DEHRADUN : स्कूलिंग के लिए देहरादून वल्र्ड फेमस है. यहां के स्कूल्स में एडमिशन लेने के दुनियाभर के लोगों में होड़ मची रहती है लेकिन क्या आप जानते हैं कि एजुकेशन का स्तर गिर रहा है. सरकार लगातार एजुकेशन क्वालिटी को बेहतर करने की बात करती है लेकिन हकीकत की जमीन पर सब बेमाना ही नजर आ रहा है. ये हम नहीं बल्कि एनुअल स्टेट्स ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट असर की लेटेस्ट रिपोर्ट कह रही है. रिपोर्ट के मुताबिक स्टेट में स्कूली बच्चों का लैंग्वेज और मैथ नॉलेज बेहद खराब है. स्टूडेंट्स का इंटेलीजेंस लेवल लगातार घट रहा है. क्लास एट्र्थ के स्टूडेंट्स सेकेंड क्लास की बुक को पढऩे और सिपंल मल्टीप्लिकेशंस तक करने में कमजोर हैं.


साढ़े पांच लाख बच्चों पर किया गया सर्वेवेडनसडे को जारी हुई असर की रिपोर्ट में एजुकेशन का खस्ता हाल सच सामने आया। रिपोर्ट योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह आहलुवालिया ने जारी की। असर के उत्तराखंड रीजनल टीम मेंबर मयंक लव ने बताया कि देश के 550 डिस्ट्रिक्ट कवर किए गए थे, जिसमें लगभग 16 हजार विलेज और साढ़े पांच लाख से अधिक बच्चों के बीच सर्वे किया गया। इसमें उत्तराखंड के लगभग 250 गांव से पांच हजार घर और साढ़े छह हजार बच्चों को सर्वे में शामिल किया गया। असर ने 211 स्कूल का सर्वे कर आरटीई के मानकों की भी जांच की। उन्होंने बताया कि उत्तराखंड में 98 परसेंट से ज्यादा बच्चे स्कूल जाते हैं, लेकिन यहां क्वालिटी ऑफ एजुकेशन बेहद खराब है।प्राइवेट स्कूल भी हैं बदहाल
स्टेट में सिर्फ गवर्नमेंट स्कूल्स की ही स्थिति खराब नहीं है, बल्कि रिपोर्ट की माने तो प्राइवेट स्कूल्स का स्टेंडर्ड भी एजुकेशन के मामले में काफी नीचे है। सर्वे में क्लास थर्ड के  करीब 68 परसेंट बच्चे फस्र्ट क्लास की बुक रीड नहीं कर पाए। यही हाल क्लास फिफ्थ के स्टूडेंट्स का भी है। 72 परसेंट बच्चे सेकेंड क्लास की बुक रीड नहीं कर पाए। प्राइवेट स्कूल्स के पचास परसेंट ऐसे स्टूडेंट्स हैं, जिन्हें सिर्फ सबस्ट्रेक्शन करना आता है, जबकि फिफ्थ क्लास के 53 परसेंट बच्चे डिवाइड करना जानते हैं। अपदा के कारण सिर्फ नौ डिस्ट्रिक्ट में ही सर्वे किया गया था। सर्वे के लिए एनएसएस के साथ एमओयू साइन किया गया, जहां उनके स्टूडेंट्स की हेल्प से इसे पूरा किया गया। सर्वे में एजुकेशन के गिरते स्तर को लेकर जो फैक्ट्स दिए गए हैं, वह स्टेट के एजुकेशन सिस्टम के एक्चुअल हालात बताते हैं। सर्वे में प्राइवेट स्कूल्स की जहां हालात अच्छी नहीं हैं वहीं छह से 14 साल की कैटेगरी के करीब 98 फीसदी बच्चे स्कूल्स में एनरोल्ड पाए गए। 2009 में यह सिर्फ 25 परसेंट था। इस बार यह 40 परसेंट इंक्रीज हो गया है। - मयंक लव, मेंबर, रीजनल टीम, असर

Posted By: Inextlive