पुणे के कोथरूड इलाक़े में एक सामान्य से घर में रहते हैं महेंद्र पेशवा। भारत की राजनीति में अंग्रेज़ों के आगमन से पूर्व 125 सालों तक प्रभुत्व जमाने वाले और दिल्ली की गद्दी को नियंत्रित करनेवाले पेशवाओं के वंशज अब सामान्य ज़िंदगी जी रहे हैं।


पेशवा के वंशज पुणे में रहते हैं, यह जानकारी इतिहास में रुचि रखने वाले गिन-चुने लोगों को ही है। आमतौर पर कोई इन्हें नहीं पहचानता।महेंद्र पेशवा कहते हैं, "ट्रैफ़िक हवलदार भी अगर पेशवा का लाइसेंस देखता है और उस पर पेशवा नाम देखता है तब भी उसे कोई अचरज नहीं होता। क्योंकि पेशवा का वंशज हमारे सामने है यह अहसास ही उसे नहीं होता।"पेशवा घराने के दो परिवार पुणे में है। एक है डॉक्टर विनायक राव पेशवा, उनकी पत्नी जयमंगलाराजे, बहू आरती और उनकी बेटियां। यह पेशवा घराने की 10वीं पीढ़ी है। 74 वर्षीय विनायकराव भूगर्भ विशेषज्ञ हैं और इसी विषय के प्राध्यापक के रूप में उन्होंने पुणे विश्वविद्यालय में 33 वर्ष नौकरी की।


दूसरा परिवार विनायकराव के बड़े भाई कृष्णराव का है जो हाल ही में गुजर गए। महेंद्र उन्हीं के बेटे हैं। कृष्णराव की पत्नी उषा राजे, बेटा महेंद्र, बहू सुचेता और उनकी बेटी यहां रहते हैं। महेंद्र का अपना फैब्रिकेशन का व्यवसाय है।यह उत्सव उत्तर भारतीय परंपरा के अनुसार होता है। पेशवा द्वारा स्थापित पर्वती, मृत्युंजयेश्वर मंदिर जैसे कुछ मंदिर आज भी पुणे में खड़े हैं, जिनका प्रबंधन देवदेवेश्वर संस्थान करता है।

विनायकराव पेशवा इस संस्थान के विश्वस्त मंडल में हैं, लेकिन उसकी अध्यक्षता पुणे के विभागीय आयुक्त करते हैं। इस तरह इन मंदिरों में उनकी उपस्थिति नाममात्र है। ध्यान देने की बात है कि पेशवा बाजीराव के पुत्र पेशवा नानासाहब की मृत्यु पार्वती मंदिर में स्थित एक इमारत में हुई थी।पेशवा के तौर पर लोग इनसे कैसा बर्ताव करते हैं, इस पर डॉक्टर विनायकराव, महेंद्र और पुष्कर के पास काफी किस्से हैं।वो बताते हैं, "खासतौर पर नई पीढ़ी को पेशवा क्या है, यही पता नहीं है। जिन्हें पेशवा बाजीराव और उनकी वीरता की जानकारी होती है उनके अनुभव काफी अलग होते हैं। ये लोग पेशवा परिवार के लिए अपना सम्मान जताते हैं। दिल से अपनापन जताते हैं। पेशवा के वंशज के रूप में आज की पीढ़ी की ओर आदर से देखा जाता है।"महेंद्र पेशवा का अपना व्यवसाय है। वे कहते हैं, "जब भी किसी नए व्यक्ति से पहचान होती है, तो लोग पूछते है, आप तो पेशवा हैं, आपको उद्यम-व्यवसाय की क्या ज़रूरत है?"महाराष्ट्र के बाहर मध्य प्रदेश में पेशवा के लिए बहुत आदर और अपनापन होने का उनका अनुभव है।महेंद्र के पिता केंद्र सरकार की नौकरी में थे। इसलिए उनकी पढ़ाई बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश में हुई थी।

महेंद्र कहते हैं, "पुणे में पेशवाओं की जितनी जानकारी लोगों को है, उससे अधिक जानकारी या आदर उत्तर प्रदेश में है। पेशवाओं के लिए सम्मान की भावना वहां दिखती है।"भंसाली की फ़िल्म बाजीराव मस्तानी आज रिलीज़ हो रही है।इसके बाद अंग्रेज़ों ने उनकी संपत्ति को आंकते हुए उसपर ब्याज़ के रूप में पेंशन देना शुरू किया। आज पेशवाओं के दोनों परिवारों को हर माह लगभग 15 हज़ार रुपए पेंशन के तौर पर मिलते हैं।पेशवाओं के सारे हथियार और संपत्ति पहले 1818 में दूसरे बाजीराव के समय और बाद में नानासाहब के विद्रोह के बाद ज़ब्त कर लिए गए थे। जो हथियार बचे थे वे अब पार्वती स्थित संग्रहालय में रखे गए हैं।भंसाली की फ़िल्म 'बाजीराव मस्तानी' के विरोध में शनिवारवाडा पर प्रदर्शन में महेंद्र तथा परिवार के अन्य सदस्य शामिल थे।वो कहते हैं, "भंसाली की फ़िल्म में इतिहास को तोड़ा मरोड़ा गया है। 18वीं सदी के बाजीराव को नाचते हुए दिखाया गया है जो उनके जैसे योद्धा को शोभा नहीं देता और इतिहास में जिसका कोई आधार नहीं।"

Posted By: Satyendra Kumar Singh