मोदी सरकार ने गंगा की दशा सुधारने के लिए नमामि गंगे प्रोजेक्ट के तहत 20 हजार करोड़ रुपये आवंटित किए हैं. लेकिन ये सवाल ज्यो का त्यो है कि क्या इस बेशुमार पैसे से गंगा का उत्थान होगा? क्या मैली हो चली गंगा में फिर स्वच्छ-निर्मल पानी नजर आएगा? क्या गंगा जल नहाने, पीने और आचमन योग्य बन पाएगा? एक्सपर्ट की राय कुछ अलग ही है. उनका कहना है कि गंगा को पैसों से ज्यादा प्रवाह की दरकार है. क्यों? आज यही बताने जा रहे हैं हम..

करोड़ों का बजट फिर रहा खटक

- नमामि गंगे प्रोजेक्ट में 20 हजार करोड़ रुपये आवंटन के साथ गंगा निर्मलीकरण को लेकर फिर बढ़ी आस

- मौजूदा समय में बनारस में ही गंगा की हालत है बेहद खराब, अब तो नहाने से भी कतराते हैं लोग

- एक्सप‌र्ट्स का मानना है कि बिना अच्छी प्लैनिंग और बिना प्रवाह बढ़ाये नहीं बदलने वाला कुछ भी

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VARANASI: मोदी सरकार ने एक साल का कार्यकाल पूरा होने से पहले ही नमामि गंगे प्रोजेक्ट में ख्0 हजार करोड़ रुपये आवंटित किए हैं. इससे एक बार फिर गंगा की निर्मलता और स्वच्छता को लेकर बनारस सहित पूरे देश की उम्मीदें जगी हैं. ज्यादातर लोग मान रहे हैं कि नमामि गंगे से गंगा में जरूर ही बदलाव नजर आएगा. हालांकि एक्सप‌र्ट्स की राय आम लोगों की उम्मीदों से जुदा हैं. इस बार करोड़ों के बजट के बावजूद लोगों के दिल में कुछ खटक रहा है कि कहीं नमामि गंगे का हश्र भी गंगा एक्शन प्लैन जैसा न हो जाए. एक्सपर्ट का भी कहना है कि जब तक गंगा के उद्गम से निकली असली धारा का अविरल प्रवाह नहीं होगा, गंगा की स्वच्छता के नाम पर कुछ भी खर्च करना बेमानी होगी.

ऐसे तो हो चुका भला

चुनाव से पहले बीजेपी ने गंगा की स्वच्छता को लेकर बड़े वादे किए थे. इसी में एक वादा गंगा निर्मलीकरण को लेकर नमामि गंगे प्रोजेक्ट था, जिस पर अब काम शुरू होने की उम्मीद है. ख्0 हजार करोड़ रुपये के बड़े बजट से गंगा के पानी की शुद्धता और सफाई के लिए क्या होगा और कैसे होगा, इसकी डिटेल किसी के पास नहीं है. मोदी सरकार ने वादे को पूरा करने के लिए ही सत्ता संभालने के बाद ही गंगा के लिए एक अलग मिनिस्ट्री स्टैबलिश की. लेकिन नमामि गंगे प्रोजेक्ट का वर्कप्लैन अब तक सस्पेंस में है. एक्सपर्ट कहते हैं कि अच्छे फुलप्रूफ प्लैनिंग के बिना तो हो चुका गंगा का भला.

संत समाज भी खुश नहीं

गंगा निर्मलीकरण के लिए नमामि गंगे प्रोजेक्ट को ख्0 हजार करोड़ की ग्रांट से साधु-संत भी बहुत खुश नहीं है. ये भी एक्सपर्ट की तरह यही मान रहे हैं कि जलधारा में प्रवाह के बिना गंगा का स्वच्छ और शुद्ध करना संभव नहीं है. जबकि नमामि गंगे में गंगा के प्रवाह को बढ़ाने के लिए कोई ठोस प्लैनिंग अब तक नजर नहीं आई है. गंगा में रुपये नहीं बल्कि धारा को छोड़ने की जरुरत है. इसके लिए कायदे से गंगा पर बने बांधों को तोड़ना चाहिए. ऐसा होने से गंगा खुद साफ हो जायेगी और इतने रुपये खर्च करने की जरुरत भी नहीं होगी.

फिर तो होगी सिर्फ बंदरबांट : अविमुक्तेश्वरानंद

गंगा आंदोलन के संयोजक स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का कहना है कि गंगा के लिए ख्0 हजार करोड़ नहीं बल्कि भ्0 हजार करोड़ खर्चने से कुछ नहीं होने वाला. क्योंकि इससे पहले भी कई सरकार आई और गंगा के नाम पर मोटी रकम खर्च करने का दावा किया लेकिन हुआ कुछ नहीं. इसकी वजह है गंगा में बहाव का अभाव. यदि संतों और वैज्ञानिकों की सलाह पर गंगा की धारा को उन्मुक्त छोड़ दिया जाए तो सारी गंदगी बह जाएगी. सामान्य सी बात है कि बहते पानी में प्रदूषण नहीं होता. जबकि बांधों से प्रवाह रोकने के कारण ही गंगा की दुर्दशा है. सरकार रुपयों की बंदरबांट कराने पर आमादा है और गंगा के नाम पर सिर्फ करोड़ों रुपये देकर भ्रष्टाचार को बढ़ाने का काम किया जा रहा है.

रुपये तो पहले भी आये फिर भी..

- गंगा की हालत सुधारने के लिए केन्द्र सरकार की ओर से ये कोई पहला प्रयास नहीं है.

- इससे पहले की सरकारों ने भी गंगा स्वच्छता के नाम पर पांच हजार करोड़ से ज्यादा रुपये बहाए हैं.

- तात्कालिक प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने गंगा एक्शन प्लैन के नाम पर गंगा निर्मलीकरण की शुरुआत की थी.

- उस वक्त से अब तक 9क्म् करोड़ की मोटी रकम खर्च होने के बाद भी गंगा मैली है

- गंगा कार्य योजना के ख्8 वर्षो का कार्य होने के बाद भी गंगा सूखती जा रही है, इसके जल-गुण नष्ट होते जा रहे हैं.

- परियोजना शुरू होने से पहले (क्98भ्-8म्) गंगा में डीओ (घुलित आक्सीजन) की मात्रा घाटों के निकट 7-8 पीपीएम हुआ करती थी जो आज घट कर ब्-म् हो गई है.

- बीओडी लोड पहले जहां ब् से भ् पीपीएम हुआ करता था आज बढ़कर औसतन क्ब् से क्म् पीपीएम हो गया है.

- गंगा का प्रवाह 8000 क्यूसेक से घट कर भ्000 क्यूसेक से भी कम हो गया है.

प्लैनिंग नहीं है किसी के पास

- गंगा को साफ करने के लिए बनारस में पहले से लंबे चौड़े प्रोजेक्ट रन कर रहे हैं.

- अगर आंकड़ों पर गौर करें तो क्98म् में सिटी के तकरीबन क्भ्0 एमएलडी सीवर जल निकासी के विपरीत क्0ख् एमएलडी जल शोधन की ही अब तक व्यवस्था है

- इसके लिए दीनापुर में 80, भगवानपुर में क्0 और डीएलडब्ल्यू में क्ख् एमएलडी क्षमता वाले सीवेज ट्रीटमेंट प्लांटों (एसटीपी) का निर्माण किया गया है.

- गंगा एक्शन प्लान में क्99ख् में ही एसटीपी निर्माण पूरा हो जाना था लेकिन ये क्99भ् में पूरे हुए.

- वर्ष क्99भ् में ही रमना गांव में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट और नगवा नाले के पास पंपिंग स्टेशन का निर्माण कर नाले के फ्भ् एमएलडी पानी को शोधित कर गंगा में गिराने के लिए फ्7 एमएलडी क्षमता वाले एसटीपी के निर्माण का प्रस्ताव भेजा गया था जो अब तक कम्प्लीट नहीं हुआ.

- जबकि इससे जुड़े लगभग क्0 करोड़ की लागत वाले नगवा पंपिंग स्टेशन का निर्माण अंतिम दौर में है.

- योजना की लेटलतीफी का ही परिणाम है कि नगवा नाले का डिस्चार्ज फ्भ् से बढ़ कर म्0 एमएलडी हो गया है और ये सारा गंदा पानी सीधे गंगा में गिर रहा है

लगातार बढ़ रहा है गंगा में पॉल्यूशन

आंकड़ों की मानें तो सिटी की मलजल निकासी बढ़ कर जब ख्भ्0 एमएलडी हुई तो वर्ष ख्00फ् में ही सथवां में क्ख्0 और क्ब्0 एमएलडी का ट्रीटमेंट प्लांट बैठा कर वरुणा एवं गंगा में गिर रहे मलजल शोधन का प्रोजेक्ट तैयार कर शासन को भेजा गया. इसे ख्0क्0 में जा कर हरी झंडी मिली लेकिन धन आवंटन और भूमि अधिग्रहण के आसरे ये दोनों प्रोजेक्ट आज भी अधर में लटके हैं. वहीं गंगा में गिर रहे मलजल की मात्रा ख्भ्0 से बढ़ कर फ्भ्0 हो गई तो वरुणा नदी में गिर रहे मलजल की मात्रा भ्0 से बढ़ कर 90 एमएलडी हो गई है. इस तरह गंगा एक्शन प्लैन के ख्7 सालों बाद भी गंगा व वरुणा में गिर रहे औसतन ब्ब्0 एमएलडी सीवर जल में से अब तक महज क्0ख् एमएलडी मलजल शोधन का ही बंदोबस्त किया जा सका है.

गंगा की निर्मलता उसकी अविरलता पर निर्भर करती है. लेकिन अब तक सभी सरकारों ने सिर्फ गंगा के निर्मलीकरण पर ध्यान दिया है, जो पर्याप्त नहीं है. सिर्फ रुपये खर्च करने से कुछ नहीं होने वाला. इसके लिए गोमुख से निकल रहा पानी गंगा में बहना जरूरी है. बहाव होगा तो गंगा खुद से साफ हो जाएंगी.

-प्रो बीडी त्रिपाठी, मेम्बर, गंगा बेसिन अथॉरिटी

गंगा को लेकर सरकार का फैसला अच्छा है लेकिन गंगा तभी साफ होगी जब उस पर सही ढंग से प्लैन बनाकर काम होगा. सिर्फ रुपये देने से गंगा का कुछ होने वाला नहीं है क्योंकि गंगा को स्वच्छ करने के लिए पहले से ही कई प्रोजेक्ट चल रहे हैं.

प्रो. यूके चौधरी, रीवर एक्सपर्ट

हम लोगों का मानना है कि गंगा हर हाल में साफ होनी चाहिए. ये कैसे होगा ये सरकार को देखना है. हालांकि सिर्फ रुपयों को देने से कुछ नहीं होगा. रुपयों को यूज कहां हो रहा है और सही ढंग से हो रहा है या नहीं इसे देखना भी बेहद जरुरी है.

राजेन्द्र सिंह, जल पुरुष

Posted By: Vivek Srivastava