महाशिवरात्रि व्रत में उपवास के साथ-साथ रात्रि जागरण एवं रात्रि कालीन चार पहरों की पूजा एवं अभिषेक के बिना महाशिवरात्रि का व्रत पूर्ण नहीं होता। इसमें षडक्षरी मंत्र ओम नमः शिवायः के उच्चारण के साथ भगवान शिव का अभिषेक करना चाहिए।

महाशिवरात्रि व्रत इस वर्ष 04 मार्च को दिन सोमवार को है। त्रयोदशी तिथि-अपरान्ह 04ः29 बजे तक रहेगी उसके बाद चतुर्दशी तिथि पूरी रात्रि रहेगी। महानिशीथ काल-04.03.2019 को रात्रि 11:47 बजे से 05.03.2019 को रात्रि 12ः37 बजे तक रहेगा।

पूजा मुहूर्त 

पूजा प्रथम पहर की सायं 06ः09 बजे

पूजा द्वितीय पहर की रात्रि 09ः14 बजे

पूजा तृतीय पहर की रात्रि 12ः15 बजे (05.03.2019)

पूजा चतुर्थ पहर की प्रातः 03ः37 बजे (05.03.2019)

चन्द्र दोष और काल सर्प दोष निवारण के लिए उत्तम

शिवरात्रि का व्रत फाल्गुन कृष्ण त्रयोदशी को होता है। शिव रात्रि का भोग व मोक्ष को प्राप्त कराने वाले दस मुख्य व्रतों, जिन्हें 10 शैव व्रत भी कहा जाता है, में सर्वोपरि है। फाल्गुन मास की शिवरात्रि को भगवान शिव सर्वप्रथम शिवलिंग के रूप में अवतरित हुए थे, इसलिए इसे महा शिवरात्रि कहा जाता है। इस बार 04.03.2019 दिन सोमवार श्रवण/धनिष्ठा नक्षत्र में महाशिव रात्रि का होना अधिक शुभ है। यह दिन चन्द्र दोष निवारण के साथ काल सर्प दोष निवारण के लिए भी अति उत्तम है।

शिवरात्रि का अर्थ 


वह रात्रि जिसका शिव तत्व से घनिष्ठ सम्बन्ध हो, भगवान शिव की अति प्रिय रात्रि को शिवरात्रि कहा जाता है। शिव पुराण की ईशान संहिता में बताया गया है कि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि में आदिदेव भगवान शिव करोड़ो सूर्यो के समान प्रभाव वाले लिंग रूप में प्रकट हुए। ज्योतिष शास्त्रानुसार, फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की तिथि में चन्द्रमा सूर्य के समीप होते है। अतः इसी समय जीवन रूपी चन्द्रमा का शिव रूपी सूर्य के साथ योग मिलन होता है। चर्तुदशी तिथि को शिव पूजा करने से जीव को शुभ फल की प्राप्ति होती है, यही शिव रात्रि का रहस्य है।

पूजा का विशेष लाभ

इसमें चतुर्दशी शुद्धा निशीथ व्यापनी ग्राह्म की जाती है, यदि यह शिवरात्रि त्रिस्पर्शा हो, तो परमोत्तम मानी जाती है, इसमें जया त्रयोदशी का योग अधिक फलदायी होता है। स्मृत्यंतर के अनुसार रात्रि में जागरण कर, उपवास करना चाहिए। इस बार सर्वाथ सिद्ध योग अमृत सिद्ध योग में यह व्रत है, पूजा करना विशेष लाभदायक है।

भगवान शिव का अभिषेक


महाशिवरात्रि व्रत में उपवास के साथ-साथ रात्रि जागरण एवं रात्रि कालीन चार पहरों की पूजा एवं अभिषेक के बिना महाशिवरात्रि का व्रत पूर्ण नहीं होता। इसमें षडक्षरी मंत्र ओम नमः शिवायः के उच्चारण के साथ भगवान शिव का अभिषेक करना चाहिए। प्रत्येक पहर के अन्त में शिव पूजन एवं आरती करनी चाहिए। यदि चारों पहर की पूजा न हो सके तो जरूरत के अनुसार प्रातः काल 06ः47 बजे से 08ः13 बजे तक अमृत के चौघड़िया तथा 09ः39 बजे से पूर्वान्ह 11:05 बजे तक शुभ के चौघड़िया मुहूर्त में यह पूजा करना अति श्रेष्ठ रहेगा।

शिवरात्रि व्रत का लाभ

स्कंद पुराण में कहा है कि हे देवी जो मेरा भक्त शिवरात्रि में उपवास करता है, उसे क्षय न होने वाला दिव्यगण बनाता है। वह सब महा भोगों को भोग कर अन्त में मोक्ष को प्राप्त करता है। ईशान संहिता के अनुसार यह 12 वर्ष या 24 वर्ष के पापों का नाश करता है। यह व्रत सर्वथा भोग और मोक्ष की प्राप्ति कराता है।

- ज्योतिषाचार्य पं राजीव शर्मा

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Posted By: Kartikeya Tiwari