'नया पता' मुफ्त में
ओनिर से मिली इंस्पीरेशनक्राउड फंडिंग के जरिए बन रही इस फिल्म को लेकर पवन को काफी उम्मीदें हैं। दिल्ली से कंप्यूटर साइंस ग्रेजुएट होने से पहले छपरा के पवन को फाइनेंशियल सेक्टर में ही करियर बनाना था। लेकिन क्रिएटिविटी के कीड़े ने उन्हें फाइनेंशियल सेक्टर छोडऩे पर मजबूर कर दिया। हालांकि पवन को इस बात का कोई मलाल नहीं कि बैंकिंग और टेलीकॉम सेक्टर का हाई पैकेज छोड़कर, उन्हें फिल्मों की दुनिया में स्ट्रगल करना पड़ रहा है। मेरे पास स्टोरी थीपवन बताते हैं 2010 में आई एम फिल्म रिलीज हुई। इसके डायरेक्टर ओनिर से ही मुझे फिल्म बनाने की इंस्पीरेशन मिली। मेरे पास स्टोरी थी, लेकिन पैसे और फाइनेंसर नहीं था जिससे मैं अपनी फिल्म शुरू कर सकूं। ओनिर ने बताया कि अपनी जान-पहचान के 30 लोग ढूंढो, फिल्म बन जाएगी। हुआ भी ऐसा ही फ्रेंड्स ने मदद की, आज फिल्म 80 परसेंट कंप्लीट है।
कंटेंपररी बिहार पर बेस्ड है फिल्म
पवन अपनी फिल्म को किसी बड़ी फिल्म के साथ कंपेयर नहीं करते। उनका मानना है कि बिहार एक ऐसा स्टेट है जो क्राइसिस से उभर कर सामने आया है। 80 के दशक में शुगर फैक्ट्रियां बंद होने लगी, बिहार से बड़े पैमाने पर माइग्रेशन होना शुरू हो गया। इसी माइग्रेशन की थीम पर बेस्ड है यह फिल्म जिसमें पुराने और नये बिहार को साथ में लाने की कोशिश है।असली टेंशन अब हैफिल्म की मैक्सिमम शूटिंग रोहतास और छपरा में हुई। पवन बताते हैं कि डिजिटल एरा के आने के बाद फिल्में बनाना भले ही आसान हो गया हो, लेकिन दिक्कतें और भी हैं। रेंट पर कैमरा मिल गया, रीयल लोकेशन थी, पैसे नहीं होने के बाद भी भी दिक्कत नहीं हुई और फिल्म लगभग तैयार है। लेकिन असली टेंशन अब है क्योंकि रिलीज करना आज भी आसान नहीं है। इसलिए प्लानिंग है कि फिल्म फेस्टिवल्स में इसका प्रीमियर हो जिससे फिल्म की मार्केट वैल्यू बने। इसके अलावा सिनेमाघर मालिकों से सीधे कांट्रैक्ट करने की भी प्लानिंग है।मेरा कैमरा ही मेरा टेंशन था
एक अच्छा कैमरा किसी भी डायरेक्टर के काम को एफिशिएंट बनाता है लेकिन पवन इस मामले में अनलकी रहे। पवन बताते हैं कि रोहतास में शूटिंग एक गांव में होनी थी और वहां मेरी सबसे बड़ी टेंशन मेरा कैमरा था। 20 लाख रुपए का कैमरा मुंबई से रेंट पर लाया था। ऐसे में हमेशा डर लगा रहता था कि गलती से भी कैमरे को कुछ ना हो क्योंकि अगर ऐसा हुआ तो मैं भी खत्म और फिल्म भी।थिएटर आर्टिस्ट्स ही दिखेंगेअर्से तक थिएटर में डायरेक्शन के साथ 250 से अधिक स्ट्रीट प्ले करने वाले पवन ने अपनी फिल्म में भी बड़े स्टार्स को तवज्जो नहीं दी है। सभी आर्टिस्ट्स थिएटर बैकग्राउंड के हैं। पवन बताते हैं कि अप्रोच करने से एक-दो अच्छे स्टार्स का साथ मिल जाता, लेकिन मुझे लगा कि नये लोग इस सब्जेक्ट पर काम करेंगे तो कुछ नयापन लगेगा।कई दोस्तों ने की मदद'नया पता' का कांसेप्ट भले ही पवन का हो, लेकिन इस मामले में उनकी मदद कईयों ने की है। फिल्म प्रोडक्शन का आइडिया ओनिर से मिला तो देसवा के डायरेक्टर नितिन चंद्रा का सपोर्ट भी खास रहा। इसके अलावा उनके कई फ्रेंड्स ने 5,000 से 40,000 रुपए तक की मदद देकर फिल्म शुरू करने में मदद की। Report by : Pawan Prakash