GORAKHPUR : कॉलेज से निकले तो आंखों में एक सुनहरे कल का सपना था कंधों पर अपनों की उम्मीदों का बोझ उस पर तारी होता कुछ ऐसा कर गुजरने का जुनून जिसे दुनिया याद रखे. ये पता था कि राह मुश्किल है हर बढ़ते कदम के साथ नई चुनौतियां सामने होंगी. मगर एक बार जो ठान लिया तो फिर पीछे हटने का सवाल ही नहीं उठता. सिटी के युवाओं की दास्तां कुछ ऐसी ही है वो जब मैदान में उतरे तो वायु के मानिंद कुछ यूं उतरे कि उनके तूफान में सारी मुश्किलें सूखे हुए पत्तों की तरह उड़ गईं. उनके वेग ने समाज को एक नया रास्ता दिखाने के साथ अपनी ताकत का बखूबी एहसास कराया. अंतर्राष्टïरीय युवा दिवस के मौके पर सिटी के ऐसे ही कुछ युवाओं की कहानी बताती ये रिपोर्ट.


सिटी को बना दिया फुटबॉलर्स का हब


एक वक्त था, जब स्पोट्र्स फील्ड में सिटी की कोई पहचान नहीं थी। यूथ को स्पोट्र्स की तरफ अट्रैक्ट करने और सिटी को खेलों की दुनिया में अलग पहचान दिलाने के लिए सिटी के ही अजय यादव ने 2010 में इंटरनेशनल रेसलर तालुकदार के नाम पर फुटबॉल कॉम्प्टीशन ऑर्गेनाइज कराए। जिसके जरिए यूथ को न सिर्फ अपना हुनर दिखाने का मौका मिला, बल्कि उससे उन्हें अपनी नई पहचान भी मिली। सिटी का 'नंदानगर', जिसे अजय यादव ने फुटबॉल के हब के तौर पर पेश किया और स्पोट्र्स को सिटी के कल्चर में शामिल किया। यह अजय की ही पहल का नतीजा है कि अब प्रदेश की उम्दा टीम्स सिटी में अपना दम पेश करती हैं। आज वह वक्त है जब फुटबॉल में सिटी के होनहार अपना जलवा बिखेर रहे हैं। यह अजय की ही देन है कि अब नंदानगर में मौजूद सभी ग्राउंड्स पर फुटबॉलर्स अपना जलवा बिखेर रहे हैं। यूथ इसकी ओर काफी अट्रैक्टेड हैं और इसमें अपना कॅरियर भी ढूंढ रहे हैं। एक तरफ जहां नीशू थापा ने नेशनल जूनियर स्कूल फुटबॉल में अपना दम दिखाया, वहीं दूसरी ओर कुवैत में ऑर्गेनाइज इंटरनेशनल जूनियर फुटबॉल कॉम्प्टीशन में नूरुद्दीन ने जूनियर टीम इंडिया की तरफ से पार्टिसिपेट किया।अजय यादव, प्रोफेशनल

एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों

'कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं होता, एक पत्थर तो तबियत से उछालों यारों' सत्यवंत प्रताप सिंह ने यह लाइन अपनी जिंदगी में उतार ली। दूसरे की खुशियों के लिए लडऩा उनकी जिंदगी का मकसद है। महज तीस साल की उम्र में गांधीवादी विचार धारा अपनाते हुए चालीस लाख लोगों की सुविधा के लिए यूपी में पहली बार उन्होंने कम्हरिया घाट पर पक्के पुल के निर्माण की मांग को लेकर जल सत्याग्र्रह किया था। 10 दिन तक चले जल सत्याग्र्रह के आगे आखिरकार सरकारी तंत्र को भी झुकना पड़ा। सत्याग्र्रहियों को पुलिस ने वहां से जबरन उठा लिया और उन्हें जेल भेज दिया, लेकिन उनके सत्याग्र्रह ने मिसाल कायम कर दी। न केवल केन्द्र से पक्के पुल के लिए मंजूरी मिल गई बल्कि बजट भी पास हो गया। इस पुल के निर्माण के बाद चार प्रदेश आपस में जुड़ जाएंगे और चालीस लाख से ज्यादा लोगों को इसका फायदा मिल सकेगा। बीस साल की उम्र में अपना सफर शुरू करने वाले सत्यवंत प्रताप सिंह के लिए दूसरों की खुशियां दिल का सुकून देती हंै। अपना परिवार, अपना कॅरियर सबकुछ दांव पर लगाने वाले सत्यवंत ने लाइफ में किसी भी राजनीतिक पार्टी से न जुडऩे की कसम खाई है। पुलिस विभाग में कार्यरत पिता के साथ दूसरे शहर में रहने वाले सत्यवंत जब घर लौटे तो अपने एरिया का पिछड़ापन देख उसे बदलने का संकल्प लिया था। तब से शुरू हुआ सफर आज तक जारी है।सत्यवंत प्रताप सिंह, सोशल एक्टिविस्टवो है सिटी में आंदोलनों की पहचान
एमबीए की डिग्री के बाद राजन यादव के पास मौका था कि वो अपनी लाइफ संवार कर चैन से जिंदगी गुजार दें। मगर सोसायटी के लिए कुछ अलग करने के जज्बे ने राजन को 'अर्थी बाबा' बना दिया। अजीबोगरीब नाम वाला ये शख्स सिटी में अब आंदोलनों की पहचान बन चुका है। राजन ने 2008 में डीडीयू से एमबीए कंप्लीट करने के बाद नौकरी करने के बजाए युवाओं के रोजगार और पॉल्यूशन कंट्रोल को लेकर शहर में जगह-जगह आंदोलन करना शुरू कर दिया। उन्होंने राजघाट स्थित शमशान घाट को अपना ऑफिस बनाया और अर्थी को अपना वाहन। वो आज भी शमशान में बैठकर आंदोलन करते हैं और लोगों की शिकायतें सुनते हैं। आंदोलन करने के अपने अनोखे तरीके के साथ युवाओं के हक के लिए 'अर्थी बाबा' ने प्रशासन के डंडे भी खूब खाए। राजन का लक्ष्य सोसायटी को पॉल्यूशन फ्री बनाना है, इसके लिए उनकी कोशिशें आज भी जारी हैं। इसके अलावा वे कैंसर से पीडि़त मरीजों का मुफ्त में इलाज कराते हैं। अब तक वह 50 से ज्यादा मरीजों का इलाज करा चुके हैं। यह खर्च वह लोगों से चंदे के थ्रू इकट्ठा करते हैं और इसे सोसायटी की भलाई के कामों में लगा देते हैं।-राजन यादव उर्फ 'अर्थी बाबा', सोशल एक्टिविस्टभटकों को दिखाते हैं राह
'सवाल ये नहीं कि जिम्मेदारी किसकी है, सवाल ये है कि हवाओं के रुख मोडऩे को कौन तैयार है। हम सभी इंतजार में बैठे रहते हैं कि कोई आएगा और सब कुछ बदलेगा। क्यों न खुद ही कुछ बदलने की कोशिश की जाए.' इसी राह पर चलने वाले पूर्णेंदु शुक्ला ने सिटी के युवाओं को नई राह दिखाई है। पूर्णेंदु की राह में गंभीर बीमारी रोड़ा बन कर आई। महीनों बेड रेस्ट के बाद दोबारा स्टडी शुरू की। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन करके दिल्ली पहुंचे, एमबीए की डिग्री हासिल की। 10 साल तक डिफरेंट कंपनियों में जॉब भी किया, लेकिन जॉब की जद्दोजहद ने ये एहसास दिलाया कि सही गाइडेंस के अभाव में कॅरियर चौपट हो जाता है। इसलिए वापस लौटे और मुफ्त में कॅरियर काउंसिलिंग शुरू कर दी। सबसे पहले नवोदय विद्यालय के एक्स स्टूडेंट्स को अपने से जोड़ा। गोरखपुर जैसे सिटी में रेडियो जॉकी जैसे चैलेंजिंग प्रोफेशन की ट्रेनिंग देना शुरू किया। नवोदय विद्यालय के एक्स स्टूडेंट्स जो आर्मी, सिविल सर्विसेज, ज्यूडिशियरी जैसी अच्छी जगहों पर हैं, उनकी हेल्प से नवोदय विद्यालय में एडमिशन के लिए बच्चों की तैयारी कराना, 12वीं पास करने वाले स्टूडेंट्स की फ्री में कॅरियर काउंसिलिंग के साथ कोचिंग देते हैं। सही गाइडेंस को तरस रहे स्टूडेंट्स को राह दिखाना ही पूर्णेंदु शुक्ला की जिंदगी का मकसद बन चुका है।पूणेंदु शुक्ल, एक्स स्टूडेंट, जवाहर नवोदय विद्यालय जंगल अगही, पीपीगंज

Posted By: Inextlive