GORAKHPUR : आज ही के दिन 1809 में फ्रांस में लुई ब्रेल का जन्म हुआ था. एक दुर्घटना में अपनी रोशनी खो बैठने के बाद ब्रेल ने अपने जैसों के जीवन में शिक्षा की रोशनी फैलाने का काम किया. यह उन्हीं की देन है आज अंधेरे जीवन में भी रोशनी फैल रही है. ऐसे ही सिटी में एक शख्स है मोहन लाल सिंह. मोहन लाल सिंह खुद अंधेरे में रहने के बाद भी 25 दृष्टिहीनों के जीवन में उजाला ला रहे हैं. इस काम में उन्होंने अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया है. तीन साल पहले शुरू किया गये उनके मिशन में अब तक 25 बच्चे जुड़ चुके हैं. वे ब्लाइंड बच्चों को ब्रेल लिपि के माध्यम से एजुकेट करके उन्हें अंधेरे से मुकाबला के काबिल बना रहे हैं. उनके पास आज गोरखपुर सिटी और आस पास के डिस्ट्रिक्ट के बच्चे आ रहे हैं.


पति-पत्नी दोनों करते हैं बच्चों की सेवाबेसिक शिक्षा विभाग में काम करने वाले मोहन लाल सिंह ने इन बच्चों का फ्यूचर सुधारने और आत्मनिर्भर बनाने के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया है। यहां तक कि वे अपने वेतन को भी इसमें खर्च कर देते हैं। कानपुर यूनिवर्सिटी से बीए कर रहे मोहन लाल ने इस मिशन में अपनी पुश्तैनी जमीन भी इन बच्चों के लिए समर्पित कर दी है। उन्हींकी जमीन पर भी हॉस्टल बना है। मोहन बताते हैं कि सुबह 4 बजे से 10 बजे और शाम 4 बजे से रात 9 बजे तक वह बच्चों को शिक्षा देते हैं। सबसे खास बात यह है कि जब वे सुबह 10 बजे से शाम 4 बजे तक ऑफिस में रहते हैं तो यह जिम्मेदारी उनकी धर्मपत्नी कमलादेवी संभालती हैं। मोहन बताते हैं कि ऑफिस में भी उन्हें बच्चों की चिंता ही सताती रहती है।
अंधेरे को मिटाने के लिए करता हूं सेवा


मोहन बताते है कि बचपन में लोग उनकी कमी मजाक उड़ाते थे। बस यही बात उनके दिल में बैठ गई। इसके बाद उन्होंने सोच लिया कि मुझे अपने जैसे लोगों के लिए कुछ करना है। कमला देवी बताती हैं कि मोहन शुरू से दृढ़ निश्चयी रहे हैं, यही वजह है कि आज दृष्टिहीन बच्चों का फ्यूचर संवारना उनका मिशन बन चुका है। ऐसा नहीं है कि इस मिशन में मोहन लाल अकेले है। उनका साथ बखूबी निभा रहे हैं सुनील कुमार वर्मा और बाबूराम चौहान। वे दोनों खुद की दुनिया में अंधेरा होने के बाद भी औरों को रोशनी दे रहे हैं। म्यूजिक से एमए करने वाले बाबूराम बच्चों को म्यूजिक सिखाते हैं, तो एमए और बीएड कर चुके सुनील कुमार बच्चों को तीन से चार घंटा पढ़ाते हैं। नहीं मिला कोई सरकारी सहयोग मोहन लाल सिंह सरकारी उपेक्षा से बड़े ही दुखी नजर आते हैं। वे बड़े उदास हो कर बताते हैं कि अभी तक उन्हें कोई सरकारी मदद नहीं मिली है। तीन साल डिस्ट्रिक्ट एडमिनिस्ट्रेशन से जब कोई मदद नहीं मिली तो उन्होंने सूरज देवी विकलांग शिक्षण प्रशिक्षण संस्थान का रजिस्टे्रशन कराया ताकि कुछ सरकारी मदद मिल सके।खुश हैं बच्चे कि जीवन को राह मिलीयहां रहने वाले सभी बच्चे बहुत खुश हैं। धर्मेंद्र गोस्वामी ने बताया कि बचपन से न दिखने के कारण बहुत बुरा लगता

था, लेकिन यहां आकर ऐसा लगता है कि जीवन को एक मकसद मिल गया है। सुशील कुमार, मंटू सिंह और संतोष तिवारी भी खुश हैं कि अब वह कभी किसी के आगे हाथ नहीं फैलाएंगे। उन सभी की इच्छा है कि वे अपने जैसे लोगों को जीवन में उजाला लाए।बचपन से आंख की रोशनी न होने के कारण काफी दुख उठाना पड़ा। यह दुख और लोगों को न हो इसी के लिए यह काम कर रहा हूं। ऐसे बच्चों की सेवा करके जीवन को बहुत खुशी होती है।मोहन लाल सिंहन दिखने के कारण काफी परेशानी होती रही है। यूनिवर्सिटी में पढ़ते समय ही तय किया था कि डेली दृष्टिहीन साथियों के जीवन में उजाला लाने के लिए काम करुंगा।बाबूराम चौहानजब छोटा था उसी समय मेरे एक परिचित थे। उनको भी नहीं दिखता था लेकिन उन्होंने हमारी बहुत मदद की तभी से मेरे मन में बैठ गया कि आगे मैं भी ऐसे लोगों की मदद करुंगा। सुनील कुमार वर्मा

Posted By: Inextlive