मांगलिक कुंडली का निर्णय बारिकी से किया जाना चाहिए क्योंकि शास्त्रों में मांगलिक दोष निवारण के तरीके उपलब्ध हैं। शास्त्रवचनों के जिस श्लोक के आधार पर जहां कोई कुंडली मांगलिक बनती है वहीं उस श्लोक के परिहार काट के कई प्रमाण हैं।

जब किसी कुण्डली में प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम अथवा द्वादश भाव में मंगल होता है तब मंगलिक दोष लगता है। इस दोष को विवाह के लिए अशुभ माना जाता है। यह दोष जिनकी कुण्डली में हो, उन्हें मंगली जीवनसाथी ही तलाश करना चाहिए, ऐसी मान्यता है।

29 की उम्र में करें विवाह, नहीं पड़ेगा मंगल का दुष्प्रभाव

जिनकी कुण्डली में मांगलिक दोष है वे अगर 28 वर्ष के पश्चात विवाह करते हैं, तब मंगल वैवाहिक जीवन में अपना दुष्प्रभाव नहीं डालता है। शादी से पहले अक्सर लोग होने वाले वर-वधू की कुंडली मिलवाते हैं। यदि किसी की कुंडली में मंगल दोष निकल आता है तो घबराने की जरुरत नहीं क्योंकि शास्त्रीय उपायों से सभी प्रकार के मंगल दोष को दूर किया जा सकता है।

मांगलिक का गैर मांगलिक से ऐसे हो सकता है विवाह


मांगलिक कुंडली का निर्णय बारिकी से किया जाना चाहिए क्योंकि शास्त्रों में मांगलिक दोष निवारण के तरीके उपलब्ध हैं। शास्त्रवचनों के जिस श्लोक के आधार पर जहां कोई कुंडली मांगलिक बनती है, वहीं उस श्लोक के परिहार (काट) के कई प्रमाण हैं। ज्योतिष और व्याकरण का सिध्दांत है कि पूर्ववर्ती कारिका से परवर्ती कारिका (बाद वाली) बलवान होती है। दोष के सम्बन्ध में परवर्ती कारिका ही परिहार है, इसलिये मांगलिक दोष का परिहार मिलता हो तो जरूर विवाह का फैसला किया जाना चाहिए। परिहार नहीं मिलने पर भी यदि मांगलिक कन्या का विवाह गैर मांगलिक वर से करना हो तो शास्त्रों मे विवाह से पूर्व “घट विवाह” का प्रावधन है। मांगलिक प्रभाव वाली कुंडली से भयभीत होने कि जरूरत नहीं है।

ऐसा होने से नहीं लगता है वैवाहिक जीवन में मांगलिक दोष

1. मंगल दोष के परिहार स्वयं की कुंडली में (मंगल भी निम्न लिखित परिस्तिथियों में दोष कारक नहीं होगा)—जैसे शुभ ग्रहों का केंद्र में होना, शुक्र द्वितीय भाव में हो, गुरु मंगल साथ हों या मंगल पर गुरु की दृष्टि हो तो मांगलिक दोष का परिहार हो जाता है।

2. वर-कन्या की कुंडली में आपस में मांगलिक दोष की काट- जैसे एक के मांगलिक स्थान में मंगल हो और दूसरे के इन्हीं स्थानों में सूर्य, शनि, राहू, केतु में से कोई एक ग्रह हो तो दोष नष्ट हो जाता है।

3. मेष का मंगल लग्न में, धनु का द्वादश भाव में, वृश्चिक का चौथे भाव में, वृष का सप्तम में, कुंभ का आठवें भाव में हो तो भौम दोष नहीं रहता।

4. कुंडली में मंगल यदि स्व-राशि (मेष, वृश्चिक), मूलत्रिकोण, उच्चराशि (मकर), मित्र राशि (सिंह, धनु, मीन) में हो तो भौम दोष नहीं रहता है।

5. सिंह लग्न और कर्क लग्न में भी लग्नस्थ मंगल का दोष नहीं होता है। शनि, मंगल या कोई भी पाप ग्रह जैसे राहु, सूर्य, केतु अगर मांगलिक भावों (1,4,7,8,12) में कन्या जातक के हों और उन्हीं भावों में वर के भी हों तो भौम दोष नष्ट होता है। यानी यदि एक कुंडली में मांगलिक स्थान में मंगल हो तथा दूसरे की में इन्हीं स्थानों में शनि, सूर्य, मंगल, राहु, केतु में से कोई एक ग्रह हो तो उस दोष को काटता है।

6. कन्या की कुंडली में गुरू यदि केंद्र या त्रिकोण में हो तो मांगलिक दोष नहीं लगता अपितु उसके सुख-सौभाग्य को बढ़ाने वाला होता है।

7. यदि एक कुंडली मांगलिक हो और दूसरे की कुंडली के 3, 6 या 11वें भाव में से किसी भाव में राहु, मंगल या शनि में से कोई ग्रह हो तो मांगलिक दोष नष्ट हो जाता है।

8. कुंडली के 1,4,7,8,12वें भाव में मंगल यदि चर राशि मेष, कर्क, तुला और मकर में हो तो भी मांगलिक दोष नहीं लगता है।

9. वर की कुण्डली में मंगल जिस भाव में बैठकर मंगली दोष बनाता हो कन्या की कुण्डली में उसी भाव में सूर्य, शनि अथवा राहु हो तो मंगल दोष का शमन हो जाता है।

10. जन्म कुंडली के 1,4,7,8,12,वें भाव में स्थित मंगल यदि स्व, उच्च मित्र आदि राशि -नवांश का, वर्गोत्तम ,षड्बली हो तो मांगलिक दोष नहीं होगा।

11. यदि 1,4,7,8,12 भावों में स्थित मंगल पर बलवान शुभ ग्रहों कि पूर्ण दृष्टि हो तो भी मांगलिक दोष नहीं लगता।

मंगल दोष के उपाय


1. सबसे सरल उपाय है हनुमान जी की नियमित उपासना। यह मंगल के हर तरह के दोष तो खत्म करने में सहायक है।

2. हर मंगलवार को शिवलिंग पर कुमकुम चढ़ाएं। इसके साथ ही शिवलिंग पर लाल मसूर की दाल और लाल गुलाब अर्पित करें।

3. लाल वस्त्र में मसूर दाल, रक्त चंदन, रक्त पुष्प, मिष्टान एवं द्रव्य लपेट कर नदी में प्रवाहित करने से मंगल अमंगल दूर होता है।

—ज्योतिषाचार्य पंडित श्रीपति त्रिपाठी

 

Posted By: Kartikeya Tiwari