लक्ष्मणपुर-बाथे: 'राबड़ी- नीतीश दोनों ज़िम्मेदार'
नौ अक्तूबर को पटना हाईकोर्ट ने लक्ष्मणपुर-बाथे नरसंहार के 26 आरोपियों को सभी आरोपों से बरी कर दिया था.लक्ष्मणपुर-बाथे के रहने वाले बौद्ध पासवान कहते हैं, "फ़ैसला आते ही गांव के दलित टोले के सभी लोग डर के मारे अपने घरों में दुबक गए."पूरे गांव के दलितों को 30 नवंबर और एक दिसंबर, 1997 की रात का मंज़र याद आ गया जिसमें महिलाओं और बच्चों समेत दलित टोले के 58 लोगों की हत्या कर दी गई थी.बौद्ध पासवान के घर के सात लोग मारे गए थे, जिनमें उनके चार भतीजे, दो भतीजी और उनकी भाभी थीं.'अबूझ फ़ैसला'
वह हैरानी जाहिर करते हुए कहते हैं, "सरकार ने न्याय नहीं किया है. एक मर्डर पर लोगों को फांसी हो जाती है लेकिन हमारे गांव में तो 58 लोग मारे गए थे. हमने कोर्ट में जाकर गवाही भी दी, मारने वालों को पहचाना भी, लेकिन सब बरी हो गए. ऐसे में लगता है कि जिसके पास पैसा है, उसी का कानून है."'मज़बूत दरवाज़े'
फ़ैसले के बाद दलित टोले में अब तक कोई सुरक्षा मुहैया नहीं करवाई गई है.पीड़ित परिवार बताते हैं कि फ़ैसले के बाद पुलिस की जीप आई थी लेकिन रिहा हुए लोगों के टोलों से हाल-चाल लेकर लौट गई.इसके बाद भी दो-चार बार (एक बार मेरे गांव में रहते भी) पुलिस आई लेकिन उन्होंने पीड़ित परिवारों से मिलना उचित नहीं समझा.गांव के सामाजिक संबंधों में फ़िलहाल कोई तनाव सतह नहीं दिखता है.लेकिन अंदर-ही-अंदर चल रही तनातनी को दलित टोले में महसूस किया जा सकता है.दोषमुक्त हुए एक परिवार के सदस्य नृपेंद्र कुमार के अनुसार पहले भी गांव में लोग मिल-जुल कर रहा करते थे और आज भी रहते हैं.
सवर्ण जातियों की बसाहट के पास बने देवी स्थान में बैठे सभी लोग इस फ़ैसले पर खुश दिखाई दे रहे थे और सभी का कहना था कि 16 साल बाद ही सही लेकिन उन्हें न्याय मिला है.वहीं पर सुमित कुमार से भी मुलाकात हुई. इनके पिता मंटू सिंह और दादा बलेश्वर सिंह, दोनों को ही सेशन कोर्ट ने साल 2010 में फांसी की सज़ा सुनाई थी.हाईकोर्ट के फ़ैसले पर सुमित कुमार ने कहा कि यह फैसला उनके लिए भी अप्रत्याशित है.ऐसे में फ़ैसले के बाद सबसे बड़ा सवाल यह है कि सभी आरोपी निर्दोष हैं तो फिर दोषी कौन हैं और कैसे व कौन उन्हें कानून की गिरफ़्त में लाएगा?