Varanasi: हरिश्चन्द्र घाट स्थित महाश्मशान पर चिता संग चिलम भी सुलग रहा है. हर तरफ धुआं ही धुआं है. सन्नाटा जिसकी किस्मत थी वह घाट कोलाहल से भर गए हैं. दर्जनों तम्बू-कनात में सैकड़ों भभूत और भगवाधारियों की भीड़ है. जी हां भगवान भूतनाथ के भक्त कुम्भ से काशी आ चुके हैं. धुनी रमाने से पहले धुआं उड़ाना इनकी आदत है. पूरब में सूरज की लालिमा नजर आने से पहले इनके चिलम की आग सुलग जाती है. कहीं गांजा का सुïट्टा तो कहीं विदेशी सिगरेट का कश लगना शुरू हो जा रहा है. सेवा में लगे देसी-विदेशी चेले बाबा का पूरा साथ रहे हैं. अस्सी से लेकर राजघाट तक अजीब मायावी और मदहोशी का माहौल है.


घाट पर बना लिया घर


गंगा-यमुना और सरस्वती के संगम से संतो का डेरा उठा तो सुरसरी के तट पर आ लगा है। अस्सी से लेकर राजघाट तक जिसे जहां जगह मिली उसने अपना तम्बू-कनात वहीं गाड़ दिया है। भगवान भूतनाथ के परम भक्त नागा श्मशान में धुनी रमाये बैठे हैं। वैसे तो तम्बू अलग-अलग है लेकिन हर किसी का नजारा एक जैसा है। हर तम्बू में भोर से लेकर देर रात तक चिलम का धुआं उड़ रहा है। क्या बाबा और क्या चेला। बाबा लम्बी सांस के साथ लम्बा सुïट्टा मारते हैं और चिलम चेले की ओर बढ़ा देते हैं। यह सिलसिला तब तक निरंतर चलता रहता जब तक चिलम की आग ठण्डी नहीं हो जाती है। उसमें फिर से गांजा भरा जाता है और चिलम की आग सुलग पड़ती है। साधना के पहले घाट की सीढिय़ों पर बैठकर बाबा गांजा के सुरुर में डूबते हैं। बाबाओं को विदेशी सिगरेट का भी खूब शौक है। चेले कर रहे इंतजाम

वैसे तो बाबा अपने साथ नशे का इंतजाम लेकर आए हैं। अगर किसी के पास स्टॉक कम हो जाता है तो उसका इंतजाम लोकल चेला तुरंत कर दे रहा है। डेली एक से दो कुंतल गांजा बाबाओं के चिलम पर चढ़ जा रही है। सिगरेट और बीड़ी की डिमांड भी काफी बढ़ गयी है। कई बाबा हैं जो विदेशी सिगरेट का शौक रखते हैं। चेले इसकी कमी भी नहीं होने दे रहे हैं। यह सेवा खासकर विदेशी चेलों के जिम्मे होता है। रोज आ रहा रेलाकुम्भ में शाही स्नान खत्म होने के बाद बाबा और संन्यासियों ने काशी का रुख किया है। वसंत पंचमी के बाद से इनका रेला आने लगा है। इनमें बड़ी संख्या में नागा संन्यासी हैं। कोई पैदल तो कोई अपनी पर्सनल गाडिय़ों से तो कोई बस-टे्रन में सवार होकर आ रहा है। तन पर भगवा ओढे या भभूत लपेटे संन्यासियों की भीड़ से ऐसा लग रहा है जैसे भगवा और भभूत की नदी काशी की ओर उमड़ पड़ी है। अखाड़े भी पूरे लाव-लश्कर के साथ कुम्भ से काशी आने लगे हैं। निरंजनी आखाड़ा से जुड़े बाबा आ चुके हैं। इनके शिवाला और कमच्छा स्थित परिसर में चलह-पहल बढ़ गयी है। जूना अखाड़ा, अग्नि अखाड़ा, महानिर्वाणी अखाड़ा समेत अन्य अखाड़े और मठ-मंदिर के संन्यासी भी जुटने लगे हैं। सिटी में इस समय हजारों की संख्या में साधु-संन्यासी मौजूद हैं। इनके आने का सिलसिला लगातार जारी है। अट्रैक्ट कर रही है वेशभूषा

साधु-संन्यासियों की वेशभूषा बेहद आकर्षक है। नागाओं की पोशाक भभूत है। किसी ने रुद्राक्ष की मालाओं से ही अपना बदन ढक लिया है। किसी की तो इतनी लम्बी जटा है कि पूरा बदन उसके आवरण में आ गया। वस्त्र की जरूरत ही नहीं है। मूंगे-मोती की माला से बदन पर ऐसा सुंदर शृंगार किया है कि कोई महिला देखे तो उसे भी जलन हो जाए। कुछ के आभूषण में बाबा विश्वनाथ के गले में लिपटा नाग भी है। बाबाओं के साथ चेलों ने गेरुआ धारण कर रखा है। साधकों को खुद को तैयार करने में भी अच्छा-खासा वक्त लगता है। करीने से भभूत बदन पर लगता है। माथे पर त्रिपुण्ड सजता है। हाथ में त्रिशुल के साथ तलवार भी वेशभूषा का ही अंग है।टोली में हैं विदेशी चेलियां भीबाबाओं के विदेशी चेले भी खूब हैं। हर तम्बू में देसी के साथ ही विदेशी चेलों की भीड़ है। पुरुष के साथ ही महिला चेलियों की तादाद भी कम नहीं हैं। इनमें हर किसी की भूमिका अलग-अलग है। महिला चेली बाबाओं के खाने-पीने के साथ पूजा-पाठ का इंतजाम देखती हैं तो पुरुष तम्बू-कनात लगाने से साथ ही बाबा के सोने का इंतजाम भी करते हैं। भक्तों के आने-जाने के दौरान व्यवस्था में भी वे लगे रहते हैं। होली तक चलेगी साधना
वैसे तो बाबाओं का कोई निश्चित ठौर ठिकाना नहीं होता लेकिन महाकुंभ से लौटे नागा संन्यासी इन दिनों काशीवास का आनंद ले रहे हैं। होली तक उनके यहां रुकने की संभावना है। अस्सी घाट पर चिलम का कश ले रहे एक नागा संन्यासी ने बताया कि उनको कब कहां कितने समय तक रहना है यह तो बाबा भोलेनाथ तय करते हैं। मन किया तो अभी चल देंगे। नहीं तो बाबा की नगरी में पड़े रहेंगे। वैसे होली तक काशी में रहने का मन बनाया है। एक दूसरे नागा साधू ने बताया कि जब मन होगा तब निकल जायेंगे। यहां रहने पर खर्च हो रहा है। कौन उठायेगा उनका खर्च। जब तक चल रहा है रहेंगे नहीं तो डेरा डंडा उखाड़ कर निकल पडेंगें साधना करने। कोई कश्मीर से तो कोई हिमाचल से
जटाजूट धारियों में कोई कश्मीर से आया है तो कोई हिमाचल से। उत्तराखंड से भी बड़ी संख्या में संन्यासियों की टोली आयी है। एक नागा संन्यासी ने बताया कि हमारा कोई एक पता नहीं है। पूरे देश में भ्रमण करते रहते हैं। पहाड़ों पर प्रकृति के पास ही हमारा मन अधिक रमता है। नेपाल से भी साधु आये हैं। नेपाल से आये साधू ने बताया कि यहां से सीधे हिमालय जायेंगे। हमारे लिए तो जैसे काशी है वैसा नेपाल है। प्रशासन जुटा इंतजाम मेंसाधु-संतों के काशी आने के साथ ही प्रशासन उनके लिए पूरे इंतजाम में जुट गया है। आईजी के निर्देश पर सिटी को कई सेक्टर में बांटा गया है। हर सेक्टर में जिम्मेदारी सीओ स्तर से ऑफिसर को दी गयी है। इनकी जिम्मेदारी सुरक्षा से लेकर सुविधा पर भी ध्यान देना है। भक्तों की भीड़ काशी-विश्वनाथ मंदिर की ओर बढऩे पर बेनियाबाग, लक्सा, मैदागिन, गोदौलिया पर टै्रफिक को रोक दिया जा रहा है। सोमवार को भी बड़े वाहन उस ओर नहीं जा पाए। वहीं लोकल एडमिनिस्टे्रशन ने घाटों से लेकर रोड पर लाइट-सफाई आदि का इंतजाम संभाल रखा है।

Posted By: Inextlive