क्त्रन्हृष्ट॥ढ्ढ:सिटी के स्कूलों में नए सेशन की शुरुआत के साथ ही एक बार फिर नौनिहालों की जान खतरे में पड़ गई है और हर दिन खतरे में रहने वाली है. बच्चों पर मंडरा रहे इस खतरे की जानकारी आलाकमानों व हुक्मरानों तक पहुंचाने के लिए दैनिक जागरण आईनेक्स्ट ने अभियान की शुरुआत कर दी है. स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को इस तपती धूप में जानवरों की तरह प्राइवेट वैन और ऑटो में ठूंसा जा रहा है. बच्चों की सुरक्षा के तमाम मानकों को दरकिनार कर रुपए कमाने का काला खेल बदस्तूर जारी है. इन नौनिहालों की जान को दांव पर लगाने वाले आरोपी मस्त होकर कारोबार कर रहे हैं क्योकि जिन अधिकारियों पर इसे रोकने की जिम्मेदारी है वे या तो मैनेज होकर मामले से अनजान बने हुए हैं या फिर शहर में धड़ल्ले से टूट रहे नियम कानूनों की उन्हें कोई जानकारी नहीं है. बात आरटीओ की करें या ट्रैफिक पुलिस की दोनों ही विभाग के लोग अपनी जेब गर्म करने में लगे हैं. भले ही इसके बदले में किसी के घर का चिराग बुझ जाए.

स्पॉट: उर्सुलाइन कॉन्वेंट

टाइम: 12.30 बजे

अभियान की शुरुआत के साथ डीजे आईनेक्स्ट की टीम सबसे पहले गर्ल स्टूडेंट्स की स्थिति जानने मेन रोड स्थित उर्सुलाइन कॉन्वेंट पहुंची. सड़क किनारे ऑटो की भरमार लगी है और लगभग उसी संख्या में मनचलों की बाइक भी उनके साथ विराजमान हैं. अधिककर पेरेंट्स टू-व्हीलर से बच्चियों को लेने स्कूल पहुंचे हैं. लेकिन निजी वैन और आटो के खड़े रहने के कारण उनका स्कूल तक पहुंचना किसी पहाड़ चढ़ने जैसा दिख रहा है. वैन और ऑटो में लड़कियों को भेड़-बकरियों की तरह ठूंसा जा रहा है.

स्पॉट: पुरुलिया रोड

टाइम: 12.45 बजे

पुरुलिया रोड स्थित चारों स्कूलों की हालत कमोबेश एक जैसी दिख रही है. बच्चों को ऑटो और वैन में भरा जा रहा है. अपने बच्चों को लेने कई पेरेंट्स भी पहुंचे हुए हैं, लेकिन अधिकतर बच्चे ऑटो या प्राइवेट वैन वाले हैं, जिन्हें बैठा कर, खड़ा कर या लटका कर गाड़ी में भरा जा रहा है. आसपास बड़ी संख्या में लोग मौजूद हैं, लेकिन मासूम बच्चों के साथ हो रही इस बेरहमी के खिलाफ कोई बोलने को भी तैयार नहीं है. लोग चुपचाप नौनिहालों की जान पर मंडरा रहे खतरे को देखते रहे और आंखे मूंदकर प्रार्थना करते हुए निकल गए.

स्पॉट: सुरेन्द्रनाथ सेंटनरी

टाइम: दोपहर 1.50 बजे

यह है सिटी का काफी चर्चित स्कूल सुरेन्द्रनाथ सेंटनरी. छुट्टी के बाद स्कूल गेट से बाहर निकलते छोटे-छोटे बच्चों को ठूंस-ठूंस कर सफेद कलर की प्राइवेट वैन में बैठाया जा रहा है. कुछ मासूम तो खड़े भी हैं लेकिन ड्राइवर अंकल के डर से कुछ बोल नहीं पा रहे. वैन की रियर सीट पर शीशा भी नहीं लगा. कोई भी बच्चा हाथ-पैर बाहर निकाल सकता है, गिर सकता है उसकी जान जा सकती है. जबकि मानकों के अनुसार सारी खिड़कियों पर जाली लगी होनी चाहिए.

ऑटो में लटके बच्चे

सुरेन्द्र नाथ स्कूल के बाहर से जैसे ही वापस आने के लिए रिपोर्टर ने बाइक स्टार्ट की तो एक ऑटो सामने आकर रुका. चलती गाड़ी का दरवाजा खुला था, और कुछ बच्चे खड़े थे तो कुछ किसी तरह मुंह लटकाए बैठे थे. रिपोर्टर ने बाइक लगाई और तेजी से ऑटो के पास जाकर दरवाजा बंद किया. ड्राइवर से जब उसका नाम पूछा तो वह ऑटो भगाते हुए भाग निकला.

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वर्जन

बच्चों को ऑटो और वैन में जबरन भरा जाता है. उनके बैठने लायक जगह तक नहीं होती. मैंने कई बार इसको लेकर स्कूल प्रबंधन और ऑटो वालों के साथ झड़प भी की लेकिन कुछ दिनों बाद मामला फिर से ढाक के तीन पात.

रत्नेश कुमार

बच्चों की हालत बहुत खराब होती जा रही है. सिटी में गर्मी भी लगातार बढती जा रही है ऐसे में बच्चों को जिस तरह स्कूल से लाया और स्कूल ले जाया जा रहा है उससे उनकी जान पर आफत पड़ने वाली है. मैं अपने बच्चों को खुद पहुंचाने जाता हूं लेकिन दूसरे बच्चों को देख बहुत दुख होता है.

अमित श्रीवास्तव

बच्चों को एक तो जैसे-तैसे बैठाया जाता है, उसके बाद अगर वे लोग कुछ बोलते हैं तो ड्राइवर वगैरह उन्हें बुरी तरह डांटकर धमका देते हैं. गार्जियन को चाहिए कि बच्चो को स्कूल तक ध्यान दें. उन्हें ऑटो-वैन में बिठाकर निश्चिंत नहीं हुआ जा सकता.

मनोज बजाज

इसके लिए नियम सख्त होने चाहिए कि जो भी सुरक्षा के मानकों को थोड़ा भी तोड़े उसके ख्रिलाफ ठोस कार्रवाई की जाए. हर ट्रैफिक पोस्ट पर पुलिस वाले मौजूद रहते हैं लेकिन कभी किसी को नहीं रोका जाता. हर ऑटो में बच्चे जैसे-तैसे बिठाए जाते हैं.

संगीता अग्रवाल

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प्रशासन को जवाब तक नहीं देते निजी स्कूल

सिटी के निजी स्कूलों की मनमानी चरम पर है. कमिश्नर के आदेश के बाद एसडीओ ने जिला प्रशासन का नेतृत्व करते हुए निजी स्कूलों में चलाई जा रही बसों और उनमें अपनाए गए सुरक्षा मानकों से संबंधित जांच की. जांच में सभी स्कूलों द्वारा नियमों की धज्जियां उड़ाए जाने की बात सामने आई. इस मामले में जिला प्रशासन ने कमोबेश सभी स्कूलों को नोटिस जारी करते हुए कहा कि जल्द से जल्द जवाब दें, लेकिन किसी स्कूल ने जवाब नहीं दिया. तत्कालीन एसडीओ अंजलि यादव ने इसकी रिपोर्ट कमिश्नर फैज अहमद को की है.

फिर कैसे होती है वाहनों की जांच

सिटी में वाहनों की जांच लगातार होती रही है. ऐसे में स्कूल वैन और ऑटो में जिस तरह से बच्चों को बिठाया जाता है आखिर ये वाहन पुलिस जांच में पकड़े क्यों नहीं जाते. जो ट्रैफिक पुलिस हर चौक चौराहे पर लोगों को दबोचकर फाइन काटने में लगी रहती है उनकी तेज तर्रार नजरों से इन स्कूली वाहनों में दम घुटते बच्चे कैसे बच जा रहे हैं. आखिर यह कैसी वाहनों की जांच है कि नौनिहालों की जान लेने को आतुर ये ऑटो और वैन कभी पकड़े ही नहीं जा पाते.

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फैक्ट फाइल

बिना परमिट के आटो: 4000

सिटी में अवैध प्राइवेट वैन: 113

स्कूल बस: 1352

सीबीएसई स्कूल: 191

आईसीएससी स्कूल: 18

Posted By: Prabhat Gopal Jha