इस एरा के बेस्ट डायरेक्टर्स में से एक कश्यप ने ये क्लेम करके कि गैंग्स ऑफ वासेपुर मार्टिन स्कॉरसीस सरीखे फिल्ममेकर्स की स्टाइल से इंस्पायर्ड है अनुराग ने इस फिल्म के लिए खुद ही एक बहुत बड़ा पैरामीटर खड़ा कर दिया था.

अगर आप इंटेंस फिल्मों में इंट्रेस्ट और जानकारी रखते हैं तो आपको बखूबी ये अंदाजा होगा कि कम्पैरिजन का लेवल क्या होगा. अगर आप फिल्में एंटरटेनमेंट के लिए देखते हैं तो फिल्म शुरू होने के आधे घंटे के भीतर ही आपको अंदाजा हो जाएगा कि आप इंडियन सिनेमा की सबसे बेहतरीन गैंगस्टर फिल्म देख रहे हैं.

गैंग्स ऑफ वासेपुर का हर फ्रेम और हर सीक्वेंस सरप्राइज नहीं करता, क्योंकि आपको सरप्राइज होने का मौका ही नहीं मिलता. ये इंडियन सिनेमा की उन गिनी-चुनी फिल्मों में से एक है जहां हर फ्रेम, हर छोटे से छोटा सीन स्टोरी में कुछ न कुछ जोड़ता चला जाता है.

वासेपुर (धनबाद का एक हिस्सा) में कुरैशी और पठान के बीच के इस गैंगवार की पहली परत खुलने से पहले आप स्क्रीन पर तुलसी वीरानी (स्मृति ईरानी का क्योंकि सास भी कभी बहू थी) को कैमरे के सामने मुस्कुराते हुए अपने घर के सभी लोगों से मिलवाते हुए देख रहे होते हैं. अचानक, एक झटका लगता है. गोली से टीवी स्क्रीन बिखरने के साथ ही दिखता है गैंग्स ऑफ वासेपुर का गैंगवार.

Character sketch: टैलेंट से भरपूर मनोज बाजपेई (सरदार) और नवाजुद्दीन (फैसल खान), हर फ्रेम में अपनी छाप छोड़ते हैं. मनोज बाजपेई का सरदार, एक ऐसा कैरेक्टर है जो अपनी बीवी से मार खाते वक्त डरपोक दिखाई देता है, गोली चलाते वक्त डरावना और इमोशनलेस दिखता है, और इस सबके साथ वह चालू, कांइयां, धूर्त, सब बारी-बारी से दिखता है. मनोज बाजपेई इन सभी (और इनके सिवा भी कई) शेड्स एकदम फ्लूइड तरीके से निभाते दिखते हैं. नवाजुद्दीन की परफॉर्मेंस की आग हर फ्रेम में दिखती है. दोनों लीड एक्टर्स के सिवा, छोटे से छोटे रोल में नजर आए एक्टर्स भी बेहतरीन हैं. मनोज बाजपेई की गाली गलौच में माहिर बीवी के रूप में रिचा चड्ढा एक बेहतरीन खोज हैं. रामधीर सिंह के रोल में तिग्मांशू धूलिया, डेफिनिट के रोल में फिल्म के स्क्रिप्ट राइटर जैशान कुरैशी से लेकर हर एक एक्टर मंझा हुआ दिखता है.

Script and screenplay:  कहने को कहानी को आप दो सेंटेंस में कह सकते हैं: धनबाद के वासेपुर में कोल माइनिंग के बैकग्राउंड के बीच पनपने वाली एक कहानी. रामधीर सिंह (तिग्मांशु धूलिया) शाहिद खान को मौत का तोहफा देता है. शाहिद का बेटा सरदार (जिसके सिर पर रामधीर सिंह उसके मरे हुए पिता के खून का तिलक लगता है) वहां से बच के भाग निकलने में सफल हो जाता है. वह बदला लेने तक अपने बाल मुंडाए रखने की कसम खाता है और इस तरह शुरू होती है पॉवर और बदले की एक कहानी, जिसके बैकड्रॉप में है धनबाद का स्क्रैप और कोल माइनिंग का काम. सुनने में एक और बदले की कहानी लगने वाली इस फिल्म को इसकी स्क्रिप्ट और बेजोड़ स्क्रीनप्ले वो कसाव देते हैं कि आपका दिमाग और आंखें स्क्रीन से हटना नहीं चाहते.
स्क्क: स्नेहा खनवालकर का म्यूजिक उतना ही स्टोरी का हिस्सा है जितनी कि खुद फिल्म की स्टोरी. फिल्म में 25 गाने हैं (जी हां 25) लेकिन वह इस हद तक स्क्रिप्ट में गुंथे हैं कि आपको उनके होने का अहसास ही नहीं होता.
पांच घंटे से भी ज्यादा लम्बी इस फिल्म को इंडियन व्यूअर्स को दो पार्ट में देखना होगा. एक पार्ट देखने के बाद दूसरी का इंतजार करना अपने आप में एक सजा है.

Posted By: Garima Shukla