कबीर पारख संस्थान की ओर से प्रीतमनगर स्थित कबीर आश्रम में शुरू हुआ तीन दिवसीय वार्षिक अधिवेशन व सत्संग समारोह

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PRAYAGRAJ: मानव जीवन की सर्वोत्तम उपलब्धि आत्म शांति है। आज के दौर में हर कोई शांति की तलाश में दौड़ रहा है लेकिन शांति नहीं मिल रही है। सुख और शांति तो मन की स्थिरता में है। ऐसे में कबीरदास के विचारों को आत्मसात करना चाहिए। उनकी वाणियों का अध्ययन और साधना-अभ्यास परम आवश्यक है। यह बातें संत धर्मेन्द्र साहब ने सोमवार को प्रीतम नगर स्थित कबीर आश्रम में कबीर पारख संस्थान की ओर से आयोजित तीन दिवसीय वार्षिक अधिवेशन व सत्संग समारोह के दौरान कही। उन्होंने सद् गुरु कबीर की 'दौड़त-दौड़त दौडि़या, जहां मन की दौड़। दौड़ थका मनथिर भया, वस्तुत ठौर की ठौर' की महत्ता का मर्म कबीर पंथी अनुयायियों को समझाया।

सत्संग में बताई प्रयागराज की महत्ता

अधिवेशन के दूसरे वक्ता कटिहार से आएं संतश्री सजीवन साहेब ने कहा कि सत्संग चलता फिरता तीर्थराज प्रयाग है। गंगा, यमुना व अदृश्य सरस्वती के संगम होने के नाते इलाहाबाद का नाम बदलकर अब इन्हें पुन : प्रयागराज कर दिया गया है। यहां सत्संग में भी देश-विदेश के विभिन्न प्रांतों के भिन्न-भिन्न खानपान, वेशभूषा व तीज-त्योहार के लोग सत्संग रुपी गंगा में डुबकी लगाने आएं हैं। उन्होंने कहा कि सत्संग ही एक ऐसी जगह है जहां संत-गुरुजन इसकी मुफ्त में न सिर्फ रिपेयरिंग करते है बल्कि बुद्धि को परिष्कृत कर आत्मबोध के लिए प्रेरित भी करते हैं।

कबीर के भजन ने बांधा समां

सत्संग समारोह के दौरान छत्तीसगढ़ से आए भजन गायक गुरुशरण साहू ने कबीरदास के भजनों की प्रस्तुति की। उन्होंने भजन मन लागौ मेरो यार फकीरी में गाकर समां बांध दिया तो सभा में उपस्थित हजारों अनुयायियों ने तालियां बजाकर उनका स्वागत किया। दूसरे सत्र में गुजरात व मध्य प्रदेश से आई साध्वी बहनों ने प्रवचन किया। संचालन गुजरात से आए संतश्री ज्ञान साहेब ने किया।

Posted By: Inextlive