जब मैं छोटा बच्चा था तो सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता झाँसी की रानी सुनकर ही रानीलक्ष्मी बाई की वीरगाथा आखों के सामने फिल्म बनकर उभरती थी। मेरी दीदी जब मुझे ये कविता सुनाती थीं तो भाव अपने आप ऐसे आते थे जैसे शब्दों में से ही लक्ष्मीबाई निकल रही हों। अफ़सोस इस फिल्म को देखते वक़्त ऐसा कुछ भी नहीं लगा। फिल्म तो थी पर फील गायब थी।

कहानी :
महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रानी लक्ष्मी बाई की कहानी बताने की कोशिश करती है फिल्म की कहानी
समीक्षा :
फिल्म शुरू होते ही मणिकर्णिका शेर मारती है। उस सीन का वीऍफ़एक्स ज़बरदस्त है। उसके बाद तो वीऍफ़एक्स का सारा पैसा कंगना मैडम के कपड़ों और गहनों में झोंक दिया गया। तोप के गोले नकली, आस्मां नकली, सेट नकली, ग्रीन स्क्रीन भी दिखती है कई जगह। फिल्म का फर्स्ट हाफ बिलकुल कंगना की शोरील है, जो सिर्फ इसलिए है क्योंकि कंगना मैडम को दुनिया को दिखाना है कि वो किसी भी हीरोइन से कम नहीं, इसलिए इसमें मस्तानी की तरह फाइट सीन है और जोधा वाला सीन भी पूरा कॉपी है। सेट भी भंसाली जी के रद्दी में फेंके हुए सेट से बनाये हैं। इस फिल्म में मणिकर्णिका जी अंग्रेज़ों के चुंगल से गाय के बछड़े को छुड़ाती हैं और अंग्रेज़ों को बीफ खाने से भी रोकती हैं। फिर आइटम डांस होता है और झाँसी की रानी कंटेंपोररी डांस आइटम भी करती हैं। फिल्म के किरदार वनटोन हैं और किसी किरदार की कोई ख़ास अहमियत है नहीं क्योंकि सारा स्क्रीनटाइम तो डायरेक्टर साहब के इंटेंस क्लोजअप शॉट्स को दिया गया है। बैकग्राउंड स्कोर भयंकर लाउड है और हर तीन सीन में एक गाना। फिल्म ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रही थी, फिल्म बहुत खराब एडिट की गई है। डायरेक्शन बहुत ही ओल्डस्कूल है और फिल्म अझेल।
क्या है अच्छा :
एक्शन कोरिओग्राफी
अदाकारी :
कंगना ने कपडे बहुत अच्छे पहने हैं। नकली अंग्रेज़ फिल्म के परफेक्ट कॉमिक करैक्टर हैं। फिल्म में बड़े बड़े अकम्पलिश्ड एक्टर्स की पूरी फ़ौज है पर फिर भी एक भी किरदार एन्ड में याद नहीं रहता। फिल्म के कुछ किरदार तो गूगल वौइस् की तरह डायलॉग बोलते हैं। कंगना ने फिल्म का डायरेक्शन ही बदल दिया, एंड नॉट इन आ  गुड वे । जो फिल्म झाँसी की रानी की कहानी थी, वो महज़ कंगना रनौत की शोरील बनकर  रह जाती है।
कुलमिलाकर यह एक कभी न ख़त्म होने वाली स्टंट फाइट का वीडियो बनके उभरती है और देशभक्ति को फ़ोर्स करने की कोशिश करती है। फिल्म का डायरेक्शन बेहद खराब है और यही कारण है की फिल्म का असर सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता की तुलना में नाखून बराबर भी नहीं है और इसीलिए अगर बहुत सारी तलवार बाज़ी देखनी हो तो ही घुसे इस फिल्म को। कंगना जी, हर कोई संजय लीला भंसाली नहीं होता, आप एक अच्छी एक्टर हैं पर अभी कुछ दिन और तैयारी कीजिये, अभी आप सिर्फ सेट कॉपी करना सीखी हैं, फील वाली फिल्म डायरेक्ट करने में  वक़्त है।
रेटिंग : डेढ़ स्टार
Review by : Yohaann Bhaargava
Twitter : @yohaannn

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— inextlive (@inextlive) 25 January 2019 

Posted By: Abhishek Kumar Tiwari