- गुरु पूर्णिमा पर यूनिवर्सिटी कैंपस में नहीं हुए गुरु-शिष्य परंपरा को दर्शाते कार्यक्रम

- सोशल मीडिया पर खूब छाए रहे गुरु पूर्णिमा से जुड़े मैसेज

GORAKHPUR: हिंदू धर्म में गुरु का दर्जा देव से बड़ा माना गया है। माना जाता है कि सांसारिक भवसागर को पार करने में मानव को केवल गुरु ही रास्ता दिखा सकता है। गुरु के ज्ञान और उपदेश पर अमल करके ही व्यक्ति अपने जीवन में आगे बढ़ सकता है। लेकिन आज के आधुनिकता के दौर में गुरु-शिष्य की परंपरा लुप्त होती ही नजर आती है। गोरखपुर यूनिवर्सिटी कैंपस में भी ऐसा ही नजारा दिखा। गुरु पूर्णिमा के अवसर पर मंगलवार को डीडीयूजीयू कैंपस में गुरु-शिष्य के बीच के परंपरागत संस्कार पर आधारित कोई कार्यक्रम होते नजर नहीं आए। जबकि सोशल मीडिया पर गुरु-शिष्य पर परंपरा पर आधारित बधाई व शुभकामनाओं का दौर छाया रहा।

टीचर्स से खौफ, बढ़ गई दूरी

पं। दीन दयाल उपाध्याय के आदर्शो पर चलने वाली गोरखपुर यूनिवर्सिटी में पिछले कुछ वर्षो में काफी बदलाव आए हैं। गुरु-शिष्य के बीच जहां सम्मान की भावना थी। वहीं यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स न तो पहले जैसे गुरु को वो सम्मान देते नजर आ रहे हैं और ना ही गुरु भी शिष्यों का मार्ग दर्शन करने में ही दिलचस्पी दिखा रहे हैं। भेदभाव के साथ-साथ प्रदर्शन और असुविधाओं से लैस यूनिवर्सिटी में एक गुट जहां स्टूडेंट्स का हो चुका है तो दूसरा गुट शिक्षकों का है। शिक्षक संघ अपने संगठन के जरिए अपनी बातों को मनवाने में सक्षम है। वहीं उनके शिष्यों के लिए किसी प्रकार के संगठन नहीं होने से गुरु-शिष्यों के बीच आपसी तालमेल नहीं बैठ पा रहा है। यही वजह है कि पिछले सत्र से गुरु-शिष्य के बीच दूरी की स्थिति पैदा हो गई है। जानकारों की मानें तो गुरु-शिष्य के बीच तब आत्म लगाव होता जब गुरु छात्रों को फर्जी ढंग से अज्ञात मुकदमे में जेल भिजवाने की धमकी नहीं देते। छात्र हित में मांग करने वाले छात्रों को भी पुलिस का धौंस दिखाई जाती है। बीते दिनों भी मेस निर्माण में पुलिस बल के साथ निर्माण कार्य को कराए जाने की बात पर टीचर्स और स्टूडेंट्स के बीच काफी हंगामा हुआ था।

Posted By: Inextlive