vijay.sharma@inext.co.in

JAMSHEDPUR: लौहनगरी में लाखों करोड़ों रुपये फागिंग में खर्च होने के बाद भी मच्छरों की रोकथाम नहीं हो सकी है। प्रदेश और शहर के मलेरिया विभाग के आकड़ों पर नजर डाले तो मरीजों की संख्या में वूद्धि हुई हैं। शहर में मच्छर बढ़ने का कारण इंडस्ट्रियल ऐरिया और बढ़ती गंदगी माना जा रहा हैं। मच्छरों के काटने से डेंगू, किचनगुनिया, मलेरिया, जापानी इन्फेलाइसिस, फलेरिया और जीका वायरस जैसी जानलेवा बीमारियां फैलती हैं। बताते चले कि फागिंग के दौरान केमिकल का डोज कम होने से मच्छर नहीं मर रहे हैं। जिससे एक सप्ताह के बाद मच्छर फिर से पुराने स्थानों में आ जाते हैं। फागिंग अधिकारियों ने बताया कि केमिकल का ज्यादा प्रयोग लोगों के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डालता है। जिसके चलते कम डोज डाला जाता हैं। शहर में फागिंग में हर दिन 5 से 10 हजार रुपये खर्च किए जा रहे है। मच्छरों को मारने के लिए प्रयोग की जाने वाली हजारों के केमिकल और डीडीटी दवाएं बेअसर साबित हो रही हैं।

झारखंड में मलेरिया मरीज

वर्ष मरीजों की संख्या मृतकों की संख्या

2011 106236 12

2012 106753 10

2013 105637 8

2014 103735 8

2015 104800 6

2016 141414 5

2017 92770 2

सेहत पर डाल सकता है असर

मच्छरों को मारने के लिए प्रयोग की जाने वाली दवाओं का अधिक प्रयोग लोगों के जीवन पर भी दुष्प्रभाव डाल सकता है। फागिंग से दमा रोगियों के साथ ही यह केमिकल मनुष्य के फेफड़ों को भी दूषित करता है। अधिकारियों का मानना है कि फागिंग के समय इसी लिए मुंह बंदकर इसका छिड़काव किया जाता है। यह मच्छरों के साथ ही लोगों के स्वास्थ्य परर भी बुरा असर डालती है।

हर दिन हजारों का उड़ रहा डीजल

जेएनएसी के फागिंग प्रभारी ने बताया कि एक घंटे मशीन चलाने में 30 लीटर डीजल का प्रयोग होता है। जिसमें लेबर और गाड़ी मिलकार 4 हजार रुपये तक प्रतिदिन खर्च आता है। उन्होंने बताया कि फागिंग का असर एक सप्ताह तक रहता जिसके बाद फिर से मच्छर आने लगते हैं। इस तरह शहर की तीनों अक्षेसो में औसतन हर दिन 10 हजार रुपये हवा में उड़ रहे हैं।

इस वर्ष और पिछले वर्ष जिले में मलेरिया से कोई भी मौत नहीं है। शासन स्तर पर भी मलेरिया की रोकथाम के लिए टीम बनाकर अभियान चलाया जा रहा हैं। बारिश और जलभराव को देखते हुए विशेष अभियान चलाया जाएगा।

-डॉ शाहिर पाल, जिला मलेरिया पदाधिकारी

Posted By: Inextlive