-रोजगार की समस्या पर सरकार लगाए लगाम

- निजी स्कूलों की मनमानी और देश के विकास का भी उठा मुद्दा

GORAKHPUR: दैनिक जागरण आई नेक्स्ट की ओर से मिलेनियल्स स्पीक प्रोग्राम के तहत गोरखपुराइट्स ने लोकसभा चुनाव में उनके मुद्दों के बारे में खुलकर बात की. रेडियो सिटी के आरजे सारांश ने एक-एक कर उबलते मुद्दों पर कड़क बात की. लोकसभा चुनाव के नजदीक आने के साथ ही पूरे देश में राजनीतिक पार्टियों के वादों और इरादों पर बहस का दौर भी शुरू हो चुका है. वादे और भाषण सभी के लोक-लुभावन हैं. लेकिन नेताओं के वादों और भाषणों पर मिलेनियल्स की क्या राय है? वह मिलेनियल्स जिनकी भूमिका नई सरकार को चुनने में सबसे अधिक है आखिर उनके मुद्दे क्या हैं. इन सभी बिंदुओं पर गोरखपुर मिलेनियल्स ने बेधड़क होकर अपनी राय जाहिर की. मिलेनियल्स ने साफ तौर पर कहा कि चुनाव के समय में जाति, धर्म व साम्प्रदायिक मुद्दों पर अनाप-शनाप बयान देने वाली पार्टियों को वह कतई नहीं चुनेंगे. देश का विकास, रोजगार व शिक्षा में अमीर-गरीब को समान अवसर देने वाली पार्टी ही उनकी प्राथमिकता होगी.

दूर करें बेरोजगारी तभी पार्टी से यारी

मिलेनियल्स के बीच सरकारी योजनाओं को जमीन पर लागू करने, देश को विकसित करने, आसपास सफाई रखने और हड़तालों से गरीब आबादी पर पड़ रहे प्रभाव जैसे मुद्दे तो संजीदा हैं. लेकिन ज्यादातर युवा देश में बढ़ती बेरोजगारी की समस्या को प्रमुख मान रहे हैं और उस पार्टी को प्राथमिकता देने की बात कह कर रहे हैं जो रोजगार उपलब्ध कराने की दिशा में काम करे. हाई क्वालिफिकेशन के बाद भी युवाओं को बेहद मामूली सैलरी पर काम करना पड़ रहा है. देश की सुरक्षा को महत्वपूर्ण बताते हुए यूथ्स ने कहा कि देश की सुरक्षा के साथ किसी भी तरह का समझौता नहीं किया जा सकता. साथ ही पूरी दुनिया में देश की छवि को बेहतर तरीके से पेश करने वाली पार्टी ही उनकी प्राथमिकता में होगी. यूथ्स ने कहा कि लगातार मजबूत हो रही अर्थ व्यवस्था के तौर पर देश की पहचान बन रही है. इस दिशा में और भी काम किया जाना चाहिए.

मेरी बात

सरकार ने जन कल्याण के नाम पर जो योजनाएं तैयार की हैं वह वास्तविकता में लागू नहीं हो रही हैं. कागजों में भले ही योजनाओं का स्वरूप लुभावना हो लेकिन जमीनी सच्चाई अक्सर उसके विपरीत ही रहती है. मेक इन इंडिया का ही उदाहरण ले लिया जाए तो चार वर्ष पहले इसे बड़े ही जोर शोर के साथ लागू किया गया था. लेकिन कितने लोगों को इसकी सुविधा मिल सकी है यह जानने की कोशिश ही नहीं हो रही है. यह देश की अर्थव्यवस्था को बेहतर करने वाली योजना थी लेकिन जिम्मेदारों की उदासीनता ने योजना को जमीनी स्तर पर लागू होने से रोक दिया. मेक इन इंडिया का लाभ लेने का प्रयास करने वालों को महीनों तक सरकारी ऑफिसों के चक्कर काटने के बाद भी कुछ हासिल नहीं हो सका है. आवश्यक सुधार कर सरकारी योजनाओं को ग्राउंड लेवल पर भी लागू किया जाना चाहिए.

मयंक

कड़क मुद्दा

आशीष कुमार ने कहा कि देश में छोटे-छोटे मुद्दों पर भी लोग आंदोलन करने लगते हैं जिसके कारण देश की आम आबादी को परेशानी उठानी पड़ती है. लोगों को सरकार पर भरोसा करना चाहिए और लोकतांत्रिक तरीके से अपनी बात कहनी चाहिए. 10 से 12 हजार रुपए तक मंथली इनकम करने वाली गरीब आबादी ने अपने आप को कम से कम में समेटा हुआ है. लेकिन जो लोग 40 से 50 हजार रुपए तक इनकम कर रहे हैं उनके मुद्दे अधिक हैं और वही ज्यादा हड़ताल कर रहे हैं. ऐसे लोगों को एक बार सोचाना चाहिए कि हड़तालों में आम लोगों को काफी परेशानी उठानी पड़ती है.

सतमोला खाओ, कुछ भी पचाओ

सरकारी संस्थाओं का लगातार निजीकरण किया जा रहा है. निजी स्कूलों के मनमानेपन के कारण आम गरीब आबादी शिक्षा से वंचित होती जा रही है. सरकार को इस पर रोक लगाने के लिए सख्त कानून बनाने चाहिए. शिक्षा के बिना कोई व्यक्ति सही गलत में अंतर नहीं कर पाता है. इसलिए यह सभी के लिए जरूरी है.

कोट्स

सरकार की योजनाएं कागजों में तैयार होकर वहीं तक सिमटी रहती हैं. योजनाएं ग्राउंड लेवल पर लागू नहीं हो पाती हैं. जिसके कारण आम गरीब आबादी तक लाभकारी योजनाएं पहुंच ही नहीं पाती है.

आकाश शर्मा

सरकार को शिक्षा के एरिया में सुधार करने की जरुरत है. प्राइवेट स्कूलों पर लगाम लगनी चाहिए. फीस में मनमानी वृद्धि के कारण देश की गरीब आबादी शिक्षा से वंचित होती जा रही है.

रुपेश मौर्या

सफाई व्यवस्था में कुछ बदलाव तो आया है लेकिन यह अपेक्षित नहीं है. शहर की ही बात की जाए तो सीएम सिटी के लिहाज से इसे और साफ रखने की जरूरत है. प्रत्येक दुकानदार को स्वयं डस्टबिन रखना चाहिए जिसमें ग्राहक डिस्पोजल रख सकें. ऐसा नहीं होने पर ही शहर में गंदगी बढ़ रही है. जो दुकानदार कहने के बाद भी नहीं रखते हैं उनके ऊपर जुर्माना लगाना चाहिए.

चंदन अग्रवाल

देश में बेरोजगारी की समस्या लगातार बढ़ती जा रही है. इस पर रोक लगाने के लिए सरकार को सख्त कदम उठाना चाहिए. जो पार्टियां सरकार में आती हैं वह केवल दावे करती हैं. रोजगार की समस्या को हल करने की दिशा में काम नहीं करती हैं.

उत्कर्ष बरनवाल

प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में लाखों की संख्या में छात्र लगे हुए हैं. वर्षो तक तैयारी करने के बाद भी उन्हें रोजगार नहीं मिल रहा है. वह राजनीतिक पार्टी जो सत्ता में आने के बाद बेरोजगारी दूर करने के ठोस वादे करेगी मेरा वोट उसी को जाएगा.

उत्कर्ष त्रिवेदी

बिजली कटौती को कम करने का वादा राजनीतिक पार्टियों ने किया था. इसके बाद भी इस समय ज्यादा कटौती हो रही है. इस बिजली कटौती पर रोक लगनी चाहिए. आजकल सभी घरों में इलेक्ट्रॉनिक प्रोडक्ट्स यूज हो रहे हैं, बिना बिजली के काफी परेशानी होती है.

अनिमेष चरण सिंह

राजनीतिक पार्टियां चुनाव से पहले ढेर सारे वादे करती हैं लेकिन सत्ता में आते ही सब भूल जाती हैं. देश की आजादी के 70 वर्षो बाद भी आज देश के लाखों गांवों में बिजली नहीं आई है.

पीयूष मिश्रा

Posted By: Syed Saim Rauf