Allahabad : गंगा का मैदानी इलाका तेजी से ठंड की ओर अग्रसर है. लोगों को दिन और रात की ठंड ने सताना शुरू कर दिया है. चूंकि दिसम्बर का महीना शुरू हो चुका है. ऐसे में लोगों में भी यह दिलचस्पी बढ़ चली है कि इस बार ठंड के क्या हालात होंगे और यह अपने पीक पर कब और किस हद तक पहुंचेगी. यह उत्सुकता इसलिए भी है क्योंकि पिछली बार महाकुंभ के दौरान फ्रिजिंग प्वाइंट शून्य से नीचे पर गए पारे ने सभी को खूब कंपकंपाया था और दिसम्बर लास्ट तथा जनवरी मध्य तक ठंड का कहर जारी रहा. फिलहाल मौसम वैज्ञानिक इस बार भी जोरदार ठंड की भविष्यवाणी कर रहे हैं.


एक शाखा यूरोप और दूसरी आएगी भारत
महाहिमालय की ऊंचाईं पर भारी बर्फबारी का दौर शुरू हो चुका है। इसकी वजह से बद्रीनाथ और केदारनाथ के कपाट बंद किए जा चुके हैं। मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि ऐसी ही बर्फबारी जब मध्य हिमालय में शुरू होगी तो शिमला, देहरादून, जम्मू, कुल्लु मनाली, नैनीताल आदि हिल स्टेशन पर इसका गहरा असर देखने को मिलेगा और हिमालय क्षेत्र से विस्थापित होकर आने वाली ठंडी हवाएं तगड़ी ठंड का एहसास कराएंगी। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में ज्योग्रार्फी डिपार्टमेंट के एक्स हेड ऑफ डिपार्टमेंट प्रो। बीएन मिश्रा का कहना है कि 20 दिसम्बर के बाद से मिनिमम और मैक्सिमम टेम्परेचर तेजी से गिरेगा और इसका डिफरेंस दिन में भी देखने को मिलेगा। उन्होंने बताया कि शरीर को कंपकंपा देने वाली ठंड इस बात पर भी डिपेंड करेगी कि चक्रवाती पछुआ कब आता है। इसका निर्माण आन्ध्र महासागर में नवम्बर में शुरू हो जाता है। जिसकी दो शाखाएं भूमध्यसागर से होकर निकलती हैं। एक शाखा यूरोप की ओर निकल जाती है और दूसरी शाखा ईरान, ईराक, पाकिस्तान जैसी जगहों से होते हुए भारत में दाखिल होती है। यह ठंड का पीक आवर होता है। जैसा कि महाकुंभ मेले के दौरान जीरो डिग्री से नीचे -0.3 डिग्री सेल्सियस तक गए पारे के दौरान देखने को मिला था। उस समय ईस्टर्न यूपी में जगह-जगह हल्की बर्फ की चादर बिछी देखने को मिली थी। मोटी फसलों को होगा फायदाफिलहाल तो मिनिमम टेम्परेचर 10 डिग्री सेल्सियस के आसपास चल रहा है। एक्सपट्र्स का कहना है कि करेंट में मिट्टी में नमी ज्यादा होने के कारण उन फसलों को जिनमें ज्यादा सिंचाई की जरुरत नहीं पड़ती, उन्हें फायदा मिलेगा। यह मौसम गेहूं, मटर, चना, जौ, अरहर जैसी फसलों के लिए लाभकारी है। वहीं इस मौसम में दिन और रात के तापमान में 20 डिग्री तक का डिफरेंस होने के कारण 40 से ऊपर उम्र के लोगों को विशेष सावधानी बरतने की जरूरत है। अगले कुछ दिनों तक सुबह के समय हल्का कुहासा देखने को मिलेगा।  एक सदी में -0.7उधर, ठंड के लिहाज से भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के पिछले दस वर्षों के तापमान पर निगाह दौड़ाएं तो पता चलता है कि इलाहाबाद में 26 दिसम्बर 2012 को मिनिमम टेम्परेचर 4.9 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचा था। वहीं पिछली एक सदी में 26 दिसम्बर 1961 को मिनिमम टेम्परेचर -0.7 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचा था। 127 साल पहले सबसे ज्यादा बरसात


भले ही इस वर्ष अक्टूबर ने बारिश से चौकाया हो। मगर, बारिश के लिहाज से पिछले दस वर्षों में नवम्बर माह में बरसात की सम्भावना शून्य ही रही है। एक दिन या पूरे माह में 2003, 2005, 2007 एवं 2009 में ही मामूली वर्षा हुई है। वहीं 127 साल पहले सबसे ज्यादा बरसात ईयर 1885 में 68.3 मिलीमीटर ही हुई। इससे बाद 11 दिसम्बर 1986 को अधिकतम बारिश एक दिन में 54.6 मिलीमीटर हुई है।  मिट्टी में नमी मोटी फसलों के लिए लाभकारी है। हिमालय की ऊंचाई पर हो रही बर्फबारी जल्द ही मध्य भाग में भी आएगी। जिसके बाद गहरा असर देखने को मिलेगा। चक्रवाती पक्षुआ बनने की शुरुआत नवम्बर में हो चुकी है। जोकि भूमध्यसागर से होकर यहां तक पहुंचने के बाद अपना असर दिखलाएगी। प्रो। बीएन मिश्रा, एक्स हेड आफ डिपार्टमेंट, ज्योग्रार्फी, इलाहाबाद यूनिवर्सिटीदिनों दिन टेम्परेचर में पैदा होने वाला डिफरेंस हेल्थ को नुकसान पहुंचाने के लिए काफी है। ऐसे में अधिक उम्र के लोगों को सतर्क रहने की जरूरत है। इस समय हास्पिटल में पहुंच रहे अधिकतर मरीज मौसम की मार से ही पीडि़त हैं।डॉ। एआर सिद्दीकी, ज्योग्रार्फी डिपार्टमेंट, इलाहाबाद यूनिवर्सिटी

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