kanpur: दिल्ली में एक साल पहले 16 दिसंबर 2012 को पांच दरिन्दों ने बस में सत्रह वर्षीय निर्भया की दोस्त के सामने रेप करने के बाद हत्या कर दी थी. उनकी दरिन्दगी से पूरा देश आक्रोशित हो गया था. पब्लिक के गुस्से को देख पुलिस ने तुरन्त कार्रवाई करते हुए पांचों आरोपी का पता लगाकर उन्हें गिरफ्तार कर लिया. इस केस की सुनवाई फास्ट ट्रैक कोर्ट में हुई. जहां आरोपियों पर चार्ज फ्रेम होने के बाद तेजी से गवाही कराई गई. कोई भी गवाह गैरहाजिर नहीं हुआ. जिससे छह महीने में मुकदमे में फैसला हो गया. सभी आरोपियों को सजा सुनाए जाने से निर्भया को इंसाफ मिल गया. ऐसे यहां पर भी सैकड़ों निर्भया के परिजन इंसाफ की आस में कोर्ट के चक्कर लगा रहे है.


रेप के चार टेस्ट केस

केस-1बिहार में मूल रूप से रहने वाली सविता की साढ़े ग्यारह साल की बेटी के साथ 15 फरवरी 2008 को सेंट्रल स्टेशन पर गैैंगरेप करने के बाद हत्या कर दी गई थी। इसमें पुलिस ने आरपीएफ के सिपाही विनय, ठेकेदार अमर सिंह, लम्बू, पप्पू और तीन अज्ञात के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज की थी। इसमें पुलिस ने विवेचना में लल्लू, संतोष और शादाब का नाम बढ़ाया था। यह मुकदमा एडीजे-1 में चल रहा है। जिसमें सभी आरोपी जमानत पर छूट गए है। उनको सजा दिलाने के लिए हर तारीख पर बच्ची की मां कचहरी आती है। यहां पर आरोपियों को देखते ही उसकी आंखों के सामने बेबस बच्ची का चेहरा आ जाता है।केस-2


सिटी के चर्चित दिव्याकांड के केस में भी अभी फैसला नहीं हो सका है। कोर्ट में तीन साल से सुनवाई चल रही है। पीडि़त पक्ष के एडवोकेट अजय भदौरिया के मुताबिक रावतपुर में ज्ञान स्थली स्कूल में 27 सितंबर 2010 को छात्रा दिव्या के साथ स्कूल प्रबंधक चंद्रपाल वर्मा के बेटे पीयूष ने कुकर्म किया। जिसके बाद उसको गंभीर हालत में स्कूल के कर्मचारी घर के बाहर छोड़ गए। डॉक्टरों की हड़ताल होने से उसको समय से इलाज नहीं मिल सका और उसकी मौत हो गई। इसमें पुलिस की भूमिका संदिग्ध होने पर पब्लिक ने विरोध प्रदर्शन शुरु कर दिया था। जिसके बाद गर्वमेंट ने सीआईडी को जांच सौंप दी थी। जिसमें स्कूल प्रबंधक चंंद्रपाल, उसके बेटे मुकेश और पीयूष और कर्मचारी संतोष का नाम सामने आने पर उन्हें नामजद कर जेल भेजा था। जिसमें स्कूल प्रबंधक और उसके बड़े बेटा बेल पर छूट गए है। इसमें चार्ज फ्रेम होने के बाद दिव्या की मां सोनू की गवाही हो गई है। हर तारीख पर कचहरी पहुंचती है। वहां पर आरोपियों को देख उसके जख्म ताजे हो जाते है। वह तारीखों से परेशान हो चुकी है। केस-3

जिला कोर्ट में तीन साल से कविता कांड की सुनवाई भी चल रही है। सन् 2010 में उन्नाव में रहने वाली कविता की तबियत खराब होने पर परिजनों ने चांदनी नर्सिंग होम में एडमिट कराया था। जहां पर उसकी रेप के बाद हत्या कर दी गई। जिसका पता चलते ही तीमारदारों ने हंगामा कर दिया था। इस केस में पुलिस ने हास्पिटल की निदेशक सरला सिंह और वार्ड ब्वाय राकेश को नामजद किया था। बार्ड ब्वाय राकेश ही रेप करने के बाद उसकी हत्या कर दी थी। इसमें सरला सिंह बेल पर छूट गई थी, जबकि बार्ड ब्वाय अभी भी जेल में है। इसमें कविता को इंसाफ दिलाने के लिए उसके परिजन तीन से कोर्ट के चक्कर लगा रहे है। जहां हर तारीख पर उन्हें बेटी के जख्म और मौत का अहसास होता है। केस-4बेगमपुरवा में रहने वाली किशोरी सन् 2009 में पड़ोसी मो। आफताब मां के एक्सीडेंट होने का झांसा देकर दोस्त के घर ले गया। वहां पर उन लोगों ने किशोरों के साथ गैैंगरेप करने के बाद उसको छोड़ दिया। उसने घर पहुंचकर पूरी बात बताई, तो उन लोगों ने बाबूपुरवा थाने में जाकर एफआईआर दर्ज कराई। इस मामले के दोनों आरोपी जमानत पर छूट गए है। वे कानून दांवपेंच का सहारा लेकर अक्सर गैरहाजिर हो जाते है। जिससे मुकदमे में तारीख लग रही है। रेप के चार टेस्ट केस

 इन मुकदमों की तरह 325 से ज्यादा रेप के मामलों की सुनवाई कानपुर कोर्ट में चल रही है। जिसमें पीडि़ता या उसके परिजन पैरवी कर रहे है। उनको हर तारीख पर आरोपियों का सामना करना पड़ता है। जिससे उनके जख्म ताजे हो जाते है। हर तारीख पर उनको बेटी से रेप और दर्द का अहसास होता है। कोर्ट में सुनवाई की लम्बी प्रक्रिया और आरोपियों के कानूनी दांवपेंच का सराहा लेने से इनके मामलों में सुनवाई टल जाती है। जिससे मुकदमे में निर्णय नहीं हो सका है। कोर्ट में मुकदमों की पेंडेंसी प्रमाण है कि यहां सालों सुनवाई होने के बाद किसी केस में फैसला होता है। इस लम्बी प्रक्रिया का सीधा फायदा आरोपियों को मिलता है। वे बेल पर छूट जाते है और कानूनी दांवपेंच का सहारा लेकर मुकदमे में लम्बी तारीख लगवा लेते है। यही हाल रेप जैसे संगीन मामलों का भी है। जिसमें पीडि़ता और उनके परिजन न्याय पाने के लिए कचहरी के चक्कर लगाने को मजबूर है। इन मामलों में आरोपी कानूनी दांव पेंच जैसे हाजिरी मांफी, मेडिकल आदि का सहारा लेकर लम्बी तारीख लेते है। पीडि़ता और उनके परिजनों का हर तारीख पर आरोपियों का सामना होता है। जिससे उनके जख्त ताजे हो जाते है। आरोपियों की नजरे उन पर शूल की तरह चुभती है। कोर्ट की कमी से होती न्याय में देरीसीनियर एडवोकेट कौशल किशोर शर्मा के मुताबिक कोर्ट की कमी से मुकदमों की पेंडेंसी बढ़ रही है। मुकदमों की पेंडेंसी को खत्म करने के लिए कोर्ट की संख्या बढ़ानी होगी। साथ ही रेप जैसे संगीन मामलों के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट चालू कराना होगा। जिससे मुकदमों में तेजी से सुनवाई हो। इससे मुकमदे में जल्द फैसला होने के साथ पेंडेंसी भी खत्म होगी।
आरोपी और गवाह की गैरहाजिरी से टल जाती है सुनवाईबार एसोसिएशन  के पूर्व महामंत्री इंदीवर बाजपेई के मुताबिक गवाहों की लगातार गैरहाजिरी से सुनवाई टल जाती है। जिससे समय पर मुकदमे का फैसला नहीं हो पाता है। इसी वजह से मुकदमों की पेंडेंसी बढ़ रही है। रेप के मामलों की सुनवाई महिला जज करती है। यहां पर महिला जज की संख्या कम है। इसलिए मुकदमों की पेडेंसी बढ़ रही है। इसे रोकने के लिए महिला जज की संख्या को बढ़ाना होगा। तभी मुकदमों में जल्द फैसला हो सकेगा। लम्बी सुनवाई से टूट जाता है पीडि़त पक्षएडवोकेट रुद्र प्रताप सिंह के मुताबिक रेप जैसे संगीन केस में लम्बी सुनवाई होने से पीडि़त पक्ष टूट जाता है। उन्हें हर तारीख पर आरोपियों का सामना करना पड़ता है। जिससे उनके जख्म हरे हो जाते है। आरोपी कानूनी दांवपेंच का सहारा लेकर अगली तारीख लगवा लेते है और निराश होकर वापस लौटना पड़ता है। इसके अलावा कई आरोपी रुपए और रसूक का इस्तेमाल कर पीडि़त पक्ष पर दबाव बनाने में कामयाब हो जाते है। जिससे पीडि़त पक्ष मजबूरी में उनसे समझौता कर लेता है। मुकदमों की पेडेंसी और निस्तारण में नम्बर वन है कानपुरमुकदमों की पेंडेसी में देश में यूपी और यूपी में कानपुर नम्बर वन है। यहां पर कोर्ट की संख्या कम होने और गवाहों की लगातार गैरहाजिरी से मुकदमों में फैसला नही हो पा रहा है। कानपुर कोर्ट की वेबसाइट की मुताबिक यहां पर 1.98 लाख मुकदमे लंबित है। इसमें वारण्ट के 5015, सम्मन के 49825, जुआं, वजन और एनवी एक्ट के 15275, सत्र न्यायालय के 10097 और सिविल कोर्ट जूनियर व सीनियर डिवीजन में 36371 केस लंबित है। वहीं, मुकदमों को निस्तारित करने में भी कानपुर कोर्ट सबसे आगे है। आकड़ों के मुताबिक जिला कोर्ट 1.98 लाख मुकदमे लंबित थे। इसके बाद फरवरी 2013 तक 43922 नए मुकदमे दर्ज हुए। जिसके मुकाबले 56 हजार से अधिक मुकदमे निस्तारित किए गए। जिसमें लोक अदालत में 23 हजार, प्रीलिटिगेशन के 650 और मीडिएशन से 85 मुकदमे निस्तारित हुए, जो पिछले साल की तुलना में बहुत ज्यादा है। देश में 3.50 करोड़ मुकदमों की पेंडेसी देश में 3.50 करोड़ मुकदमों की पेंडेंसी है। इसमें यूपी नम्बर वन है। यहां पर 54.35 लाख मुकदमे पेंडिंग है, जबकि हाईकोर्ट में 95 हजार से ज्यादा मामले चल रहे है। इसके बाद महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा पेंडेसी है। यहां की लोवर कोर्ट में 41.58 लाख मुकदमे लंबित है, जबकि हाईकोर्ट में 33 हजार मुकदमे लंबित है। सिक्किम में सबसे कम पेंडेंसी है। यहां पर लोवर कोर्ट में 1178 और हाईकोर्ट में 85 मुकदमे लंबित है।हेल्प-बच्ची का ध्यान रखें। अकेले घर से बाहर न जाने दें।-बच्चियों को सिखाएं कि किसी अजनबी से चॉकलेट या टॉफी न लें।-दोस्त, पड़ोसी या रिश्तेदार से भी अलर्ट रहें-नजर रखें कि कोई बच्ची को बेवजह बार बार टच करने की कोशिश तो नहीं कर रहे-शादी समारोह या किसी फंक्शन में जाने पर बच्ची को अकेला न छोड़ें-बच्ची की सुरक्षा के मामले में कोई कितना भी करीबी हो, आंख बन्द कर भरोसा न करें-बच्ची के व्यवहार में अचानक बदलाव देखें तो प्यार से वजह जानने की कोशिश जरूर करेंइस तरह के हादसे के बाद बच्चे का सामाजिक जीवन बहुत ज्यादा प्रभावित हो जाता है। वो अलग-थलग रहने की कोशिश करता है। समाज के प्रति उसके मन में नफरत और डर बना रहता है। जब बच्चा अपने ही परिवार के किसी सदस्य के हाथों शिकार होता है, तो उसका विश्वास पूरी तरह टूट जाता है और वह अपने परिवार में कभी ठीक से एडजस्ट नहीं कर पाता। दूसरी ओर अगर ऐसी चीजें समाज में फैल जाएं तो हमारा समाज भी विक्टिम को एक सामान्य प्राणी के तौर पर नहीं देखता। रेप विक्टिम को विशेष नजर से देखा जाता है। कभी कभी उसके प्रति ज्यादा सहानुभूति दिखाकर उसके सामान्य विकास को और भी ज्यादा बाधित कर दिया जाता है। इससे बच्चे की सेल्फ एस्टीम में कमी आती है और उसकी पूरी पर्सनेलिटी छिन्न भिन्न हो जाती है। -डॉ। एसपी सिंह समाजशास्त्रीकम उम्र बच्चियों के रेप जैसी घटना होने से उनमें इमोशनल शेड ब्रेक हो जाता है। इसके अलावा लोकल इंजरी होती है। जिसमें वेजाइना, यूरेट्रा पर इफेक्ट पड़ता है। अगर ज्यादा छोटी बच्ची है तो उसके वेजाइना का वॉल्ट भी इंजर्ड हो सकता है। वहीं इंफेक्शन का सबसे बड़ा खतरा बन जाता है। जैसे एचआईवी, हेपेटाइटिस, सिफीलिस, गूनोरिया, ट्रइक्रोमोनाज हो सकते है। जो आगे आने वाले जीवन में बहुत बड़ी परेशानी बन सकते है। ग्रेगनेंसी और डिलीवरी में भी कई तरह के कॉम्पलीकेशंस हो सकते है।-डॉ। सपना मेहरोत्रा, गाइनाकोलॉजिस्टपीडि़ता के साथ बरते सावधानी -ऐसी घटना से बच्चे में ट्रामा हो जाता है, क्योंकि वह इन सब चीजों से अनजान होता है-वो फोबियाग्रस्त हो सकता है। फोबिया किसी चीज की तरह शिफ्ट भी हो सकता है-जरूरी ये है कि बच्चे की प्रॉपर काउंसलिंग की जाए-पेरेंट्स बच्चे का पूरा ध्यान रखें, उसे कभी भी अकेला न छोड़ें-उसके सामने बार-बार उसके बारे में डिसकस न करें-उसका माइंड डायवर्ट करने के लिए उसको रोचक एक्टिविटीजी में लगाए-ऐसे प्रोटेक्टिव मेजर्स मिल जाएं कि ऐसी घटना फिर कभी न हो-अगर बच्चा बड़ा हो तो उसका स्कूल बदल दे। साथ ही दूसरे शहर भी जा सकते है-डॉ। रवि कुमार साइकियाट्रिस्ट।बच्चियों के साथ ऐसी घटनाएं वाकई गंभीर विषय है, लेकिन सिर्फ पुलिस इन्हें रोक नहीं सकती है। क्योंकि ज्यादातर केस में कोई अपना या करीबी ही आरोपी होता है। मेडिकल रिपोर्ट में भी रेप की जगह अटेम्प्ट टू रेप आता है। इसका फायदा उठाकर आरोपी छूट जाते है। ये एक सामाजिक समस्या भी है इसलिए लोगों को ही इसके लिए आगे आना होगा। उन्हें अलर्ट रहना होगा और अपने आसपास घूम रहे इस मानसिकता के लोगों को पहचान कर उनसे बचना होगा। उम्र बढऩे के साथ-साथ पेरेंट्स को अपने बच्चों को प्रॉपर गाइड करना चाहिए। जिससे ऐसी स्थितियों में उसमें प्रतिरोध की क्षमता डेवलप हो सके। पुलिस भी रेप के आरोपियों पर सख्ती से पेश आएगी। -यशस्वी यादव, एसएसपी

Posted By: Inextlive