बहुत जल्द ही समय मापने के तरीक़े में व्यापक बदलाव हो सकते हैं.

इस सप्ताह रॉयल सोसाइटी में वैज्ञानिक इस विषय पर विचार विमर्श कर रहें हैं कि क्या हमें दुनिया में समय मापने के तरीक़े में बदलाव लाने की ज़रूरत है. इस विचार विमर्श में सबसे प्रमुख मुद्दा है 'लीप सेकंड' और क्या उसे ख़त्म कर देना चाहिए.

'लीप सेकंड' का सिद्धातं पहली बार 1972 में आया था. इसका इस्तेमाल आण्विक घड़ी के आधार पर समय मापने और पृथ्वी के चक्कर लगाने के आधार पर समय मापने में हुए अंतर को ख़त्म करने के लिए किया जाता है.

इस बारे में ब्रिटेन में ग्रीनीच रॉयल वेधशाला के रोरी मैक्इवाय ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, ''1920 से ही इस बात की जानकारी आम थी कि पृथ्वी की गति उतनी स्थाई नहीं है जितना हमलोगों ने सोचा था.''

इसका मतलब ये है कि आण्विक घड़ी के आधार पर समय मापने और पृथ्वी के चक्कर लगाने के आधार पर समय मापने में समय गुज़रने के साथ अंतर बढ़ता जाता है.

इसलिए कुछ वर्षों बाद जब दोनों के समय में अंतर 0.9 सेकंड का हो जाता है तो एक उसमें एक सेकंड जोड़ दिया जाता है जिसे 'लीप सेकंड' कहा जाता है.

मतभेद

लेकिन लीप सेकंड को ख़त्म करने की मांग को लेकर अंतरराष्ट्रीय जगत में मतभेद है और जनवरी 2012 में जेनेवा में अंतरराष्ट्रीय दूरसंचार संघ( आईटीयू) के अंतर्गत होने वाले विश्व रेडियो सम्मेलन में इस पर वोट डाले जएँगे.

आईटीयू के ज़रिए किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार ब्रिटेन, चीन और कनाडा समय मापने के मौजूदा तरीक़े में किसी भी बदलाव के बिल्कुल ख़िलाफ़ हैं.

लेकिन अमरीका, फ़्रांस, इटली और जर्मनी समेत 13 देश समय मापने के नए तरीक़े को अपनाना चाहते हैं जिसमें लीप सेकंड को समाप्त कर दिया जाएगा. लेकिन 200 से ज़्यादा सदस्यों वाले इस संघ में अधिकांश देश ऐसे हैं जिन्होंने अभी तक इस बारे में कोई फ़ैसला नहीं किया है.

पेरिस स्थित इंटरनेश्नल ब्यूरो ऑफ़ वेट्स एंड मेजर्स (बीआईपीएम) दुनिया भर में समय निर्धारण करने की अंतरराष्ट्रीय संस्था है. बीआईपीएम के अनुसार लीप सेकंड को ख़त्म किया जाना चाहिए क्योंकि एक सेकंड को जोड़ने की प्रक्रिया काफ़ी जटिल होती जा रही है.

बीआईपीएम के समय विभाग के निदेशक डॉक्टर फ़ेलिसिटस एरियस का कहना है, ''लीप सेकंड दूरसंचार को प्रभावित कर रहा है, इंटरनेट के इस्तेमाल और वित्तिय सेवाओं पर भी इसका असर पड़ रहा है.'' लेकिन ब्रिटेन समेत लीप सेंकड का समर्थन करने वाले देशों का कहना है कि इस समस्या को बढ़ा चढ़ा कर पेश किया जा रहा है.

2004 में 'लीप सेकंड' को बदल कर उसकी जगह 'लीप आवर' लागू करने का प्रस्ताव रखा गया था लेकिन टेडिंग्टन स्थित नेश्नल फ़िज़ीकल लेबोरेटरी के वरिष्ठ वैज्ञानिक पीटर वीबर्रले ने कहा कि ज़्यादा तर वैज्ञानिकों ने इस बात को स्वीकार किया था कि इससे और अधिक दिक़्क़तों का सामना करना पड़ेगा.

Posted By: Bbc Hindi