इंसानी जिंदगी का सबसे महत्वपूर्ण क्षण जन्म और मृत्यु हैं. लेकिन दुनिया भर में होने वाली मौतों में से दो तिहाई का कोई रिकॉर्ड नहीं रखा जाता. कई देशों में नागरिकों का रिकॉर्ड रखने वाला प्रणाली की पहुंच इतनी कम है कि बहुत सी मौतों का पता ही नहीं चलता. यह पता न चलने पर कि कौन मर गया है और उसकी मृत्यु किस वजह से हुई किसी भी देश की सेहत के बारे में कोई तस्वीर बनाना असंभव हो जाता है.लेकिन क्या इस समस्या का हल एक मोबाइल ऐप हो सकता है?


विशेषज्ञों का मानना है कि मोबाइल ऐप के रूप में नई तकनीक इस परिदृश्य पर खासा असर छोड़ सकती है. फॉर्म की छुट्टी"मौखिक शव-परीक्षा" (वर्बल ऑटोप्सी) नाम के नए मोबाइल ऐप के साथ कार्यकर्ता मरने वाले के घर जाकर उसकी मृत्यु की परिस्थितियों के बारे में जानकारी लेते हैं. ऐसी जगहों से, जहां अब तक पहुंचना भी आसान नहीं रहा था, डिजिटल तरीके से सूचनाएं जुटाए जाने से दुनिया भर मौतों के बारे में हमारी समझ बेहतर हो सकती है.मलावी में स्वास्थ्य केंद्र के बाहर होने वाली किसी भी मृत्यु का कोई रिकॉर्ड नहीं रखा जाता. यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में एक शोधकर्ता डॉ कैरिना किंग मलावा के एक जिले शिंजी में मोबाइल फोन से शव-परीक्षा के क्रियान्वयन पर नजर रख रही हैं.


उन्होंने बीबीसी को बताया, "हमें लोग आश्चर्यजनक रूप से सहज लगे. मुझे लगता है कि जब हम उनका साक्षात्कार लेते हैं तो उन्हें मोबाइल फोन खासे रुचिककर लगते हैं."मौखिक शव-परीक्षा करीब 20 साल से इस्तेमाल की जा रही है लेकिन परंपरागत रूप से जानकारी कागज पर तैयार प्रश्नावली में ही दर्ज की जाती है.अक्सर काफी लंबे इन प्रश्नावलियों के जवाबों को विश्लेषण बाद में दो डॉक्टर अध्ययन करते हैं और मौत की वजह जानने की कोशिश करते हैं.

हालांकि यह काफी लंबा काम है और इसका मतलब यह होता है कि बहुत से प्रश्नावलियां बिना पढ़े ही धूल खाती रहती हैं.डॉ किंग कहते हैं, "मोबाइल फोन बहुत बेहतर रहे हैं क्योंकि इसका मतलब यह है कि हमें बहुत से फॉर्म नहीं भरने पड़ते हैं.""आंकड़ों तक हमारी पहुंच बहुत तेजी से होती है और हम जल्द ही उनका विश्लेषण कर मौत के कारणों की वजह पता कर सकते हैं."लजाजो परिवारमिवा (MIVA) नाम के इस  फ़ोन सॉफ़्टवेयर में बहुत से सवालों की श्रृंखला होती है जिससे प्रशिक्षित कार्यकर्ता परिवार से जानकारी हासिल करने के लिए इस्तेमाल करता है. हर सवाल के एक बहुत से संभावित जवाब होते हैं और सॉफ़्टवेयर जवाब के आधार पर बुद्धिमत्ता से अगले सवाल को टाल देता है.सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इसे बहुत जल्दी ही मौत की संभावित वजह जानने के लिए तैयार किया गया है.इसके परिणाम फ़ोन में जमा हो जाते हैं और इन्हें केंद्रीय डाटावेस में टेक्स्ट मैसेज या इंटरनेट से अपलोड कर भेजा जा सकता है.सिटी यूनिवर्सिटी, लंदन, के डॉ जोन बर्ड सॉफ़्टवेयर तैयार करने वाली टीम में शामिल थे. वह कहते हैं कि मोबाइल फ़ोन डाटा एकत्र करने के लिए ख़ासी सहूलियत देते हं.

उन्होंने बीबीसी को बताया, "मोबाइल फ़ोन संभवतः दुनिया में सबसे प्रचलित तकनीक है. यह सस्ते हैं, मज़बूत हैं और हर कोई जानता है कि इन्हें इस्तेमाल कैसे करना है."मलावी में मोबाइल फोन से शव-परीक्षा को अभी बच्चों की मृत्यु की वजह जानने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है.स्थानीय चिशेवा भाषा में इस प्रोजेक्ट का नाम है, माई म्वाना, यानि कि मां और बच्चा. इसमें उन बच्चों पर ध्यान केंद्रित है जिनकी मृत्यु उनके पांचवें जन्मदिन से पहले हो गई है.विश्व बैंक के 2012 के आंकड़ों के अनुसार मलावी में पांच साल से कम के बच्चों की मृत्युदर हर 1,000 में 71 है. इसके मुकाबले ब्रिटेन में यह दर प्रति 1,000 में पांच ही है.लजारो साइप्रियानो शिंजी जिले के जांग्वा गांव में अपनी बीवी माग्दालेना और अपने नवजात बच्चे के साथ रहते हैं. उनके दो बच्चों की मृत्यु हो चुकी है.उनके दूसरे बच्चे की मृत्यु करीब एक साल पहले तेज़ बुखार के चलते अस्पताल के कई चक्कर लगाने के बाद भी हो गई थी. मौखिक शव-परीक्षा के लिए उसी से बात की जाएगी.शहरी क्षेत्र के बाहर सबसे बड़ी दिक्कत यही पता लगाने की है कि कोई मौत हुई कब थी.
इसलिए क्षेत्र में काम कर रहे कार्यकर्ता माई म्वाना दल को यह बताने की ज़िम्मेदारी लेते हैं कि इलाके में किसकी मृत्यु हुई है.इसी तरह से लजाजो के परिवार का पता चला था.अब उनके पास यह बताने का मौका है कि उनके बेटे एनडी की मौत कैसे हुई थी और इस जानकारी को रिकॉर्ड किया जाएगा.मानकीकृतप्रभावित परिवार का साक्षात्कार लेना एक बेहद संवेदनशील और कौशल वाला काम है.क्षेत्र में काम करने वाले कार्यकर्ता निकोलस म्बवाना कहते हैं कि मोबाइल फ़ोन ने इसे काफ़ी आसान बना दिया है.वह कहते हैं, "हम घर में जाते हैं और मृत्यु की वजह पूछते हैं- दरअसल हुआ क्या था. इसके अलसावा हम जीपीएस लोकेशन को भी रिकॉर्ड करते हैं ताकि भविष्य मे उस घर को ढूंढा जा सके."डॉ किंग के अनुसार यह प्रणाली इस परिजोना की सफ़लता का आधार है. वह कहते हैं, "जीपीएस से हमें ज़िले के हर घर की स्थिति पता चल जाती है. इसलिए हम बाकायदा एक नक्शा बना सकते हैं कि कहां लोग किस वजह से मर रहे हैं. इसका मतलब यह हुआ कि हम विशेष कारणों के लिए विशेष कार्यक्रम बना सकते हैं."
मोबाइल फोन शव-परीक्षा इस समय सीमित स्तर पर इस्तेमाल की जा रहबी है लेकिन दीर्घकाल में इस तकनीक को वृहद स्तर पर इस्तेमाल किया जा सकता है.डॉ बर्ड कहती हैं, "इस प्रणाली की खास बात यह है कि मानकीकृत है और इसका किसी भी भाषा में अनुवाद किया जा सकता है."विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) इस कोशिश का समर्थन कर रहा है और ब्रिटेन से स्वीडन तक कई संस्थाओं के साथ इस तकनीक क और विकसित करने पर काम कर रहा है.इसके आंकड़ों को अभी कई डाटाबेस में एकत्र किया जा रहा है जहां से सार्वजनिक स्वास्थ्य पर काम करने वाले लोग इसे हासिल कर सकते हैं.अभी यह संभव है कि सरकारी आंकड़ों से लाखों मौतों का पता न चले लेकिन मोबाइल पर रिकॉर्ड की गई मौखिक शव-परीक्षा इस समस्या को हल करने की दिशी में छोटा लेकिन महत्वपूर्ण कदम हैं.

Posted By: Bbc Hindi