राजनीति इतिहास के बिना नहीं चलती. एक स्थापित मान्यता है कि आज की राजनीति कल का इतिहास है और बीते हुए कल की राजनीति आज का इतिहास है. इसलिए राजनीति और इतिहास का चोली-दामन का साथ है.


विपिनचंद्र पाल ने तो यहाँ तक कहा था कि यदि कोई देश अपने इतिहास का बार-बार स्मरण नहीं करता तो वो रास्ता भटक जाता है.कोई राजनेता अपने श्रोताओं के सामने इतिहास का उपयोग करे तो मुझे इसमें कुछ भी अनुचित नहीं लगता.ध्यान देने की बात यह है कि वो इतिहास के जिन तथ्यों को प्रस्तुत कर रहा है वो सही हैं या ग़लत.इसलिए  नरेंद्र मोदी के पटना भाषण का भी इसी आधार पर मूल्यांकन होना चाहिए.'मोदी का परिप्रेक्ष्य सही'" नंद के साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र थी, बिहार की शक्ति उसके पीछे थी. इसलिए मोदी का बिहार की जनता के सामने यह कहना कि बिहार के लोगों ने सिकंदर को भगा दिया, एक इतिहासकार की दृष्टि से मुझे इसमें कुछ असत्य नहीं लगता."-देवेन्द्र स्वरूप, इतिहासकार


जहाँ तक नरेंद्र मोदी द्वारा अपने भाषण में ग़लत तथ्यों के इस्तेमाल की बात है तो यह ऐतिहासिक तथ्य है कि सिकन्दर पोरस से युद्ध के बाद वापस नहीं गया था, झेलम नदी के तट पर कई विकट युद्धों और नदियों को पार करने के बाद वो व्यास नदी तक पहुँचा था. यह बात सत्य है कि वो  बिहार कभी नहीं गया.

लेकिन जो मोदी का भाषण है उसमें इस प्रसंग को जिस रूप में प्रस्तुत किया गया है उसे इतिहास के तथ्यों के आलोक में समझने की आवश्यकता है. सिकंदर व्यास नदी के पार जाना चाहता था, लेकिन उसके सेनापतियों ने विद्रोह कर दिया था. उसके सैनिकों ने कहा था कि व्यास नदी तक पहुँचने में हमें बहुत संघर्ष करना पड़ा. व्यास नदी के उस पार नंदों का साम्राज्य है.ग्रीक इतिहासकारों के मुताबिक सिकंदर प्रतिरोध के बाद शिविर में चला गया और उसने खाना-पीना छोड़ दिया. फिर उसे मनाया गया, उससे कहा गया कि विजेता वही होता है जो विजय के क्षणों को पहचानकर पराजय को टालने के लिए वापस लौटे.नंद का जो साम्राज्य था उसकी राजधानी पाटलिपुत्र थी, बिहार की शक्ति उसके पीछे थी.इसलिए मोदी का बिहार की जनता के सामने यह कहना कि बिहार के लोगों ने सिकंदर को भगा दिया, एक इतिहासकार की दृष्टि से मुझे इसमें कुछ असत्य नहीं लगता.भाषणों में निष्कर्ष प्रस्तुत किया जाता है न कि इतिहास की पूरी जानकारी दी जाती है. मोदी ने भी अपने भाषण में यही किया.इतिहास का सत्य यही है कि नंद वंश की शक्ति से भयभीत होकर सिकंदर भारत से वापस लौटा. इसके बाद वह पिछले रास्ते से न लौटकर दक्षिण यानी सिंध से होकर वापस लौटा.

प्रोफ़ेसर झा ये भी कहते हैं कि कौटिल्य ने गाँवों में शूद्रों की बड़ी संख्या को ये कहते हुए अच्छा बताया है कि उनसे काम लेना आसान होता है.कौटिल्य अर्थशास्त्र के सबसे बड़े जानकार आर.पी. कांगले के अनुसार नए जनपद को बसाने के लिए पर्याप्त संख्या में किसान और शूद्र होने चाहिए. लेकिन इसमें कहीं भी शोषण शब्द या उस भावना का संकेत नहीं मिलता."ऐतिहासिक तथ्यों के साथ जो पक्षपात पूर्ण प्रतिपादन है ये बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है और वामपंथी इतिहासकारों ने इसमें बहुत अनर्थ किया है उन्होंने पुराने पीढ़ी के इतिहासकार जैसे जैसे आर.सी.मजूमदार, के.एन. शास्त्री उन सबको रद्दी की टोकरी में फेंक दिया."-देवेन्द्र स्वरूप, इतिहासकारकौटिल्य ने शूद्र की जो व्याख्या की है उसके अनुसार शिल्प का काम करने वालों को शूद्र कहा जाता था. जो लोग खेती और शिल्प का काम करते थे उन्हें नए जनपद के लिए बसाना ज़रूरी बताया गया था.इतिहास दृष्टिजहाँ तक राजनेताओं की ओर से ऐतिहासिक तथ्यों के इस्तेमाल की बात है, ख़ासकर चुनावी परिप्रेक्ष्य में, तो इतिहासकार इसे अलग-अलग दृष्टि से देखते हैं.अगर नरेंद्र मोदी वामपंथी पार्टी से जुड़े नेता होते तो डीएन झा इन्हीं तथ्यों का समर्थन करते.
ये बात मेरे बारे में भी कही जा सकती है पर मेरे तर्क का आधार ऐतिहासिक तथ्य हैं और कौटिल्य का अर्थशास्त्र है. तथ्यों के आधार पर मैं इस मुद्दे पर डीएन झा से बात करने को तैयार हूँ.कौटिल्य ने अर्थशास्त्र के नौवें अधिकरण में पूरे भारत, उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में समुद्र तक की एकता की व्याख्या की है.वास्तव में जो स्वप्न कौटिल्य ने प्रस्तुत किया उसी की पूर्ति चन्द्रगुप्त मौर्य ने की, न कि अशोक ने.ऐतिहासिक तथ्यों का पक्षपात पूर्ण प्रतिपादन बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है और वामपंथी इतिहासकारों ने इसमें बहुत अनर्थ किया है.वामपंथियों ने आरसी मजूमदार, केएन शास्त्री जैसे पुराने पीढ़ी के इतिहासकारों को रद्दी की टोकरी में फेंक दिया.

Posted By: Subhesh Sharma