नार्वे के मैग्नस कार्लसन अब शतरंज के नए विश्व चैंपियन हैं. चेन्नई में उन्होंने पांच बार के विश्व चैंपियन भारत के विश्वनाथन आनंद से यह ख़िताब छीन लिया है.


कार्लसन ने शुक्रवार को खेली गई दसवीं बाज़ी में विश्वनाथन आनंद को ड्रॉ खेलने के लिए मजबूर किया और इसी के साथ चैंपियन बनने के ज़रूरी आधा अंक भी हासिल कर लिया. इस चैंपियनशिप में कार्लसन के साढ़े छह और आनंद के कुल साढ़े तीन अंक रहे.विश्व शतरंज चैंपियनशिप के शुरू होने से पहले ही शतरंज के जानकारों का मानना था कि पलड़ा कार्लसन का ही भारी है.लेकिन 22 साल की उम्र में शतरंज के बादशाह बनने वाले कार्लसन के मुकाबले शतरंज के जानकारों ने आनंद को भी बहुत कम नहीं आंका था. उनके अनुसार लड़ाई 19-20 की ही थी.लेकिन चेन्नई में विश्वनाथन आनंद के मज़बूत क़िले में कार्लसन ने ऐसी सेंध लगाई कि चैंपियन बनकर ही दम लिया.इसके साथ ही उन्होंने दिखा दिया कि वह यूँ ही दुनिया के नम्बर एक शतरंज खिलाड़ी नहीं है.आनंद की ग़लतियां
कार्लसन की ख़ासियतों का ज़िक्र करते हुए कृष्णास्वामी कहते हैं कि मिडिल गेम पर उनकी पकड़ बेहद मज़बूत है. पिछले चार-पांच वर्षों में इसी की बदौलत वह इतने बड़े खिलाड़ी होकर उभरे हैं.


मिडिल गेम के बाद जब धीरे-धीरे सारे मोहरे एक-दूसरे के साथ कटकर बाहर हो जाते हैं तब जब किंगपॉन एंडिग आता है, उसमें कार्लसन हमेशा अपने प्रतिद्वंद्वी को चकमा दे देते हैं. ऐसा ही हमें आनंद के ख़िलाफ पहले तो छठे और उसके बाद नौवें गेम में देखने को मिला.इस हार के बावजूद भारत के शतरंज इतिहास में विश्वनाथन आनंद के योगदान को कम करके नहीं आंका जा सकता. इतने लम्बे समय तक शतरंज की बादशाहत बनाए रखने के बाद ताज खोने से भारत की शतरंज दुनिया में एक खालीपन तो ज़रूर पैदा होगा.अब इसे इत्तेफाक़ कहें या कुछ और कि पिछले हफ्ते 24 साल अंतराष्ट्रीय क्रिकेट खेलने के बाद सचिन तेंदुलकर ने क्रिकेट को अलविदा कहा और इस हफ्ते कार्लसन ने आनंद के दबदबे का अंत किया.इसके बावजूद आनंद अभी अपने शतरंज करियर को अलविदा नहीं कह रहे हैं. वह दिसंबर में लंदन में एक टूर्नामेंट खेलेंगे और उसके बाद अगले साल अप्रैल-मई में ज़्यूरिख़ में एक बडा टूर्नामेंट खेलने की तैयारी करेंगे.

Posted By: Subhesh Sharma