49 अस्पतालों में बायो मेडिकल वेस्ट के नियम अधूरे

स्वास्थ्य विभाग के चेकिंग अभियान में हुआ खुलासा

अस्पतालों को जानकारी देने के लिए कराई जाएगी वर्कशॉप

Meerut. शहर के कई नामचीन प्राइवेट अस्पताल बायो मेडिकल वेस्ट के निस्तारण के लिए संजीदा नहीं है. प्राइवेट अस्पतालों में बायो मेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट का लाइसेंस तो हैं लेकिन वेस्ट का निस्तारण कैसे किया जाना है इसकी जानकारी नहीं हैं. पर्सनल हाइजीन को लेकर भी अस्पताल सजग नहीं हैं. ये खुलासा स्वास्थ्य विभाग की ओर से प्राइवेट क्लीनिक और अस्पतालों में बायो मेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट चेकिंग अभियान में हुआ है. विभाग ने ऐसे 49 अस्पतालों को चिंहित कर सूची भी तैयार कर ली हैं जहां नियमों में खामी मिली है.

वर्कशॉप होगी आयोजित

अस्पतालों में वेस्ट के निस्तारण में मिली खामियों को दूर करने के लिए स्वास्थ्य विभाग की ओर से वर्कशॉप का आयोजन किया जाएगा. इसके तहत सभी अस्पताल इसमें भाग लेंगे. विभाग सभी पहलुओं पर जानकारी देगा. गौरतलब है कि शासन की ओर से सभी प्राइवेट अस्पतालों में बायो मेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट की जमीनी हकीकत जानने के लिए मई में जांच निर्देश जारी किए थे. विभाग ने 49 अस्पतालों और नर्सिंग होम की जांच की. सभी में वेस्ट के निस्तारण में खामियां पाई गई.

ये मिली खामियां

अधिकतर संस्थानों में यूपी पॉल्यूशन कंट्रोल बोड, वायु एवं जल का सहमति पत्र नहीं हैं.

किसी भी संस्थान द्वारा साल 2018-19 की वार्षिक रिपोर्ट यूपी पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड को भी नहीं भेजी गई है.

किसी भी संस्थान द्वारा पोर्टल पर रिपोर्ट अपलोड नहीं की गई है.

अधिकतर जगहों पर बायो मेडिकल वेस्ट एकत्रीकरण, शेड की सफाई के डॉक्यूमेंट्स कर रखरखाव नहीं हो रहा है.

अधिकतर में दूषित जल के उपचार संयंत्र स्थापित नहीं किए गए हैं.

व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण जैसे मास्क , गाउन, कैप आदि उपलब्ध नहीं मिले.

जगह-जगह पर आईईसी का प्रदर्शन नहीं किया गया.

30 बेड से अधिक वाले संस्थान में बायोमेडिकल वेस्ट प्रबंधन हेतु समिति का गठन नहीं किया गया है.

ये है नियम

हॉस्पिटल से निकलने वाला वेस्ट को डिस्पोज करने के लिए अलग मानक और रंग तय है.

पीला- सर्जरी में कटे हुए शरीर के भाग, लैब के सैम्पल, खून से युक्त मेडिकल की सामग्री ( रुई/ पट्टी), एक्सपेरिमेंट में उपयोग किये गए जानवरों के अंग डाले जाते हैं. इन्हें जलाया जाता है या बहुत गहराई में दबा देते हैं.

लाल- इसमें दस्ताने, कैथेटर , आई.वी.सेट , कल्चर प्लेट को डाला जाता है. इनको पहले काटते हैं फिर ऑटो क्लैव से डिसइन्फेक्ट करते हैं. उसके बाद जला देते हैं.

नीला या सफ़ेद बैग- इसमें गत्ते के डिब्बे , प्लास्टिक के बैग जिनमे सुई , कांच के टुकड़े या चाकू रखा गया हो उनको डाला जाता है. इनको भी काट कर केमिकल द्वारा ट्रीट करते हैं फिर या तो जलाते हैं या गहराई में दफनाते हैं.

काला- इनमें हानिकारक और बेकार दवाइयां, कीटनाशक पदार्थ और जाली हुई राख डाली जाती है. इसको किसी गहरे वाले गढ्डे में डालकर ऊपर से मिटटी दाल देते हैं.

लिक्विड- इनको डिसइन्फेक्ट करके नालियों में बहा दिया जाता है.

अस्पतालों में डस्टबिन में लगी पॉलिथीन के आधे भरने के बाद इसे पैक करके अलग रख दिया जाता है, जहां इंनफेक्शन के चांस न हो.

फैक्ट फाइल

जिला अस्पताल में 250 बेड

जिला महिला अस्पताल में 100 बेड

मेडिकल कॉलेज में 750 बेड

सीएमओ ऑफिस

सीएमओ ऑफिस में रजिस्टर्ड निजी अस्पताल - 272

सीएमओ ऑफिस में रजिस्टर्ड क्लीनिक व लैब - 900 से अधिक

जिले में बायोमेडिकल वेस्ट उठाने का काम दो प्राइवेट एजेंसी कर रही हैं. यही दोनों एजेंसियां डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल समेत जिले के अन्य अस्पतालों व लैबों से निकलने वाले बायोमेडिकल वेस्ट को रोजाना अलग-अलग रंग वाले डिब्बों में भरकर निस्तारण करने को ले जाती हैं.

हो सकता है इंफेक्शन

अस्पतालों में खुले में पड़े मेडिकल वेस्ट से इंफेक्शन का खतरा बहुत अधिक होता है. इससे पेट, लीवर, किडनी की बीमारियों समेत एड्स, हेपेटाइटिस जैसी बीमारियां भी फैल सकती है.

अस्पतालों में बायो मेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट की जांच में सबके पास लाइसेंस मिले हैं. जो कमियां मिली हैं उन्हें दूर करवाने के लिए पहले वर्कशॉप का आयोजन होगा.

डॉ. राजकुमार, सीएमओ, मेरठ

Posted By: Lekhchand Singh