दीपावली पर झालर खरीदकर एक अरब रुपया इलाहाबादी देते हैं चाइना को

-ख्0 करोड़ के आसपास चाइना ले जाता है दशहरा मेले में बिकने वाले सामनो से

-ख्0 करोड़ रुपए पटाखा मार्केट से जाते हैं चाइना के पास

-प्रत्येक त्योहारी आइटम्स के साथ खिलौनों पर चाइना ने कर लिया है कब्जा

भारतीय सामान अपनाएं तो

-पहला फायदा देशी लघु उद्योगों को मिलेगा बढ़ावा

-भारत का पैसा भारत में ही रहेगा और आर्थिक विकास में सहायक बनेगा

-कुम्हारों की दशा सुधर जाएगी और इस कुटीर उद्योग को मिलेगी संजीवनी

-पर्यावरण को संरक्षित करने में मिलेगी मदद

-बिजली का खर्च होगा कम, घर की इकोनॉमी पर भी पड़ेगा असर

Posted By: Inextlive