मेरा पितर मेरा शहर

VARANASI

कल की मजबूत नींव पर ही आज की इमारत बुलंद होती है। ऐसा सिर्फ कहने की बात नहीं है। हमारे बुजुर्गो ने जो चीजें हमारे लिए छोड़ी वह निश्चित ही हमारे लिए एक विरासत हैं। इन विरासतों में उनके द्वारा दिये गये संस्कार शामिल हैं तो उनके द्वारा छोड़ी गयी हर वह चीज भी जिनका वजूद आज भी कायम है। 'हमारा पितर हमारा शहर' के क्रम में हम अपने बुजुर्गो के द्वारा दिये गये ऐसे ही कुछ इमारतों की चर्चा कर रहे हैं। इन्हीं इमारतों में आज संपूर्णानंद संस्कृत यूनिवर्सिटी के मुख्य भवन पर एक नजर।

डेढ़ सौ साल का है इतिहास

संपूर्णानंद संस्कृत यूनिवर्सिटी में प्रवेश करते ही आपका सामना इसके मुख्य भवन से से होता है। हरे भरे पेड़ों के बीच यह भवन अपने आप में उत्कृष्ट स्थापत्य का नमूना है। इस इमारत की नींव सन् क्8ब्7 में तत्कालीन महाराजा काशी नरेश के द्वारा रखी गयी थी। इसका निर्माण मेजर मारखम किट्टो की देखरेख में हुआ। यही कारण है कि इसके स्थापत्य में पाश्चात्य शैली की झलक दिखायी देती है। सन् क्8भ्ख् में यह बिल्डिंग बन कर तैयार हुई। इस तरह पांच सालों में कारीगरों ने कठिन मेहनत से इस बिल्डिंग को बनाया।

गॉथिक स्थापत्य है नमूना

पूरे इमारत का निर्माण गाथिक स्थापत्य शैली में हुआ है। बिल्डिंग को देखने से ही इस बात का एहसास होता है कि इसके निर्माण में किसी विदेशी की सोच शामिल है। बिल्डिंग चारों तरफ से खुली है। बिल्डिंग की धरन की कुछ अलग ही खासियत है। इनके जोड़ में बनाने वालों की कला दिखायी देती है। इन पर की गई नक्काशी बताती है कि इसे बनाने में कलाकारों ने काफी मेहनत की थी। पूरे बिल्डिंग का इंटीरियर अपने आप में कुछ अलग दिखायी देता है। बताया जाता है कि बिल्डिंग बनाने में इस्तेमाल की गई अधिकतर चीजें विदेशों से आयातित थीं।

राशियों के हिसाब से लगे हैं शीशे

बिल्डिंग के ऊपरी हिस्से में विभिन्न रंग के शीशे लगाये गये हैं। जानकारों का कहना है इनको विभिन्न राशियों के रंगों के हिसाब से लगाया गया था। वर्तमान में मेन बिल्डिंग के मुख्य भाग की छत पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी है। पर वर्तमान में अभी जो कुछ भी बचा है वह उसके अतीत के वैभव का बखान करता हुआ लगता है। काफी प्रयासों के बात बिल्डिंग को उसके मूल रूप में संरक्षित करने की कवायद शुरू हो गयी है। बिल्डिंग में मरम्मत करा कर उसे फिर से पुराना वैभव दिलाने की कोशिश की जा रही है।

इमारत को उसके मूल रूप में संरक्षित करने का कार्य शुरू कर दिया गया है। पूरे इमारत की मरम्मत करायी जा रही है। ये सिर्फ ईट और गारे से बनी इमारत ही नहीं ये हमारी विरासत है। इसके हर ईट में इतिहास छिपा है जो वर्तमान से सीधे रूप से जुड़ा है।

प्रो। यदुनाथ दूबे, वीसी संपूर्णानंद संस्कृत यूनिवर्सिटी

Posted By: Inextlive