-पुलिस भूलती जा रही है बेसिक पुलिसिंग

-खोते जा रहे हैं मुखबिर, नहीं मिलती पुलिस को जानकारी

-पुलिस के कई बड़े मुखबिरों की हो चुकी है हत्या

piyush.kumar@inext.co.in

ALLAHABAD: पुलिस के कभी सबसे करीब माने जाने वाले मुखबिर अब धीरे-धीरे गायब होते जा रहे हैं। पुलिस खुद अपनी पुलिसिंग भूलती जा रही है। न तो उन्हें मुखबिरों की चिंता रहती है और ना ही इस बात की कि कैसे बेसिक पुलिसिंग होगी। नतीजा जो केस पहले आसानी से मुखबिर की सूचना पर ट्रेस हो जाते थे। आज पुलिस को खुलासा करने के लिए न तो कोई क्लू होता है और ना ही कोई सूचना।

मिलती थी सही जानकारी

कोई भी घटना होने के बाद उसका वर्कआउट करना पुलिस के लिए बड़ा चैलेंज होता है। लूट हो या ब्लाइंड मर्डर, दोनों ही केस में बदमाशों को ट्रेस करना आसान नहीं होता। पहले भी इस तरह की घटनाएं होती थीं। लेकिन पुलिस अपने मुखबिर की मदद से इस तरह के केसेज को आसानी से ट्रेस कर लेती थी। मुखबिर उन्हें सटीक जानकारी दे देते थे। यह भी बता देते थे कि किसने घटना को अंजाम दिया है और वह कहां भाग कर गया है। लेकिन अब ऐसा नहीं हो रहा है।

एसएसपी को करना पड़ा ऐलान

शहर में कई घटनाएं हो रही हैं लेकिन पुलिस उनका खुलासा नहीं कर पा रही है। यही कारण है कि रविवार को एसएसपी दीपक कुमार को ऐलान करना पड़ा कि जो भी दरोगा भल्ला दंपत्ति मर्डर केस और मधवापुर में जज के यहां लूट की घटना का वर्कआउट करेगा, उसे थानेदारी दी जाएगी। दरअसल सिर्फ यही दो घटनाएं नहीं हैं, बल्कि ऐसे दर्जनों मामले हैं जो पुलिस की फाइल में दफन हो चुके हैं। इसका सबसे बड़ा कारण यह रहा था कि पुलिस के पास बदमाशों की कोई जानकारी नहीं है। पुलिस यह भी नहीं ट्रेस कर रही कि इन सनसनीखेज घटनाओं को लोकल बदमाशों ने अंजाम दिया या फिर बाहरी ने। नतीजा केस ठंडे बस्ते में पड़ गया।

करते हैं पैसा खर्च

पुलिस विभाग में आफ द रिकार्ड आज भी मुखबिरी के लिए रुपए दिए जाते हैं। ताकि पुलिस अपना नेटवर्क बनाए रखे। सिर्फ पुलिस विभाग ही नहीं बल्कि एसटीएफ को भी मुखबिरी के लिए रुपए दिए जाते हैं। कई बड़े बदमाशों को ट्रेस करना और उनके लोकेशन के बारे में पता करने के लिए पुलिस को मुखबिर से सूचना लेनी पड़ती है। लेकिन अब ऐसा कम ही पुलिस वाले करते हैं। इलाहाबाद पुलिस की बात करें तो कुछ ही ऐसे दरोगा हैं जो मुखबिर की सूचना पर विश्वास करते हैं और बाकी तो अपने हिसाब से काम करते हैं। जब मामला फंस जाता है तो केस को आसानी से ठंडे बस्ते में डाल देते हैं।

सर्विलांस पर अत्यधिक विश्वास

मुखबिर और पुलिस की कम्युनिकेशन गैप के पीछे सबसे बड़ा कारण सर्विलांस सिस्टम है। पुलिस को लगता है कि जितना टाइम वह अपने मुखबिर पर खर्च करेगी, रुपए बर्बाद करेगी उतने में वह सर्विलांस की मदद से आसानी से बदमाश को ट्रेस कर लेगी। यकीनन सर्विलांस की मदद से आसानी से बदमाश ट्रेस किए जा सकते हैं। लेकिन यह तभी संभव है जब बदमाशों के बारे में सटीक जानकारी मिल जाए। कई मामले पुलिस सर्विलांस की मदद से खुलासे की है लेकिन उसके पीछे सटीक मुखबिर की सूचना रही है। मुखबिर ने ही पुलिस को बदमाशों के नाम और मोबाइल नंबर अवेलेबल कराए हैं।

बड़े मुखबिर जो मार दिए गए

ओसामा-ओसामा कभी छोटा राजन गैंग के लिए काम करता था। जौनपुर का रहने वाला ये बदमाश आसपास के जिलों में अपराध करने के अलावा मुम्बई तक में अपनी घुसपैठ बना चुका था। कई बार जेल जाने के बाद उसकी आदतों में सुधार आया। उसकी पुलिस से सेटिंग हो गई और वह पुलिस के लिए काम करने लगा। जरायम की दुनिया के बड़े बदमाशों की जानकारी वह पुलिस को देने लगा। जब इस बात की जानकारी उन्हें हुई तो ओसामा की हत्या कर दी गई।

हनुमान-यमुनापार एरिया में हनुमान का वर्चस्व था। पुलिस के नाम पर वह गुंडई करता था। लेकिन पुलिस के लिए वह बड़े ही काम का था। मर्डर और लूट होने पर वह पुलिस को सटीक जानकारी देता था। नैनी और आसपास के एरिया में रहने वाले बदमाशों पर उसकी नजर रहती थी। कुछ सालों पहले अज्ञात बदमाशों ने उसे बम से उड़ा दिया।

फकीरे-फकीरे धूमनगंज थाने का हिस्ट्रीशीटर था। उसकी क्राइम हिस्ट्री में कोई संगीन अपराध बचा नहीं था। लेकिन कुछ सालों पहले वह जमानत पर रिहा होने के बाद जरायम की दुनिया से तौबा कर लिया और प्रापर्टी डीलिंग का काम करने लगा। साथ ही उसने पुलिस से दोस्ती गांठ ली। लोकल पुलिस के साथ-साथ वह एसटीएफ का भी सटीक मुखबिर बन गया। धूमनगंज में बच्चा पासी से लेकर कई बड़े बदमाशों की जानकारी वह पुलिस को देने लगा। फिर एक बार पता चला कि बदमाशों ने घर में घुसकर 9 एमएम की पिस्टल से उसके ऊपर गोलियों की बौछार कर दी।

Posted By: Inextlive