अपने देश की जनसंख्या तेजी से बढ़ती जा रही है. इसकी तुलना में रोजगार की संख्या लगातार कम होती जा रही है.

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PRAYAGRAJ :
अपने देश की जनसंख्या तेजी से बढ़ती जा रही है. इसकी तुलना में रोजगार की संख्या लगातार कम होती जा रही है. जब तक जनसंख्या पर नियंत्रण के लिए कठोर कानून नहीं बनाया जाता, सरकारी हो या प्राइवेट सेक्टर जॉब के चांसेज कम होते जाएंगे. फिर चाहे देश में किसी भी राजनैतिक पार्टी की सरकार बने. यह दर्द रविवार को तेलियरगंज स्थित अपट्रॉन चौराहे पर दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट मिलेनियल्स स्पीक के दौरान रोजगार जैसे अहम मुद्दे पर युवाओं की जुबां से बाहर निकलकर आया.

रेवड़ी की तरह बंट रही हैं डिग्रियां
डिस्कशन के दौरान रोजगार पर बोलते हुए युवाओं ने कहा कि जनसंख्या वृद्धि पर प्रभावी नियंत्रण न होने पर दस शिक्षित युवाओं में से एक को ही सरकारी जॉब मिल पाती है. बाकी नौ शिक्षित ऐसे होते हैं जो शार्टकट ढंग से शिक्षा ग्रहण करने संस्थानों में जाते हैं. इसीलिए शिक्षा का स्तर इतना गिरता जा रहा है कि स्नातक से लेकर परास्नातक तक की डिग्रियां रेवडि़यों की तरह बांटी जा रही हैं. इसके पीछे का मकसद सिर्फ धन बटोरना ही रह गया है.

कड़क मुद्दा
डिस्कशन के दौरान स्वच्छता अभियान के प्रभाव पर बात उठी तो कुंभ मेला का उदाहरण दिया गया. युवाओं ने बताया कि किस तरह प्रयागराज के साथ ही देश-दुनिया से यहां पहुंचे करोड़ों लोगों ने साफ-सफाई को बुलंदियों पर पहुंचाने का काम किया. मेला एरिया से लेकर सिटी साइड के हर हिस्से में रात-दिन सफाई होती थी तो पब्लिक सड़क पर गंदगी नहीं फैलाती थी. लोग डस्टबिन खोज-खोजकर कूड़ा फेंकती थी. ऐसा सिर्फ पब्लिक के अवेयर होने की वजह से हुआ था. युवाओं ने यह भी माना कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी शौचालय जैसे अभियान को साकार करने के लिए प्रचार-प्रसार की वजह से गांवों में भी स्वच्छता का असर दिखाई दे रहा है.

मेरी बात
भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने में हम खुद सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं. हमें लगता है कि फलां काम जल्दी कराना है तो लेनदेन कर लो काम हो जाएगा. यही लेनदेन बड़े स्तर पर जाकर अधिकारियों और नेताओं के बीच होने लगता है. भ्रष्टाचार की बात हो या काला धन की हर मुद्दे पर सरकार को कोसने की आदत बनती जा रही है. हम कितने सजग होकर गलत कामों का विरोध करते हैं यह सोचने के लिए वक्त नहीं है. बस कोई मुद्दा आया तो सब कुछ भूलकर फालतू की बातें शुरू कर दी जाती हैं.
-वेंकटेश मिश्रा

सतमोला खाओ, कुछ भी पचाओ
सोशल मीडिया पर अफवाह फैलाने का काम सबसे ज्यादा होता है. दस-दस साल पुरानी तस्वीरें शेयर करके लोग जाति और धर्म के साथ खिलवाड़ करते हैं. सोशल मीडिया पर देश को बांटने की बात करने वालों को जेल भेज दिया जाना चाहिए. इस चीज को लेकर कड़ा कानून ना होने की वजह से लोग बेलगाम होते जा रहे हैं.

 

 

कॉलिंग
भ्रष्टाचार से लेकर रोजगार हर समस्या की जड़ में जनसंख्या वृद्धि ही है. विकास का पैमाना तभी सही हो सकता है कि जब जनसंख्या पर सख्त कानून बनाया जाए. यह ऐसी चीज है जिसकी वजह से बेरोजगार युवाओं की तादाद बढ़ती जा रही है. गरीबी देश से दूर नहीं हो रही है बल्कि गरीबी को दूर करने वाले अमीर होते जा रहे है. यही इस देश का दुर्भाग्य है.
- मुन्ना शुक्ला

जब हम स्वच्छता की बात करते हैं तो कुंभ मेला पूरी दुनिया के लिए नजीर साबित हुआ है. मेला की अवधि से लेकर आज तक हर किसी की जुबान से साफ-सफाई की तारीफ सुनने को मिलती है. इसके लिए खुद पब्लिक का जागरूक होना सबसे बड़ी उपलब्धि है. अगर इसी तरह पब्लिक देश के हर ज्वलंत मुद्दे पर जागरूक होकर खड़ी हो जाए तो समस्याओं का समाधान आसानी से हो सकता है.
- नागेन्द्र सिंह

जनसंख्या ने इस देश को विश्व की महाशक्ति बनने से रोक दिया है. यह कोई एक दिन में नहीं हुआ है. आजादी के बाद से लेकर अब तक किसी सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया है. जिसने ध्यान देने की कोशिश की उस पर राजनीति होती थी. इस देश की यही समस्या है कि जो चीजें देश हित में सोचकर की जाती है उस पर हमेशा से घटिया राजनीति होती रही है.
- गिरजेश मिश्रा

सोशल मीडिया ने पब्लिक के मन में सही और गलत को समझने की शक्ति का पतन करके रख दिया है. पुरानी-पुरानी फोटो को शेयर करके पब्लिक में शेयर किया जा रहा है. अब चुनाव आ गया है तो यह काम युद्ध स्तर पर हो रहा है. इसको रोकना किसी के वश में नहीं है क्योंकि देश का प्रत्येक राजनैतिक दल इसको व्यापक स्तर पर फॉलो कर रहा है.
- राजेश मिश्रा

अब पब्लिक इतनी जागरूक हो गई है सरकारी विभागों में भ्रष्टाचार का अनुपात कम हो रहा है. सरकार के लेवल पर कड़ाई की वजह से तीस फीसदी तक भ्रष्टाचार कम हो गया है. अब तो सोशल मीडिया और डिजिटल क्रांति का ऐसा जमाना आ गया है कि अधिकारियों और कर्मचारियों को किसी कार्य में भ्रष्टाचार करने से पहले दस बार सोचना पड़ता है.
- शरद कुमार मिश्रा

इस देश में क्वॉलिटी एजूकेशन की बातें सिर्फ सेमिनारों में ही सुनने में अच्छी लगती हैं. बात चाहे इंटर लेवल की हो या हाई लेवल एजुकेशन की. मुझे आज तक यह नहीं समझ में आया कि जनप्रतिनिधि क्यों नहीं अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाने के लिए भेजते हैं? क्यों नहीं बच्चों को इंडियन आर्मी में भेजते हैं? जिस दिन ऐसा होने लगेगा वाकई देश में बदलाव दिखने लगेगा.
- अंबिका मिश्रा

देश के एजुकेशन सिस्टम में सबसे ज्यादा बदलाव की जरूरत है. इस सिस्टम की हालत इतनी खराब हो गई है कि रेवड़ी की तरह कॉलेज खुल गए हैं और थोक के भाव डिग्रियां दी जा रही है. जब तक ऐसी स्थिति बनी रहेगी तब तक क्वॉलिटी एजुकेशन के साथ-साथ रोजगार की बात करना ही बेमानी होगा.
- जयवर्धन त्रिपाठी

जिस देश में सर्जिकल और एयर स्ट्राइक के नाम पर घटिया राजनीति होती रहेगी वहां जनमानस को हमेशा मूलभूत सुविधाएं दिए जाने के नाम पर छला जाएगा. दुर्भाग्य की बात है कि एयर स्ट्राइक के बाद भी इंडियन आर्मी को सबूत देना पड़ रहा है. क्या दूसरे देश में कभी ऐसा होता हुआ सुनाई देता है.
- सर्वेश गिरि

भ्रष्टाचार की पहली सीढ़ी खुद पब्लिक है. दूसरे को दोष देने से पहले हमें अपने अंदर बदलाव लाना चाहिए. लेकिन ऐसा सपने में भी नहीं सोचा जा सकता है. क्योंकि हम बहुत आसानी से अपनी गलतियों का जिम्मेदार दूसरे को मानते है. आप सही है और विरोध करना जानते हैं तो क्या मजाल कोई अधिकारी या सरकारी विभाग भ्रष्टाचार कर पाए.
- प्रदीप पांडेय

आजादी के इतने साल के बाद भी गरीबों का कल्याण नहीं हुआ. सरकारें सिर्फ वायदा करना जानती हैं लेकिन उसे पूरा करने के नाम पर अपने लोगों का विकास करती हैं. वजह, ये वही अपने लोग होते हैं जो सांसद या विधायक बनने के लिए भारी भरकम राशि देते हैं. जब राशि देकर टिकट पाने वाला जीत हासिल करता है तो वह सबसे पहले अपना विकास करता है.
- मुकेश शुक्ला

Posted By: Vijay Pandey