- एक हजार से ज्यादा लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार करा चुके हैं बिरदोपुर के प्रमोद श्रीवास्तव

- लावारिस लाश के अंतिम संस्कार के वक्त दर्ज होता है प्रमोद श्रीवास्तव के बिरदोपुर स्थित घर का पता

- 'मोक्ष समिति' के बैनर तले लावारिस लाशों को पहुंचाते हैं उनके अंजाम तक

VARANASI : अपने बनारस में आये दिन लावारिस लाशें मिलती हैं। शिनाख्त न हो पाने की कंडीशन में उनका लावारिश के तौर पर ही अंतिम संस्कार कर दिया जाता है। हालांकि इसके पहले लिखा-पढ़त में एड्रेस भी लिखा जाता है। चौंकाने वाली बात यही है कि हर लावारिस लाश का एक ही एड्रेस होता है, बी। 37/33 बिरदोपुर वाराणसी क्यों हर लावारिस लाश का एक ही पता है? आप भी जानिये आई नेक्स्ट के इस स्पेशल रिपोर्ट में

लावारिस मौत में भी ये दिलाते हैं मोक्ष

सांस है तो शरीर का हक बनता है कि उसे भोजन, पानी, पहनने को कपड़ा और रहने को छत मिले। लेकिन जैसे ही सांसों की डोर टूटी तो इंसान लाश बन जाता है। हर लाश इतनी खुशनसीब नहीं होती कि उसे दो गज जमीन या कुछ सूखी लकडि़यों के साथ आग का हक मिले। कुछ लाश इतनी बदनसीब होती हैं उन्हें कफन और अपनों का कंधा तक नसीब होता है और वे 'लावरिस' करार दी जाती है। लेकिन काशी में ऐसी लावारिस लाशों को भी हक मिलने लगा है। जी हां, मोक्ष की इस नगरी में एक घर इन लावारिस लाशों को उनका हक दिलाता है। हजारों लाशों को उनका हक दिलाने वाले इस घर का पता है बी 377/फ्फ् बिरदोपुर वाराणसी जो हर लावारिस लाश के टेम्परेरी एड्रेस के तौर पर दर्ज भी होता है। यह एक पता अब तक हजारों लाशों को मोक्ष की राह दिखा चुका है।

लाश किसी भी लेकिन पता एक

अपने शहर में हर साल दर्जनों की की संख्या में लावारिस लाशें मिलती हैं। जिनका अंतिम संस्कार करने वाला कोई नहीं होता। लेकिन मौत के बाद धार्मिक रीति रिवाज से अंतिम संस्कार हर इंसान का आखिरी हक है। लाश किसी की भी हो, कहीं भी हो उसके अंतिम संस्कार कराने का जिम्मा शहर के ही एक नौजवान प्रमोद श्रीवास्तव ने उठा रखा है। अब तक तकरीबन एक हजार लाशों को उनकी अंतिम गति को पहुंचा चुके हैं। खास यह कि हर लाश का पता उनके घर का फ्7/फ्फ् बिरदोपुर वाराणसी ही होता है। प्रमोद बताते हैं कि लाश को उसका अंतिम हक दिलाने में उन्हें एक सुकून का एहसास होता है। मैं समझता हूं कि इस तरह से मैं समाज की कुछ सेवा कर रहा हूं।

बन गये लावारिस के वारिस

मूलरूप से जौनपुर के बिंद गांव निवासी प्रमोद ने लावारिस लाशों के अंतिम संस्कार कराने की सोच कहां से पैदा हुई? यह बताते हुए वे थोड़ा भावुक हो गये। लेकिन खुद को संभालते हुए कहा कि कुछ साल पहले अपनी मां के इलाज के सिलसिले में बीएचयू आना जाना होता था। वहीं इमरजेंसी वार्ड के बाहर ख्ख् साल के युवक की डेडबॉडी के सामने बैठी बूढ़ी महिला रो-रोकर बेहाल हो रही थी। कुछ दवा दुकानदार उससे बकाये रुपये मांग रहे थे। बूढ़ी महिला के पास रुपये नहीं थे। प्रमोद ने दुकानदारों को समझाने की कोशिश की तो वे उससे ही रुपये मांगने लगे। प्रमोद ने उन्हें दवा के रुपये दिये और बूढ़ी महिला के साथ उसके बेटे का अंतिम संस्कार कराया। इस घटना ने प्रमोद झकझोर दिया। बस यहीं से लावारिस लाशों को उसका वारिस मिल गया।

पहल जो आज एक मिशन है

प्रमोद बताते हैं कि उस दिन की एक छोटी सी पहल जिसे आप मानव संवेदना भी कह सकते हैं आज मिशन का रूप ले चुकी है। लेकिन यह इतना आसान नहीं था। मैं जब पुलिस स्टेशन जाता और वहां लावारिस लाश के अंतिम संस्कार की इच्छा जाहिर करता तो वे मुझे बड़ी अचरज भरी निगाहों से देखते। कुछ कानूनी अड़चनें भी थीं। इसे दूर करने के लिए ख्008 में मैंने मोक्ष नाम से एक समिति का रजिस्ट्रेशन कराया। अब इसी समिति का पता मेरे घर का है। एक डेड बॉडी के अंतिम संस्कार में लगभग क्भ्00 रुपये खर्च होते हैं। लाशों को लाने ले जाने के लिए ट्रॉली रखी है। अंतिम संस्कार कराने के लिए दो लड़कों को भी रखा है। आज यह स्थिति है कि हर पुलिस चौकी और थाने पर मेरा नाम और नंबर मिल जायेगा। कोई लावारिस लाश मिले तो उसके अंतिम संस्कार के लिए वे मुझे ही बुलाते हैं। हालांकि उनकी समिति में सात सदस्य हैं लेकिन सारा खर्च वे खुद वहन करते हैं। प्रशासन से भी कोई सहयोग नहीं मिलता।

पर्यावरण संरक्षण भी उद्देश्य

अगर लाशों का अंतिम संस्कार न हो तो उन्हें ठिकाने लगाने के लिए गंगा में डाल देना ही एक मात्र उपाय है। गंगा में अक्सर लाशें उतरायी दिखायी देती हैं। गंगा जल प्रदूषित होने का यह भी एक बड़ा कारण है। प्रमोद बताते हैं कि हर साल सैकड़ों की संख्या में लाशें गंगा में प्रवाहित कर दी जाती हैं। इससे गंगा जल प्रदूषित होता है। गंगा में इसी प्रदूषण को खत्म करने के लिए कछुआ सेंचुरी बनायी गयी थी। लेकिन कछुए कहां चले गये कुछ पता नहीं है। अब ज्यादातर लाशों का अंतिम संस्कार से कुछ हद तक गंगा में प्रदूषण को कम करने की कोशिश भी है।

विद्युत शवदाह गृह शुरू हो तो बने बात

काशी में जलायी जाने वाली लाशों से पर्यावरण व गंगा को हो रहे नुकसान को देखते हुए स्थानीय प्रशासन ने कई वर्ष पहले हरिश्चंद्र घाट पर विद्युत शवदाह गृह का निर्माण कराया। यह कुछ दिनों तक तो ठीक-ठाक चला लेकिन बाद में बंद हो गया। इसके बंद होने का क्या कारण है यह पता नहीं लेकिन यह चलता रहता तो गरीब लोगों को बहुत राहत रहती। चूंकि यहां लाशें पूरी तरह जल जाती हैं इसलिए गंगा जल के प्रदूषित होने का खतरा भी नहीं रहता। प्रमोद प्रशासन ने इस शवदाह गृह को शुरू करने की मांग करते है।

प्रकृति में विलीन हो जाता है पंचतत्व

किसी भी शव का अंतिम संस्कार उसका हक है। विभिन्न धर्मो में शवों के अंतिम संस्कार के लिए विभिन्न तरीके बताये गये हैं। हिन्दू धर्म में मृत शरीर को अग्नि को समर्पित कर दिये जाने की मान्यता है। ज्योतिषाचार्य विमल जैन व बीएचयू संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय के डा। विनय कुमार पाण्डेय के अनुसार धर्म शास्त्रों में उल्लेख है कि मानव शरीर पंचतत्वों आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी से मिलकर बना है। इससे प्राण निकलने के बाद अंतिम संस्कार किया जाता है। इससे सारे तत्व फिर से एक दूसरे में समाहित हो जाते हैं।

Posted By: Inextlive