नवरात्रि आत्मा अथवा प्राण का उत्सव है जिसके द्वारा ही महिषासुर अर्थात् जड़ता शुंभ-निशुंभ गर्व और शर्म और मधु-कैटभ अत्यधिक राग-द्वेष को नष्ट किया जा सकता है।

नवरात्रि का काल आत्म निरीक्षण और अपने स्रोत की ओर वापस जाने का समय है। परिवर्तन के इस काल के दौरान, प्रकृति भी पुराने को झड़कर नवीन हो जाती है; जानवर शीतनिद्रा में चले जाते हैं और बसंत के मौसम में जीवन वापस नए सिरे से खिल उठता है। वैदिक विज्ञान के अनुसार, पदार्थ अपने मूल रूप में वापस आकर पुन:निर्माण करता है। यह सृष्टि सीधी रेखा में नहीं चल रही है, बल्कि चक्रीय है, प्रकृति द्वारा सभी का पुनर्नवीनीकरण हो रहा है- कायाकल्प की यह एक सतत प्रक्रिया है। तथापि सृष्टि के इस नियमित चक्र से मनुष्य का मन छूटा हुआ है। नवरात्रि उत्सव अपने मन को वापस अपने स्रोत की ओर ले जाने के लिए है।

उपवास से शरीर विषाक्त पदार्थ से मुक्त होता है

उपवास, प्रार्थना, मौन और ध्यान के माध्यम से जिज्ञासु अपने सच्चे स्रोत की ओर यात्रा करता है। रात को रात्रि कहते हैं क्योंकि वह नवीनता और ताजगी लाती है। वह हमारे अस्तित्व के तीन स्तरों पर राहत देती है- स्थूल शरीर को, सूक्ष्म शरीर को और कारण शरीर को। उपवास के द्वारा शरीर विषाक्त पदार्थ से मुक्त होता है, मौन द्वारा हमारे वचनों में शुद्धता आती है और बातूनी मन शांत होता है। ध्यान द्वारा अपने अस्तित्व की गहराइयों में डूबकर हमें आत्मसाक्षात्कार मिलता है। यह आंतरिक यात्रा हमारे बुरे कर्मों को समाप्त करती है।

प्राण का उत्सव है नवरात्रि


नवरात्रि आत्मा अथवा प्राण का उत्सव है, जिसके द्वारा ही महिषासुर (अर्थात् जड़ता), शुंभ-निशुंभ (गर्व और शर्म) और मधु-कैटभ (अत्यधिक राग-द्वेष) को नष्ट किया जा सकता है। जड़ता, गहरी नकारात्मकता और मनोग्रस्तियां (रक्तबीजासुर), बेमतलब का वितर्क (चंड-मुंड) और धुंधली दृष्टि (धूम्रलोचन) को केवल प्राण और जीवन शक्ति ऊर्जा के स्तर को ऊपर उठाकर ही दूर किया जा सकता है।

नवरात्रि के नौ दिन का मतलब

नवरात्रि के नौ दिन सत्व, रजस और तमस तीन गुणों के बने इस ब्रह्मांड में आनंदित रहने का भी एक अवसर है। यद्यपि हमारा जीवन इन तीन गुणों के द्वारा ही संचालित है, हम उन्हें कम ही पहचान पाते हैं या उनके बारे में विचार करते हैं। नवरात्रि के पहले तीन दिन तमोगुण के हैं, दूसरे तीन दिन रजोगुण के और आखिरी तीन दिन सत्व के लिए हैं। हमारी चेतना इन तमोगुण और रजोगुण के बीच गुजरती हुई सतोगुण के आखिरी तीन दिनों में खिल उठती है। जब भी जीवन में सत्व बढ़ता है, तब हमें विजय मिलती है। इस ज्ञान का सारतत्व जश्न के रूप में दसवें दिन विजयदश्मी द्वारा मनाया जाता है। यह तीन मौलिक गुण हमारे भव्य ब्रह्मांड की स्त्री शक्ति माने गए हैं।

द्वैत पर अद्वैत की जीत है नवरात्रि


नवरात्रि के दौरान देवी मां की पूजा करके, हम त्रिगुणों में सामंजस्य लाते हैं और वातावरण में सत्व के स्तर को बढ़ाते हैं। हालांकि नवरात्रि बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में मनाई जाती है, परंतु वास्तविकता में यह लड़ाई अच्छे और बुरे के बीच में नहीं है। वेदांत की दृष्टि से यह द्वैत पर अद्वैत की जीत है। जैसा अष्टावक्र ने कहा था, बेचारी लहर अपनी पहचान को समुद्र से अलग रखने की लाख कोशिश करती है, लेकिन कोई लाभ नहीं होता। हालांकि इस स्थूल संसार के भीतर ही सूक्ष्म संसार समाया हुआ है, लेकिन उनके बीच भासता अलगाव की भावना ही द्वंद्व का कारण है। देवी मां या शुद्ध चेतना ही सब नाम और रूप में व्याप्त हैं। हर नाम और हर रूप में एक ही देवत्व को जानना ही नवरात्रि का उत्सव है।

निष्काम कर्म द्वारा मिलेगी अद्वैत सिद्धि

काली मां प्रकृति की सबसे भयानक अभिव्यक्ति हैं। प्रकृति सौंदर्य का प्रतीक है, फिर भी उसका एक भयानक रूप भी है। इस द्वैत यथार्थ को मानकर मन में एक स्वीकृति आ जाती है और मन को आराम मिलता है। देवी मां को सिर्फ बुद्धि के रूप में ही नहीं, बल्कि भ्रांति के रूप में भी जाना जाता है। वह न सिर्फ लक्ष्मी (समृद्धि) हैं, वह भूख (क्षुधा) और प्यास (तृष्णा) भी हैं। संपूर्ण सृष्टि में देवी मां के इस दोहरे पहलू को पहचान कर एक गहरी समाधि लग जाती है। ज्ञान, भक्ति और निष्काम कर्म के द्वारा अद्वैत सिद्धि प्राप्त की जा सकती है अथवा इस अद्वैत चेतना में पूर्णता की स्थिति प्राप्त की जा सकती है।

श्री श्री रवि शंकर जी

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Posted By: Kartikeya Tiwari