संस्कृति में कुम्हड़े को कुष्मांड कहते हैं इसलिए इस देवी को कुष्मांडा कहा गया। भगवती का यह स्वरूप त्रिविध तापयुक्त संसार को मुक्ति प्रदान कर 'भवस्ये दुखात्युच्यते' यानी भक्तों को दुखों से छुटकारा दिलाता है।

शारदीय नवरात्रि के चौथे दिन देवी भगवती के कूष्मांडा स्वरूप के दर्शन की मान्यता है। देवी कुष्मांडा का मंदिर दुर्गाकुंड इलाके में स्थित है। जब असुरों के घोर अत्याचार से देव, नर, मुनि त्रस्त हो उठे, तब देवी जन संताप नाशन हेतु कुष्मांडा स्वरूप में अवतरित हुईं।

माता का है भव्य स्वरूप


देवी की आठ भुजाएं हैं, इसलिए इन्हें अष्टभुजा नाम से भी जाना जाता है। इनके सात हाथों में क्रमश: कमण्डल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जप माला है। देवी का वाहन सिंह है और इन्हें कुम्हड़े की बलि प्रिय है। 

ऐसे नाम पड़ा कुष्मांडा

संस्कृति में कुम्हड़े को कुष्मांड कहते हैं इसलिए इस देवी को कुष्मांडा कहा गया। भगवती का यह स्वरूप त्रिविध तापयुक्त संसार को मुक्ति प्रदान कर 'भवस्ये दुखात्युच्यते' यानी भक्तों को दुखों से छुटकारा दिलाता है। त्रिविध तापयुक्त संसार जिनके उदर में स्थित है, वह भगवती कूष्मांडा के नाम से विख्यात हुईं।

पूजन विधि


पुष्प, धूप, नैवेद्य और घृत दीप आदि सहित देवी सूक्त पाठ करते हुए कूष्मांडा देवी की आराधना करने वाले देवी प्रसन्न होकर समस्त संतापों से मुक्ति दिलाती हैं।

इस दिन जहां तक संभव हो बड़े माथे वाली तेजस्वी कूष्मांडा देवी का पूजन करना चाहिए। उन्हें भोजन में दही, हलवा खिलाना श्रेयस्कर है। इसके बाद फल, सूखे मेवे और सौभाग्य का सामान भेंट करना चाहिए।

मंत्र

सर्व स्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते।

भयेभ्य्स्त्राहि नो देवि कूष्माण्डेति मनोस्तुते।

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Posted By: Kartikeya Tiwari