2011 में लीबिया में मोआमर गद्दाफ़ी का तख़्तापलट हुआ था और अक्टूबर महीने में नैटो के हमले में गद्दाफ़ी मारे गए थे। तब इस देश में जश्न मनाने की तस्वीरें सामने आईं थीं लेकिन गद्दाफ़ी की मौत के चार साल बाद भी कई लोग हैं जो गद्दाफ़ी को मसीहा मानते हैं।


मुझे यह तलाशने के लिए घाना के बहुत अंदर नहीं जाना पड़ा। घाना की राजधानी अकरा में रहते हैं करीम मोहम्मद। 45 साल के करीम पेशे से दर्जी हैं जो गद्दाफ़ी की मौत से पहले तीन साल तक लीबिया में रह चुके हैं।करीम शादीशुदा हैं और उनके तीन बच्चे भी हैं। वे छह बेडरूम वाले मकान में रहते हैं। ये मकान इन्होंने लीबिया में कमाए पैसों से बनाया है।अकरा के उत्तर में शहर है लीबियाई क्वार्टर। यहां ज़्यादातर वैसे लोग रहते हैं जिन्होंने गद्दाफ़ी के शासन के दिनों में पैसे कमाए हैं।


ऐसे लोगों में हैं शेख़ सवाला। जिनका घर दूर से किसी आलीशान कोठी की तरह नज़र आता है। उन्होंने लीबिया में कमाए पैसों से अपने देश में कई कामयाब उद्यम शुरू किए हैं. उनके मकान में 30 बेडरूम हैं। ज़ाहिर है गद्दाफ़ी के बिना वे ऐसा घर शायद ही बना पाते।हालांकि कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनका घर गद्दाफ़ी की मौत तक आधा ही बना हुआ था, ऐसे घर आज भी आधे अधूरे नज़र आते हैं। 36 साल के अमाडू से भी मुलाकात होती है।

संकोची अमाडू अपनी कहानी बताते हैं कि उनके पास लीबिया में काम करने का उपयुक्त वीज़ा नहीं था. 2010 में वे अपने कुछ दोस्तों के साथ सहारा रेगिस्तान के रास्ते लीबिया पहुंचे थे। इस दौरान उनके पास पानी ख़त्म हो गया और उनके कई दोस्तों की मौत भी हो गई थी।लेकिन अमाडू लीबिया पहुंचने में कामयाब रहे और उन्हें वहां टाइल्स लगाने का काम भी मिल गया।2011 में जब युद्ध शुरू हुआ तब अमाडू के पास करीब साढ़े तीन हज़ार डॉलर जमा हो चुके थे। लेकिन गोलीबारी के समय मे वे अपना सबकुछ छोड़कर किसी तरह घाना पहुंच पाए. गद्दाफ़ी की मौत के बाद उनके सपने बिखर गए हैं।मुस्तफ़ा कहते हैं, "घाना के युवाओं के लिए यहां कुछ नहीं बचा है। गद्दाफ़ी के बाद हमलोग काफ़ी संकट में हैं। युवाओं में बेरोजगारी काफ़ी बढ़ गई है, हमलोगों के पास करने के कुछ नहीं हैं. जीने के लिए हमें या तो अपराध का रास्ता चुनना होगा या फिर हमें यूरोप जाने की कोशिश करनी होगी।"दूसरे भी इससे सहमति जताते हैं। इलियास कहते हैं, "अब हमें यूरोप, यूरोप, यूरोप ही जाना होगा। कुछ लोग ब्राज़ील जा रहे हैं, वह ये खर्च उठा सकते हैं। नहीं तो हर कोई यूरोप जाना चाहता है।"

गद्दाफ़ी ने अपनी मौत से पहले ही यूरोपीय यूनियन को आगाह किया था कि अगर उनकी सरकार गिर गई तो कम से कम बीस लाख अप्रवासी लोग यूरोप का रुख करेंगे और यूरोपीय देशों के लिए मुश्किलें पैदा होंगी।हो सकता है कि गद्दाफ़ी मसीहा कम और कठोर शासक ज़्यादा रहे हों, लेकिन ऐसा लगता है कि यूरोप के बारे में वो सही थे।

Posted By: Satyendra Kumar Singh