मेरा शहर मेरा पितर

हमारा आज हमारे पूर्वजों की विरासत है। हमारा वर्तमान उनके ही सत्कर्मो का फल है। उन्होंने जो कुछ किया वह हमारे लिए ही किया। इसलिए किसी ने कहा कि हमारा आज बीते हुए कल का कर्जदार है। हमारा अस्तित्व हमारे पुरखों के कारण है इसलिए उनके प्रति आभार व्यक्त करना छोटी मुंह बड़ी बात होगी। फिर भी हम उन्हें अपनी श्रद्धा समर्पित कर सकते हैं। हमारे शहर में तमाम ऐसी इमारतें हैं जो हमें किसी बुजुर्ग के होने का एहसास करातीं हैं। यह हमारी सौभाग्य है कि आज उन इमारतों का वजूद कायम है। उनको बनाने वाले अब हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनके प्रति श्रद्धा समर्पित करने के हमारे प्रयास 'हमारा पितर हमारा शहर' के क्रम में आज आलमगीर की मस्जिद माधवराव की कुछ बातें करते हैं

दिखायी देता था लाल किला

पंचगगा घाट पर बनी एक यह इमारत आज दुर्दिन में है। कभी इसका स्वरूप ऐसा नहीं था। इस मस्जिद के बनने की तिथि को लेकर इतिहासकारों में मतभेद है। लेकिन ये तो तय है कि इसका निर्माण औरंगजेब ने करवाया था। माना जाता है कि 17वीं शताब्दी में इस मस्जिद का निर्माण हुआ। इसके विशाल प्रांगण में बना विशाल फव्वारा इसकी पुराने वैभव की कहानी कहता है। वर्तमान में यह पूरी तरह जर्जर हो चुका है। इस शहर की शान तथा मस्जिद के 174.2 फुट ऊंची मीनारें अब पुरानी तस्वीरों में ही दिखायी देते है। दो मीनार में से एक को समय ने गिराया तो दूसरे को सुरक्षा कारणों के चलते गिरा दिया गया। किवदंती ये भी है कि इन मीनारों से दिल्ली के लाल किले की रोशनी दिखाई देती थी।

औरंगजेब ने कराया निर्माण

मस्जिद के निर्माण को लेकर बहुत सी बातें प्रचलित हैं। बताते हैं कि यहां पर स्थित बिंदू माधव मंदिर को गिराकर औरंगजेब ने इस मंदिर का निर्माण कराया। हालांकि किसी भी इतिहासकार ने स्पष्ट रूप से इस बात का उल्लेख नहीं किया है। वैसे प्रसिद्ध विद्वान डॉ। रधुनाथ सिंह ने इस मस्जिद के निर्माण की एक अलग की कहानी का उल्लेख किया जिसके अनुसार घाट के किनारे एक ब्राहमण परिवार रहता था। इस परिवार की विधवा कन्या पर शहर कोतवाल मोहित हो गया। वह विधवा कन्या से विवाह के लिए दबाव बनाने लगा। ब्राहमण ने कोतवाल के खिलाफ औरंगजेब के दरबार में गुहार लगायी। उसकी गुहार पर औरंगजेब बनारस आया और उसने कोतवाल को मारकर उस ब्राहम्ण की कन्या की लाज रखी थी। औरंगजेब ने वहां पर शाम की नमाज अदा की थी। जाते समय उसने यहां पर एक मस्जिद बनाने आदेश दिया। औरंगजेब के बनारस आने की पुष्टि प्रसिद्ध विद्वान डॉ। रघुनाथ सिंह ने भी की है माधवराव राव नामका एक जमींदार था जिसके नाम पर इस इलाके का नाम माधोराव हुआ। बस यहीं से माधवराव का धरहरा का नाम अस्तितव में आया

मुगल कला का बेहतरीन नमूना

मस्जिद का स्थापत्य मुगल काल का बेहतरीन नमूना है। गुंबद से लेकर दीवारों पर की गई महीन कारीगरी इसके कला का बखान करती है। मस्जिद की छत के भीतरी हिस्से में की गई कारीगरी अपने अपने आप में खास है मस्जिद की खासियत इसकी दो मीनारें जो अब नहीं है उस पर भी की गयी नक्कासी इसकी खासियत को दर्शाती है। ये इमारत आज जर्जर हाल हमारे सामने है लेकिन हो सकता है कि आने वाली पीढियों को ये देखना नसीब न हो। ये हमारे पूर्वजों की विरासत है जिसे सभाल कर रखना हमारी जिम्मेदारी है।

Posted By: Inextlive