जिस हाईटेक मीडिया सेंटर ने दिलाई ए+ ग्रेड, उसे आरयू ने ही कर दिया बर्बाद
- आठ करोड़ की लागत से 1998 में बना मीडिया सेंटर 12 वर्ष में ही हो गया बंद
- हर वर्ष मिले बजट को दूसरे मदों में इस्तेमाल करने से बर्बाद हुए स्टूडियो के उपकरण बन गए कबाड़बरेली : नैक मूल्यांकन में 'ए प्लस' गे्रड दिलाने वाले मीडिया सेंटर को आरयू ने बर्बाद कर कबाड़ बना दिया है. आठ करोड़ की लागत से 1998 में बना मीडिया सेंटर 12 वर्ष में ही बंद हो गया. इसके लिए हर वर्ष मिले बजट को दूसरे मदों में इस्तेमाल कर लेने से यहां रखे उपकरण न तो अपग्रेड हुए और न ही उनकी मरम्मत हो सकी. ऐसे में ये उपकरण धीरे-धीरे बर्बाद हो गए और पूरा सेंटर कबाड़. टीचर्स का भी रुख उदासीन ही रहा. ऐसे में 2013 में यह पूरी तरह से बंद हो गया. अलग-अलग विषयों पर टेली फिल्म बनाकर लोगों को अवेयर करने और मासकॉम के स्टूडेंट्स को स्टोडियो वर्क सिखाने के मकसद से इसे बनाया गया था. स्टूडियो बर्बाद होने का इफेक्ट आरयू की नैक ग्रेड पर भी पड़ा है. 'ए प्लस' से यह 'बी ग्रेड' पर आ गया है. जब से मीडिया सेंटर बंद हुआ है, तब से इसे दोबारा शुरू करने के प्रयास ही नहीं हुए.
यूजीसी और सरकार ने दी थी ग्रांटआरयू में तत्कालीन वीसी डॉ. एमडी तिवारी और कार्यवाहक वीना शाह ने वर्ष 1998 में इस मीडिया सेंटर को शिक्षा विभाग की बिल्डिंग में शुरू कराया था. इसके लिए यूजीसी, यूपी सरकार और आईसीटी ने ग्रांट दी थी. मीडिया सेंटर के मॉडर्न और हाईटेक स्टूडियो में लोगों से जुड़े मुद्दों पर टेली फिल्में बननी थीं और इन्हें दूरदर्शन पर प्रसारित किया जाना था. इन फिल्मों को स्क्रिप्ट टीचर्स को तैयार करनी थी और स्टाफ व स्टूडेंट्स को इस पर काम करना था.
दो वर्ष में ही कोर्स बंद मीडिया सेंटर के स्टूडियो का लाभ दूसरे स्टूडेंट्स को भी मिल सके इसके लिए यहां 2000 में एडवांस डिप्लोमा इन फोटोग्राफी और मास कॉम कोर्स भी शुरू किए गए. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हो सका. उपकरण खराब होने से एडवांस डिप्लोमा इन फोटोग्राफी कोर्स दो वर्ष बाद ही बंद कर दिया गया. अब सिर्फ मास कॉम कोर्स ही चल रहा है, जिसमें मात्र 14 स्टूडेंट्स हैं. जब तक हालात ठीक थे, यहां पूरी स्ट्रेंथ रहती थी. अपने समय का हाईटेक स्टूडियोआरयू में मीडिया सेंटर की स्थापना जिस टाइम की गई थी उस समय किसी भी सरकारी संस्थान के पास इतना हाईटेक स्टूडियो नहीं था. कैमरों के साथ यहां हाईटेक स्टूडियो भी था. ऑन लाइन एडिटिंग की भी सुविधा थी.
हद कर दी लापरवाही की - मीडिया सेंटर में आधा दर्जन टेली फिल्म भी बनाई गईं. लेकिन आरयू प्रशासन की अनदेखी के चलते वह दूरदर्शन पर प्रसारित ही नहीं हो सकीं. - टेली फिल्मों के रोल आज भी स्टूडियो में धूल फांक रहे हैं. -टीचर्स को स्क्रिप्ट लिखने का काम दिया गया था, लेकिन उन्होंने इसमें कोई रुचि नहीं दिखाई. हाईटेक था स्टूडियो का सैटअप - 04 वीटा कैमरे हांगकांग से खरीदे गए थे. - 02 एडिटिंग सिस्टम भी मिले थे - 01 क्रोमा और रियल सेट भी था - 01 टेलीप्रॉम्टर भी लगाया गया था अलग से रखा गया था स्टॉफ - 02 कैमरामैन - 01 लाइटिंग असिस्टेंट - 01 फिल्म प्रोड्यूसर - 01 केयर टेकर - 01 आडियो विजुअल ग्राफर