सांप्रदायिक दंगे के बाद कर्फ्यू से शहर में रोजमर्रा के जरूरत की वस्तुओं की किल्लत खड़ी हो गई है. खाद्य पदार्थों और दैनिक उपयोगी वस्तुएं नगरवासियों को नसीब नहीं हो रही हैं. कर्फ्यू लगने से रसोई ठंडी पड़ गई है. लोगों को जैसा मिल रहा वैसा खाने को मजबूर हैं. सोमवार को प्रशासन की शहर में दूध वितरण कराने की योजना परवान नहीं चढ़ पाई.


शनिवार से ही कर्फ्यूसांप्रदायिक हिंसा के बाद शहर में शनिवार की शाम को ही कर्फ्यू लगा दिया गया था. कर्फ्यू लगने के बाद से लोग घरों में कैद हैं. बाजार, दुकान सब बंद हैं. बाहर से दूध, सब्जी, फल, दवा व अन्य जरूरी खाद्य पदार्थों सप्लाई नहीं हो पा रही है. दुकानें न खुलने से खाने-पीने से लेकर सभी वस्तुओं का संकट खड़ा हो गया है. घरों में गैस सिलेंडर खत्म हो गए हैं. लोग कर्फ्यू में ढील की राह देख रहे हैं.दूध के लिए भटक रहे


सोमवार सुबह से ही शहर में लोग दूध के लिए गलियों में भटक रहे थे. शहरी क्षेत्र में जिन लोगों ने जानवर पाले हैं उनके यहां दूध लेने वालों की भीड़ लगी रही. क्या दुश्मन क्या मित्र सब दूध के लिए लाइन में लग गए थे. गांधी कालोनी में दूध के लिए भारी संख्या में महिलाएं लाइन में लगी रही. लेकिन बहुत कम को ही दूध मिल पाया.ढाई किलो आलू के 150 रुपये

एक लीटर दूध की कीमत लोग 100 रुपये तक चुकाने को तैयार था, लेकिन दूध ही नहीं था. वहीं गली मोहल्लों में कुछ स्थानों पर 15 रुपये किलो बिकने वाला आलू 60 रुपये किलो बिका. साकेत व गांधी नगर में आलू बेचने वालों ने ढाई किलो आलू के लोगों से 150 रुपये वसूल किए. जबकि आम दिनों में ढाई किलो आलू 35 से 40 रुपये के बीच में मिल जाती है. सामूहिक बन रहा भोजनघरों में राशन की कमी होने के बाद संजय मार्ग साउथ भोपा कालोनी के लोग गली में एकत्रित होकर सामूहिक रूप से भोजन पका रहे हैं. जिस घर में जो सामग्री उपलब्ध है वह सामूहिक भोज में उपलब्ध करा रहा है. प्रमोद बालिया, विवेक, अभिषेक, आशीष, अंशुल, ऋतुराज, इंशात व हिमांशु ने बताया कि घरों में राशन कम हो गया. इसलिए सामूहिक रूप से खाना पकाया जा रहा है, ताकि खाद्य सामग्री कफ्र्यू हटने तक चल सके.

Posted By: Satyendra Kumar Singh