Agra: कहावत है कि मोहब्बत और जंग में सब जायज है. यूपी में इलेक्शन का बिगुल बज चुका है.

जीत के लिए पॉलिटिकल कवायद शुरु हो गई है। सियासी शतंरज की बिसात पर एक-दूसरे को मात देने के लिए मोहरे भी सजा दिए गए हैं। प्रतिद्वंद्वी के हर कदम पर नजर है। सिटी में चुनाव 28 फरवरी को हैं। आगरा मंडल में नौ एसेंबली सीटों और सिटी एरिया में तीन सीटों पर इलेक्शन होने हैं।

हायर किए जा रहे डिटेक्टि
सोर्सेज की माने तो प्रत्याशियों के गुर्गों ने दिल्ली आना-जाना शुरू कर दिया है। क्योंकि, दूसरे प्रत्याशी की सटीक कंप्लेन कैसे चुनाव आयोग तक पहुंचाई जाए। इसके लिए वीक प्वाइंट चाहिए, जिसे तलाशने के लिए दिल्ली से प्राइवेट डिटेक्टिव हायर किए जा रहे हैं।
जंग से पहले की तैयारी 
इलेक्शन डेट के नजदीक आने के साथ ही उम्मीदवारों की जासूसी तेज हो जाएगी। जासूसों का मेन टारगेट होता है कि इलेक्शन से पहले प्रतिद्वंद्वी के ऐसे वीक प्वाइंट को तलाश सकें, जिससे उसकी पब्लिक इमेज को खराब किया जा सके।
हर गतिविधि पर होती है नजर
जासूसों का काम प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार की हर गतिविधि की डिटेल कलेक्ट करना होता है। साथ ही उसके द्वारा अपनाई जाने वाली इलेक्शन कैंपेनिंग की प्लानिंग को भी हायर करने वाले तक पहुंचाना होता है।
हाइटेक है तरीका
डिटेक्टिव एजेंसियों के जासूस हर तरह से हाईटेक होते हैं। स्पाई कैमरों, माइक्रोफोन, लैपटॉप, कंप्यूटर में ये एक्सपर्ट होते हैं। अपने मालिक के सामने इलेक्शन फाइट करने वाले के खिलाफ वीक प्वाइंट तलाशने के अलावा सोशल नेटवर्किंग साइटों पर प्रोपेगंडा क्रिएट करना भी उनके काम में शामिल है. 
पर डे के हिसाब से तय होती है रकम
साउथ दिल्ली में अपनी डिटेक्टिव एजेंसी चलाने वाले कर्नल डोगरा ने बताया कि इलेक्शन में उनकी एजेंसी के पास काम बढ़ जाता है। यूपी चुनावों में भी उनकी डिटेक्टिव एजेंसी को कुछेक उम्मीदवारों ने जासूसी का काम सौंपा है। जासूसी की फीस प्रतिदिन के हिसाब से तय की जाती है, जो 10 से 30 हजार रुपए तक है। इसके अलावा यदि जासूस कुछ एक्सक्लूसिव तलाशने में कामयाब हो जाता है तो उसके लिए अलग से फीस ली जाती है।
थ्री स्टेप में जासूसी 
आईएनएस डिटेक्टिव एजेंसी चलाने वाले प्रदीप महाजन ने बताया कि जासूसी थ्री स्टेप में की जाती है।
नंबर वन-  इलाके का सर्वे
टिकट फाइनल होने से पहले प्रतिद्वंद्वी के एरिया में उसकी इलेक्शन तैयारियों की डिटेल तैयार करना। उसके इलाके में सर्वे कर उसकी पब्लिक इमेज के बारे में पता करना। ऐसी तमाम जानकारी अपने क्लाइंट के लिए जुटाना।

नंबर-2 ऑपरेशन अंडर क
वर
इलेक्शन कैंपेन शुरू होने पर राइवल केंडीटेड की टीम में शामिल होकर उसके प्रचार के तरीकों की फेहरिस्त तैयार की जाती है। उसकी कोर टीम पर भी नजर रखी जाती है।

नंबर-3 -बूथ प्लानिंग की डिटेल जुटाना

इलेक्शन के दौरान पोलिंग बूथ पर प्रतिद्वंद्वियों की क्या प्लानिंग रहने वाली है। बूथ पर उनकी कोर टीम किस तरह से लोगों से वोट डलवाने का काम करेगी। कौन से उम्मीदवार का कौन सा विश्वसनीय किस बूथ पर रहेगा। कौन उसके फेवर में ज्यादा से ज्यादा वोट डलवा सकता है। इस तरह की पूरी प्लानिंग के बारे में डिटेल क्लेक्ट की जाती है।

यह पेशे का सवाल है
 
डिटेक्टिव एजेंसियां पूरी तरह से अपने काम में ईमानदारी निभाती हैं। उनके पास जो भी डिटेल होती है, वह उसे जब तक सार्वजनिक नहीं करतीं, जब तक कि उन्हें हायर करने वाले उम्मीदवार की तरफ से उस पर ओके की मुहर नहीं लग जाती है।

Story by: Aditya bharadwaj

Posted By: Inextlive