गारमेंट सेक्टर में 12 और 18 प्रतिशत जीएसटी के बाद भी ऑफर की भरमार

Meerut.जीरो प्रतिशत टैक्स में शामिल गारमेंट सेक्टर को जीएसटी की 5, 12 और 18 दरों के स्लैब में रखने के बावजूद कपड़ों के दाम में कोई खास लाभ आम उपभोक्ताओं को नही मिल पाया है। उल्टा पार्टी वियर या फैशनेबल ड्रेसेज के लिए ग्राहकों को अब अधिक दाम का भुगतान करना पड़ रहा है। डिजाइनर क्लॉथस, जिन्हें 18 प्रतिशत स्लैब में रखा गया है, वे अब और अधिक महंगे हो गए हैं।

मार्जिन में कटाैती मजबूरी

जीएसटी से पहले कपड़ों की बिक्री पर मिलने वाले 30 से 40 प्रतिशत के मार्जिन में 20 से 25 फीसदी मार्जिन को बतौर डिस्काउंट देकर भी गारमेंट्स कारोबारी मुनाफे में रहते थे लेकिन अब जीएसटी लगने के बाद व्यापारियों का मार्जिन घटकर 10 से 12 प्रतिशत रह गया है। इसके बाद कॉम्पटीशन के चलते व्यापारी अपने मार्जिन में से ही कटौती कर मार्केट में बने रहने की कवायद में जुटे हैं।

फिक्स रेट नया चलन

जीएसटी लागू होने के बाद मध्यम श्रेणी के व्यापारियों ने अब एक दाम यानि फिक्स रेट का नियम लागू कर अपने मुनाफे को बचाने का काम शुरू कर दिया है। जीएसटी के कारण व्यापारियों को अब पक्के बिल पर माल खरीदना पड़ रहा है, ऐसे में मार्जिन और मुनाफे की दर दोनो में कमी आई है और व्यापारी अब तय दाम पर ही कपडे़ बेचने को मजबूर हैं।

जीएसटी की दरें

सूती कपडे़, धागे, फैब्रिक, कॉटन, नैचरल फाइबर, यार्न - 5 प्रतिशत

एक हजार रुपये से अधिक कीमत के कपड़ों पर 12 प्रतिशत

मैनमेड फाइबर और यार्न- 18 प्रतिशत

गारमेंट कंपनियों का मार्जिन काफी अधिक होता है। वे अपने मार्जिन को कम करके डिस्काउंट स्कीम दे सकती हैं। वैसे, जीएसटी से मैनुफैक्चर लेवल से लेकर कस्टमर को भी फायदा मिल रहा है।

वी एन सिंह, एडिशनल कमिश्नर, जीएसटी

कपड़ों पर जीएसटी का गणित काफी उलझा हुआ है। सूती कपड़ों पर जीएसटी दर अलग है, कॉटन पर अलग है और पार्टी वियर या हैवी वर्क पर अलग है। ऐसे में केवल मैन्युफेक्चर लेवल पर ही जीएसटी लगकर माल रिटेलर के पास आ रहा है। रिटेलर जीएसटी नहीं वसूल रहा है।

महीपाल सिंह, गारमेंट कारोबारी

जीएसटी के बाद अधिकतर कपड़ों या साडि़यों के दाम में इजाफा हुआ है। अधिकतर कपड़ों पर केवल मैन्युफैक्चर लेवल से ही जीएसटी जोड़कर माल भेजा जा रहा है। व्यापारी अपने कस्टमर से जीएसटी नहीं वसूल रहे, बल्कि उनका जीएसटी अपनी जेब से भरना पड़ रहा है।

अमित अग्रवाल, साड़ी व्यापारी

पहले जीरो प्रतिशत था लेकिन अब फैब्रिक उसके बाद उस पर वर्क यहां तक की धागों तक के हिसाब से जीएसटी की दरें तय की गई हैं। इसलिए सभी प्रकार के कपड़ों की दरें व दाम अलग-अलग हैं। ऐसे में जो मन्युफैक्चर तय करके भेजता है, उसी दर से जीएसटी लिया जा रहा है।

रजत गोयल, किड्स वियर व्यापारी

Posted By: Inextlive