Bareilly: सिटी के युवाओं में बीते कुछ दिनों से इडीयोपैथिक इनफर्टिलिटी के केसेज बढ़ते जा रहे हैं. असल में ये इनफर्टिलिटी एकदम जुदा है डॉक्टर भी आसानी से इसे डायग्नोज नहीं कर पाते. ये बीमारी कैसे युवाओं में घर बना रही है. एक रिपोर्ट.


Tension ली तो और बढ़ जाएगी ‘tension’मेडिकल साइंस में डिसीज का ट्रीटमेंट तभी हो सकता है, जब उसे डायग्नोस किया जा सके। लेकिन जब किसी डिसीज को डायग्नोस ही नहीं किया जा सकता तो प्रॉब्लम बढ़ जाती है। ऐसी ही डिसीज इडीओपैथिक इनफर्टिलिटी से इफेक्टेड बरेली शहर में अब तक करीब 30-35 परसेंट पेशेंट सामने आ चुके हैं। डॉक्टर्स बताते हैं कि इडीओपैथिक इनफर्टिलिटी की प्रॉब्लम में पेशेंट की टेस्ट रिपोर्ट नॉर्मल आती है, लेकिन इनफर्टिलिटी बनी रहती है। लिहाजा ऐसे मामलों में समय पर इलाज ही मुमकिन नहीं हो पाता है। डॉक्टर्स सजेस्ट करते हैं कि कुछ प्रिकॉशन यूथ्स को इन परेशानियों से बचा सकती है।Case-1


रामपुर गार्डन निवासी आशुतोष पेशे से चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं। उनकी शादी 23 साल की उम्र में हुई। शादी के 4 साल  बाद भी जब उन्हें बेबी नहीं हुआ, तो उन्होंने डॉक्टर से कॉन्टेक्ट किया। स्टार्टिंग चेकअप में डॉक्टर ने आशुतोष का पाइप टेस्ट करवाया। हैरानी तब हुई जब सभी रिपोर्ट नॉर्मल आईं। बीमारी डायग्नोज न होने की वजह से आशुतोष के ट्रीटमेंट में खासी प्रॉब्लम हुई। आखिरकार डॉक्टर ने इडीओपैथिक इनफर्टिलिटी का केस मानते हुए इलाज शुरू किया। अब आशुतोष फादर बन चुके हैं।Case-2

पुराना शहर निवासी राघवेंद्र जब 28 साल के थे, तब उनकी शादी हुई। शादी के 5 साल बाद भी बेबी न होने पर उन्होंने डॉक्टर से सलाह ली। डॉक्टर ने उन्हें कलर डॉपलर के साथ दूसरे टेस्ट रेफर किए। मगर रिपोर्ट में कोई प्रॉब्लम डायग्नोज नहीं हुई। इस केस को भी इडीओपैथिक की कैटेगरी में रखते हुए ट्रीटमेंट शुरू किया। इलाज के बाद से राघवेंद्र को जल्द पिता बनने की उम्मीद है।क्या होती इडीओपैथिक इनफर्टिलिटी की प्रॉब्लम डॉक्टर्स के मुताबिक मेडिकल टर्म में इडीओपैथिक शब्द वहां यूज करते हैं, जहां डिसीज डायग्नोस न हो पा रही हो। इडीओपैथिक इनफर्टिलिटी में मेल पेशेंट में सीमेन तो बनता है, लेकिन फर्टिलिटी नहीं होती है। टेस्ट के दौरान सीमेन में प्रॉब्लम तो आती है, लेकिन फर्दर रिपोर्ट नॉर्मल आती है। ऐसे में एक्चुअल प्रॉब्लम डायग्नोस ही नहीं हो पाती है। बिना रीजन डिसक्लोज हुए ट्रीटमेंट संभव नहीं हो पाता है।सबसे ज्यादा मामले 17 से 35 साल के age group में

इडीओपैथिक इनफर्टिलिटी के मामलों में गंभीरता इसलिए भी बढ़ जाती है, क्योंकि इसकी शुरुआत 17 साल की ऐज के बाद हो जाती है। लेकिन पता शादी के बाद तब चलता है, जब कपल्स को बेबी नहीं होता है। कपल्स जब स्पेशलिस्ट को संपर्क करते हैं, तो स्टार्टिंग टेस्ट में सब ओके आता है। मतलब ये कि प्रॉब्लम का पता ही नहीं चलता है। ऐसे में अगर पेशेंट झोलाछाप डॉक्टर के शिंकजा में फंस गया। तो डिसीज का असाध्य बनना तय हो जाता है। इस डिसीज के सबसे ज्यादा पेशेंट 17 से 35 साल के ऐज ग्रुप में नजर आते हैं।   कोशिश करेंगे तो बचेंगे डॉक्टर्स इस प्रॉब्लम से बचाव के लिए सजेस्ट करते हैं कि हैक्टिक लाइफ में खुद के लिए वक्त निकालें। टेंशन से भी डिसीज बढ़ती है। इसलिए मेडिटेशन करें। जंक फूड को अवॉयड करें। एडीक्शन से स्पर्म काउंट कम होता है। इलेक्ट्रॉनिक गैजेट से सबसे ज्यादा रेडिएशन होता हैै। कोशिश करें कि मोबाइल या लैपटॉप को हर वक्त साथ में कैरी न करें। मोबाइल फोन हैंड फ्री यूज करें।Treatment हो सकता हैडिसीज भले डायग्नोस न हो पाए, लेकिन डॉक्टर्स इडीओपैथिक इनफर्टिलिटी के मामलों में 3 मंथ का मेडिसिन कोर्स सजेस्ट करते हैं। सीमेन पैरामीटर को इम्प्रूव करने के लिए सीमेन वाइटलाइजर दिया जाता है। इसके बाद पेशेंट की कंडीशन में धीरे-धीरे सुधार नजर आने लगता है। हालांकि ये ट्रीटमेंट इस तरह से समझा जाता है कि जैसे वीकनेस लगने पर डॉक्टर ताकत की दवा प्रिस्क्राइब करता है।
पिछले कुछ सालों में यूथ्स में खासकर इडीओपैथिक इनफर्टिलिटी के मामलों में इजाफा हुआ है। मॉडर्न लाइफ स्टाइल, बदलते ट्रेंड और इलेक्ट्रॉनिक  गैजेट पर निर्भरता ऐसी डिसीज के पीछे अहम रोल प्ले करती है। डायग्नोस न होने के कारण इस डिसीज में खास दिक्कत आती है। डॉ.प्रजय श्रीवास्तव, यूरोलॉजिस्टReport by: abhishek.mishraa@inext.co.in

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