शारदीय नवरात्रि की प्रतिपदा में शैलपुत्री की पूजा की जाती है। शांति व उत्साह प्रदान करने वाली देवी भय का नाश करती हैं। देवी यश-कीर्ति धन-विद्या व मोक्ष देने वाली हैं। इनका ध्यान करते समय यही आकांक्षा भक्त के मन में होनी चाहिए।

शारदीय नवरात्रि 2018 की शुरुआत आज से हो चुकी है। इस नवरात्र के नौ दिनों में देवी दुर्गा के नौ अलग—अलग रूपों के दर्शन की मान्यता है। नवरात्र में नारी रूप में देवी एक महाशक्ति का रूप धारण करती हैं इसलिए इसे नवरात्रि कहते है। इन नौ दिनों को महाशक्ति की आराधना का पर्व भी कहते हैं।

शास्त्रों में महाशक्ति के नौ स्वरूप का वर्णन है, जिन्हें नौ दुर्गा की संज्ञा दी गई है। इनमें शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायिनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री हैं।

भय का नाश करने वाली हैं शैलपुत्री


शारदीय नवरात्रि की प्रतिपदा में शैलपुत्री की पूजा की जाती है। शांति व उत्साह प्रदान करने वाली देवी भय का नाश करती हैं। देवी यश-कीर्ति, धन-विद्या व मोक्ष देने वाली हैं। इनका ध्यान करते समय यही आकांक्षा भक्त के मन में होनी चाहिए।

शैलपुत्री के जन्म की कहानी


ज्योतिषविद् पं. चक्रपाणि भट्ट बताते हैं कि दक्ष प्रजापति ने एक महायज्ञ का आयोजन किया। उस यज्ञ में समस्त देवी-देवताओं को निमंत्रित किया गया, लेकिन भगवान शिव को निमंत्रण नहीं दिया गया। भगवान शिव दक्ष प्रजापति के दामाद थे। प्रजापति उन्हें पसंद नहीं करते थे। पिता के यहां यज्ञ की बात सुनकर पुत्री सती अपने पति शिव के मना करने पर भी वहां जाती हैं और वहां शिव का अपमान सुनकर दक्ष के यज्ञ को तहस—नहस कर देती हैं और खुद को यज्ञ वेदी में भस्म कर लेती हैं। यही सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय के यहां जन्म लेती हैं और शैलपुत्री के नाम से जानी जाती हैं।

वरुणा तट पर है शैलपुत्री देवी का मंदिर

शारदीय नवरात्रि के प्रथम दिन यानी आज 10 अक्टूबर को शैलपुत्री देवी का दर्शन-पूजन हो रहा है। इनका मंदिर अलईपुर में वरुणा तट पर है।

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Posted By: Kartikeya Tiwari